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राजा रहूबियाम: ईश्वरीय इच्छा और राजसी निर्णय – एक समुद्रपार परीक्षण

2 इतिहास 11 की कहानी को विस्तार से समझने के लिए हमें उस समय की परिस्थितियों और घटनाओं को गहराई से देखना होगा। यह अध्याय राजा रहूबियाम (रहबाम) के जीवन और उसके शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शाता है। यह कहानी इस्राएल के विभाजन और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के महत्व को दर्शाती है।

### राजा रहूबियाम का शासन और विभाजन
राजा सुलैमान के निधन के बाद, उसका पुत्र रहूबियाम इस्राएल का राजा बना। रहूबियाम ने शकेम में सभी इस्राएलियों को इकट्ठा किया ताकि वह उन पर अपना शासन स्थापित कर सके। उस समय, यरोबाम और इस्राएल के लोगों ने रहूबियाम से अनुरोध किया कि वह उन पर लगाए गए भारी करों और कठोर श्रम को कम करे। उन्होंने कहा, “यदि तू हमारे बोझ को हलका करेगा, तो हम तेरी सेवा करेंगे।”

रहूबियाम ने पहले बुजुर्ग सलाहकारों से परामर्श किया, जिन्होंने उसे लोगों की बात मानने और उन पर दया दिखाने की सलाह दी। लेकिन फिर उसने अपने युवा मित्रों से भी सलाह ली, जिन्होंने उसे और अधिक कठोर बनने के लिए कहा। रहूबियाम ने युवाओं की सलाह मानी और लोगों से कहा, “मेरे पिता ने तुम पर भारी बोझ डाला था, परन्तु मैं उससे भी अधिक बोझ डालूंगा। मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से मारा था, परन्तु मैं तुम्हें बिच्छुओं से मारूंगा।”

यह सुनकर इस्राएल के लोगों ने रहूबियाम के शासन को अस्वीकार कर दिया और कहा, “हमें दाऊद के घराने से क्या लेना-देना? हम अपने-अपने तंबुओं में चले जाएंगे।” इस प्रकार, इस्राएल का राज्य दो भागों में बंट गया। दस गोत्र यरोबाम के नेतृत्व में उत्तरी राज्य बन गए, जबकि यहूदा और बिन्यामीन के गोत्र रहूबियाम के अधीन रहे।

### रहूबियाम की स्थिति और परमेश्वर की इच्छा
रहूबियाम ने सोचा कि वह अपनी शक्ति से उत्तरी राज्य को वापस ले सकता है। उसने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और यरोबाम के खिलाफ युद्ध करने की तैयारी की। लेकिन तब परमेश्वर का वचन शमायाह नामक एक भविष्यद्वक्ता के द्वारा रहूबियाम तक पहुंचा। शमायाह ने कहा, “यहोवा यह कहता है कि तुम अपने भाइयों के विरुद्ध न जाओ और न ही उनसे युद्ध करो। यह सब मेरी ओर से हुआ है।”

रहूबियाम ने परमेश्वर की आज्ञा मानी और युद्ध नहीं किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर की इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। उसने समझ लिया कि यह विभाजन परमेश्वर की योजना का हिस्सा था, जो सुलैमान के पापों के कारण हुआ था।

### रहूबियाम का शासन और सुधार
रहूबियाम ने यहूदा और बिन्यामीन के शहरों को मजबूत करने का निर्णय लिया। उसने बेतलेहेम, एताम, तकोआ, बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम, गत, मारेशा, जिफ, अदोराम, लाकीश, अजेका, सोरा, अय्यालोन, और हेब्रोन जैसे शहरों को सुरक्षित किया। उसने इन शहरों में किलेबंदी की, सेनाएं तैनात कीं, और भंडार भरे ताकि वे किसी भी आक्रमण का सामना कर सकें।

रहूबियाम ने यहूदा और बिन्यामीन में अपने शासन को मजबूत किया और लोगों को सुरक्षा प्रदान की। उसने अपने पुत्रों को इन शहरों का प्रबंधन सौंपा और उन्हें उचित शिक्षा दी ताकि वे भविष्य में राज्य का नेतृत्व कर सकें।

### याजकों और लेवियों का यहूदा में आगमन
जब यरोबाम ने उत्तरी राज्य में मूर्तिपूजा को बढ़ावा दिया और याजकों और लेवियों को उनके कर्तव्यों से हटा दिया, तो वे यहूदा और यरूशलेम में आ गए। याजकों और लेवियों ने रहूबियाम के शासन को स्वीकार किया और परमेश्वर की सेवा करने लगे। उन्होंने यरोबाम के मूर्तिपूजा के मार्ग को छोड़ दिया और परमेश्वर के सच्चे मार्ग पर चलने लगे।

इस प्रकार, यहूदा में परमेश्वर की आराधना और उपासना मजबूत हुई। लोगों ने तीन वर्ष तक दाऊद और सुलैमान के मार्ग पर चलकर परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन किया।

### रहूबियाम का परिवार और उसकी गलतियाँ
रहूबियाम ने अनेक पत्नियों और उपपत्नियों से विवाह किया, जो उस समय के राजाओं की प्रथा के अनुसार था। उसके अठारह पत्नियाँ और साठ उपपत्नियाँ थीं, जिनसे उसके अठ्ठाईस पुत्र और साठ पुत्रियाँ हुईं। उसने अपने पुत्रों को यहूदा के विभिन्न शहरों में नियुक्त किया और उन्हें अच्छी शिक्षा दी।

हालांकि, रहूबियाम ने अपने जीवन में कई गलतियाँ कीं। उसने परमेश्वर की आज्ञाओं को पूरी तरह से नहीं माना और कभी-कभी मूर्तिपूजा और अन्य पापों में लिप्त हो गया। इसके कारण, उसका शासन पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं चल सका।

### निष्कर्ष
2 इतिहास 11 की कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर की इच्छा के बिना कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती। रहूबियाम ने शुरू में परमेश्वर की आज्ञा मानी और युद्ध नहीं किया, लेकिन बाद में उसने अपने जीवन में कई गलतियाँ कीं। यह कहानी हमें यह भी दिखाती है कि परमेश्वर की सेवा और उपासना ही सच्ची सफलता का मार्ग है।

रहूबियाम के जीवन से हम सीखते हैं कि हमें हमेशा परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए और उसके मार्ग पर चलना चाहिए। केवल तभी हम सच्चे आशीष और सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

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