एक बार की बात है, जब दाऊद राजा अपने महल में बैठे हुए थे। उनका मन बहुत व्याकुल था। चारों ओर शत्रुओं ने उन्हें घेर रखा था, और वे महसूस कर रहे थे कि उनकी स्थिति बहुत नाजुक है। उनके हृदय में भय और चिंता छाई हुई थी। ऐसे में, दाऊद ने परमेश्वर की ओर मुड़ने का निर्णय लिया। वे जानते थे कि केवल परमेश्वर ही उन्हें इस संकट से बचा सकते हैं।
दाऊद ने अपने कक्ष में प्रार्थना करने के लिए जाने का निर्णय लिया। वहां उन्होंने अपने हाथ आकाश की ओर उठाए और परमेश्वर से विनती करने लगे। उनकी आवाज़ में गहरी पीड़ा और विश्वास था। उन्होंने कहा, “हे यहोवा, मैं तेरी दोहाई देता हूं; हे मेरी चट्टान, मेरी ओर से बहरा मत हो। यदि तू मेरी ओर से चुप रहा, तो मैं उन लोगों के समान हो जाऊंगा जो गड्ढे में उतर जाते हैं।”
दाऊद की प्रार्थना में उनकी पीड़ा साफ झलक रही थी। वे जानते थे कि यदि परमेश्वर उनकी सुनवाई नहीं करेंगे, तो वे निराशा के गहरे गड्ढे में गिर जाएंगे। उन्होंने परमेश्वर से विनती की कि वे उनकी सुनें और उन्हें बचाएं। दाऊद ने कहा, “हे यहोवा, मेरी विनती सुन, जब मैं तुझ से प्रार्थना करता हूं, जब मैं अपने हाथ तेरे पवित्र मंदिर की ओर उठाता हूं।”
दाऊद ने परमेश्वर से यह भी विनती की कि वे उन्हें दुष्टों के साथ मत गिनें। उन्होंने कहा, “मुझे दुष्टों के साथ मत खींच, और उन अधर्मियों के साथ मत गिन, जो अपने पड़ोसियों से मीठी बातें करते हैं, पर उनके मन में बुराई छिपी होती है।” दाऊद जानते थे कि दुष्ट लोगों का अंत बुरा होता है, और वे नहीं चाहते थे कि उनका भी वही हश्र हो।
दाऊद ने परमेश्वर से कहा, “उनके कामों के अनुसार उन्हें दंड दे, और उनकी बुराई के अनुसार उन्हें सज़ा दे। उनके हाथों के कामों को देख, और उन्हें उनके कर्मों का फल दे।” दाऊद का विश्वास था कि परमेश्वर न्यायी हैं और वे दुष्टों को उनके कर्मों का फल अवश्य देंगे।
प्रार्थना करने के बाद, दाऊद का हृदय शांत हो गया। उन्हें विश्वास था कि परमेश्वर ने उनकी प्रार्थना सुन ली है। उन्होंने कहा, “धन्य है यहोवा, क्योंकि उसने मेरी विनती की सुनवाई की। यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है; मेरा मन उस पर भरोसा करता है, और मुझे सहायता मिली है। इसलिए मेरा हृदय आनन्द से मगन होता है, और मैं अपने गीतों से उसकी स्तुति करूंगा।”
दाऊद ने महसूस किया कि परमेश्वर उनके साथ हैं और उन्हें बचाएंगे। उनका विश्वास और भी दृढ़ हो गया। उन्होंने कहा, “यहोवा अपने लोगों का बल है, और अपने अभिषिक्त का उद्धार करने वाला दृढ़ गढ़ है। अपनी प्रजा को बचा, और अपनी निज भाग को आशीष दे; उन्हें चराओ, और उन्हें सदा के लिये उठाए रख।”
दाऊद की प्रार्थना और विश्वास ने उन्हें शक्ति दी। वे जानते थे कि परमेश्वर उनके साथ हैं और उन्हें कभी नहीं छोड़ेंगे। उनका हृदय आनन्द से भर गया, और उन्होंने परमेश्वर की स्तुति करने का निर्णय लिया। दाऊद ने अपने गीतों और भजनों के माध्यम से परमेश्वर की महिमा का गुणगान किया।
इस प्रकार, दाऊद ने परमेश्वर पर अपना पूरा भरोसा रखा और उनकी स्तुति की। उन्होंने जान लिया कि परमेश्वर ही उनकी शक्ति और उद्धार हैं। दाऊद की यह कहानी हमें सिखाती है कि जब हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं, तो वे हमारी सुनवाई करते हैं और हमें बचाते हैं। परमेश्वर हमारे जीवन की चट्टान हैं, और हमें उन पर पूरा भरोसा रखना चाहिए।