**कहानी: सलपहद की बेटियों की विरासत (गिनती 27)**
उस समय इस्राएल के लोग मोआब के मैदान में डेरे डाले हुए थे। वे यरदन नदी के पूर्वी किनारे पर खड़े थे, जहाँ से वादा किए हुए देश कनान का दृश्य दिखाई देता था। मूसा, इस्राएल का महान नेता, परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध रखता था और उसके मार्गदर्शन में लोगों को आगे बढ़ा रहा था। लेकिन उस समय एक अनोखी घटना घटी, जिसने इस्राएल के न्याय और परमेश्वर की इच्छा के बारे में गहरी शिक्षा दी।
सलपहद नामक एक व्यक्ति था, जो यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश से था। सलपहद की कोई पुत्र नहीं था, केवल पाँच बेटियाँ थीं—महला, नोआ, होगला, मिल्का और तिर्सा। सलपहद की मृत्यु हो चुकी थी, और उसकी बेटियाँ अपने पिता की विरासत को लेकर चिंतित थीं। उस समय के नियम के अनुसार, विरासत केवल पुत्रों को ही मिलती थी, और चूँकि सलपहद के कोई पुत्र नहीं था, उसकी संपत्ति उसके भाइयों को चली जाती। लेकिन सलपहद की बेटियों ने सोचा कि क्या उनके पिता का नाम और उसकी विरासत उसके वंश से मिट जाएगी?
एक दिन, महला, नोआ, होगला, मिल्का और तिर्सा ने साहस जुटाया और मिलापवाले तंबू के पास गईं। वहाँ मूसा, हारून, और इस्राएल के सभी प्रधान लोग इकट्ठे थे। बेटियों ने विनम्रता से मूसा के सामने खड़े होकर कहा, “हमारे पिता की मृत्यु हो चुकी है, और उसके कोई पुत्र नहीं था। क्या हमारे पिता का नाम उसके वंश से मिट जाएगा? क्या हमें भी उसकी विरासत में हिस्सा नहीं मिलना चाहिए?”
मूसा ने उनकी बात सुनी और उनकी समस्या को गंभीरता से लिया। वह जानता था कि यह एक जटिल मामला है, और उसने परमेश्वर से परामर्श करने का निर्णय लिया। मूसा ने परमेश्वर के सामने प्रार्थना की और उनकी इच्छा जानने की कोशिश की। परमेश्वर ने मूसा से बात की और कहा, “सलपहद की बेटियों का कहना ठीक है। तू उन्हें उनके पिता की विरासत में हिस्सा दे। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और उसके कोई पुत्र न हो, तो उसकी विरासत उसकी बेटियों को दी जाए। यदि बेटियाँ भी न हों, तो उसके भाइयों को दी जाए। यदि भाई भी न हों, तो उसके निकटतम रिश्तेदार को दी जाए। यह इस्राएल के लिए एक नियम होगा।”
मूसा ने परमेश्वर के वचन को सुना और उसे इस्राएल के सामने प्रकट किया। उसने सलपहद की बेटियों को बुलाया और कहा, “परमेश्वर ने तुम्हारे पक्ष में निर्णय दिया है। तुम्हें तुम्हारे पिता की विरासत में हिस्सा मिलेगा। यह इस्राएल के लिए एक नियम होगा कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और उसके कोई पुत्र न हो, तो उसकी विरासत उसकी बेटियों को दी जाए।”
सलपहद की बेटियों ने मूसा के सामने सिर झुकाया और परमेश्वर का धन्यवाद किया। वे खुश थीं कि उनके पिता का नाम और उसकी विरासत उसके वंश में बनी रहेगी। उन्होंने परमेश्वर की प्रशंसा की, जो न्यायी और दयालु है, और जो हर एक की आवाज सुनता है।
यह घटना इस्राएल के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा थी। इससे यह स्पष्ट हुआ कि परमेश्वर का न्याय सभी के लिए समान है, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। परमेश्वर ने सलपहद की बेटियों की प्रार्थना सुनी और उनके अधिकारों की रक्षा की। इस्राएल के लोगों ने इस घटना से सीखा कि परमेश्वर की इच्छा हमेशा न्याय और समानता की ओर होती है।
इस प्रकार, सलपहद की बेटियों की कहानी इस्राएल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गई। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और हमारे अधिकारों की रक्षा करता है। वह हमेशा न्याय और दया के साथ हमारे साथ खड़ा रहता है।