पवित्र बाइबल

यीशु का पुनरुत्थान: आशा और विश्वास की कहानी

लूका 24 का यह प्रसंग यीशु मसीह के पुनरुत्थान के बाद की घटनाओं को विस्तार से बताता है। यह एक ऐसी कहानी है जो आशा, विश्वास और परमेश्वर के वादों की पूर्ति को दर्शाती है। चलिए, इस कहानी को विस्तार से सुनाते हैं।

सूरज की पहली किरणें आकाश को सुनहरी रंग से रंग रही थीं, और यरूशलेम के बाहर की पहाड़ियों पर ओस की बूंदें चमक रही थीं। यह वह दिन था जब सब कुछ बदल गया। यीशु मसीह के शिष्य और अनुयायी अभी भी उनकी मृत्यु के दुःख में डूबे हुए थे। उनके हृदय भारी थे, और उनकी आँखों में आँसू थे। तीसरे दिन का सूरज उग चुका था, और कुछ महिलाएं यीशु की कब्र पर जाने के लिए तैयार हो रही थीं। उनके हाथों में सुगंधित तेल और मसाले थे, जिन्हें वे यीशु के शरीर पर लगाना चाहती थीं।

मरियम मगदलीनी, याकूब की माता मरियम, और कुछ अन्य महिलाएं कब्र की ओर चल पड़ीं। उनके मन में यह सवाल था कि कब्र के दरवाजे पर लगा भारी पत्थर कौन हटाएगा। लेकिन जब वे वहाँ पहुँचीं, तो उन्होंने देखा कि पत्थर हटा दिया गया था। उन्होंने कब्र के अंदर झाँका, लेकिन यीशु का शरीर वहाँ नहीं था। वे घबरा गईं और समझ नहीं पा रही थीं कि क्या हुआ है।

तभी, अचानक दो चमकीले वस्त्र पहने हुए व्यक्ति उनके सामने प्रकट हुए। उनका तेज इतना चमकीला था कि महिलाएं डर गईं और उन्होंने अपने चेहरे ढक लिए। उन दोनों ने कहा, “तुम जीवित को मरे हुओं में क्यों ढूँढ़ रही हो? वह यहाँ नहीं है, वह जी उठा है। उस बात को याद करो जो उसने तुमसे गलील में कही थी, कि मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथों पकड़वाया जाएगा, क्रूस पर चढ़ाया जाएगा, और तीसरे दिन जी उठेगा।”

महिलाओं के हृदय में आशा की एक किरण जगी। वे तुरंत वहाँ से दौड़कर शिष्यों के पास गईं और उन्हें सब कुछ बताया। लेकिन शिष्यों ने उनकी बात को मनोरंजन की तरह लिया और विश्वास नहीं किया। केवल पतरस ने उठकर कब्र की ओर दौड़ लगाई। जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने देखा कि कब्र खाली थी, और केवल कफन वहाँ पड़ा हुआ था। वह हैरान होकर वापस लौट आया।

उसी दिन, दो शिष्य यरूशलेम से एक गाँव की ओर जा रहे थे, जिसका नाम एम्माउस था। वे यीशु की मृत्यु और उनके बारे में हुई घटनाओं पर बात कर रहे थे। उनके चेहरे उदास थे, और उनके हृदय भारी थे। तभी, यीशु स्वयं उनके पास आकर उनके साथ चलने लगे, लेकिन उनकी आँखें उन्हें पहचानने से रोक दी गईं।

यीशु ने उनसे पूछा, “तुम किस बात पर बातें कर रहे हो, और तुम्हारे चेहरे इतने उदास क्यों हैं?” उनमें से एक, जिसका नाम क्लियोपास था, ने उत्तर दिया, “क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है, जो यह नहीं जानता कि इन दिनों में क्या हुआ है?” यीशु ने पूछा, “क्या हुआ है?”

उन्होंने कहा, “यीशु नासरी के बारे में, जो एक शक्तिशाली भविष्यद्वक्ता था, परमेश्वर और सब लोगों के सामने कर्म और वचन में। हमारे महायाजकों और अगुवों ने उसे पकड़वाया और क्रूस पर चढ़वा दिया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का छुटकारा करने वाला है। पर अब यह सब हुए तीन दिन हो गए हैं। और कुछ स्त्रियों ने हमें चकित किया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं। उन्होंने उसका शरीर नहीं पाया, और वे कहती हैं कि उन्होंने स्वर्गदूतों को देखा है, जो कहते हैं कि वह जीवित है।”

यीशु ने उनसे कहा, “हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दचित्तों! क्या मसीह को यह सब दुःख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करना अवश्य नहीं था?” फिर उसने मूसा और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके, पवित्रशास्त्र की सब बातों का अर्थ उन्हें समझाया, जो उसके विषय में कही गई थीं।

जब वे एम्माउस के निकट पहुँचे, तो यीशु ने आगे बढ़ने का अभिनय किया। लेकिन उन्होंने उसे बहुत आग्रह किया, “हमारे साथ रह, क्योंकि संध्या हो चली है, और दिन ढल गया है।” तब वह उनके साथ रहने के लिए अंदर गया। जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी ली, आशीष माँगी, और तोड़कर उन्हें दी। तभी उनकी आँखें खुल गईं, और उन्होंने उसे पहचान लिया। और वह उनकी आँखों से ओझल हो गया।

वे एक-दूसरे से बोले, “क्या हमारे हृदय हमारे बीच में जलते नहीं थे, जब वह मार्ग में हम से बातें करता था, और पवित्रशास्त्र का अर्थ हमें समझाता था?” वे तुरंत उठे और यरूशलेम लौट आए। वहाँ उन्होंने ग्यारहों शिष्यों और उनके साथियों को इकट्ठा पाया, जो कह रहे थे, “प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।”

तब उन दोनों ने भी बताया कि मार्ग में उन्हें क्या हुआ था, और कैसे उन्होंने रोटी तोड़ने में उसे पहचान लिया था। जब वे यह बातें कर रहे थे, तो यीशु स्वयं उनके बीच में आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” वे डर गए और समझे कि कोई भूत देख रहे हैं। लेकिन यीशु ने कहा, “क्यों घबराए हो? और क्यों तुम्हारे मन में सन्देह उठते हैं? मेरे हाथ और पैर देखो, कि मैं वही हूँ। मुझे छूकर देखो, क्योंकि भूत के मांस-हड्डियाँ नहीं होतीं, जैसा कि तुम देखते हो कि मेरे पास हैं।”

फिर उसने उन्हें अपने हाथ और पैर दिखाए। जब वे आश्चर्य और आनन्द से भर गए, तो उसने उनसे कहा, “क्या तुम्हारे पास यहाँ कुछ खाने को है?” उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया। उसने लेकर उनके सामने खाया। फिर उसने कहा, “यह वही बातें हैं, जो मैंने तुमसे कही थीं, कि जब मैं तुम्हारे साथ था, तो मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों में जो कुछ मेरे विषय में लिखा है, वह सब पूरा होना चाहिए।”

तब उसने उनकी समझ को खोल दिया, ताकि वे पवित्रशास्त्र को समझ सकें। और उसने उनसे कहा, “लिखा है, कि मसीह दुःख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। और उसके नाम से पश्चाताप और पापों की क्षमा का प्रचार सब जातियों में किया जाएगा, यरूशलेम से आरम्भ करके। तुम इन बातों के गवाह हो। और देखो, मैं अपने पिता की प्रतिज्ञा तुम पर भेजता हूँ। पर तुम ऊपर से सामर्थ्य पाने तक नगर में ठहरे रहो।”

यह कहकर यीशु उन्हें बैतनिय्याह तक ले गया, और उन पर हाथ रखकर आशीष दी। और जब वह उन्हें आशीष दे रहा था, तो वह उनसे अलग हो गया, और स्वर्ग पर उठा लिया गया। शिष्यों ने उसे दण्डवत् किया, और बड़े आनन्द से यरूशलेम लौट आए। और वे मन्दिर में लगातार रहकर परमेश्वर की स्तुति करते रहे।

यह कहानी हमें याद दिलाती है कि यीशु मसीह का पुनरुत्थान सच्चा है, और उसने अपने वचनों को पूरा किया है। उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने हमें पाप से छुटकारा दिलाया है, और उसकी आशीषें हमारे साथ हैं। हमें भी उसकी गवाही देने के लिए बुलाया गया है, जैसे उसने अपने शिष्यों से कहा था।

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