पवित्र बाइबल

परमेश्वर की पवित्रता और याजकों की आज्ञाकारिता

लैव्यवस्था 22 की कहानी हिंदी में:

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोग सीनै पर्वत के पास डेरा डाले हुए थे। वे परमेश्वर के नियमों और आदेशों को सीख रहे थे, और मूसा उन्हें परमेश्वर की व्यवस्था सिखा रहा था। परमेश्वर ने मूसा से कहा, “हारून और उसके पुत्रों से कहो कि वे इस्राएल के पवित्र भेंटों का ध्यान रखें, जो मुझे अर्पित की जाती हैं। वे मेरे पवित्र नाम का सम्मान करें और मेरी व्यवस्था का पालन करें।”

परमेश्वर ने आगे कहा, “यदि कोई याजक अशुद्ध हो, तो वह पवित्र भेंट को न छुए। चाहे वह अशुद्धि शारीरिक हो, जैसे कोई चर्म रोग या शारीरिक दोष, या फिर वह किसी मृतक को छूने से अशुद्ध हो गया हो। ऐसा याजक जब तक शुद्ध न हो जाए, तब तक वह पवित्र भेंट को न छुए। यह मेरी व्यवस्था है, और इसे तोड़ने वाला दंड का भागी होगा।”

परमेश्वर ने यह भी कहा, “याजकों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे केवल उन्हीं जानवरों को भेंट के रूप में चुनें जो निर्दोष और स्वस्थ हों। कोई भी जानवर जो अंधा, लंगड़ा, बीमार, या किसी तरह के दोष से ग्रस्त हो, वह परमेश्वर के लिए स्वीकार्य नहीं है। यह मेरी पवित्रता का प्रतीक है, और मेरी भेंट पूर्ण और निर्दोष होनी चाहिए।”

मूसा ने यह सब हारून और उसके पुत्रों को सुनाया। हारून ने गंभीरता से इन आदेशों को सुना और अपने पुत्रों से कहा, “हमें परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना चाहिए। हमें उसकी पवित्रता का सम्मान करना चाहिए और केवल उन्हीं भेंटों को चुनना चाहिए जो उसके लिए स्वीकार्य हैं।”

हारून के पुत्रों ने भी इस बात को गंभीरता से लिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वे केवल उन्हीं जानवरों को भेंट के रूप में चुनें जो पूर्ण और निर्दोष हों। उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि यदि वे किसी तरह से अशुद्ध हों, तो वे पवित्र भेंट को न छुएं, जब तक कि वे शुद्ध न हो जाएं।

एक दिन, हारून के एक पुत्र नादाब ने एक भेंट चुनी जो थोड़ी लंगड़ी थी। उसने सोचा कि शायद परमेश्वर इसे स्वीकार कर लेगा, क्योंकि वह जानवर अन्यथा स्वस्थ था। लेकिन जब हारून ने इसे देखा, तो उसने नादाब से कहा, “पुत्र, तुमने परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन किया है। परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भेंट निर्दोष होनी चाहिए। तुम्हें इस भेंट को वापस ले जाना चाहिए और एक निर्दोष जानवर चुनना चाहिए।”

नादाब ने अपने पिता की बात मानी और उसने लंगड़े जानवर को वापस ले जाकर एक निर्दोष जानवर चुना। उसने परमेश्वर से क्षमा मांगी और उस दिन से उसने यह सुनिश्चित किया कि वह केवल उन्हीं भेंटों को चुने जो परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार हों।

इस तरह, इस्राएल के याजकों ने परमेश्वर की पवित्रता का सम्मान किया और उसकी व्यवस्था का पालन किया। वे जानते थे कि परमेश्वर की भेंट पूर्ण और निर्दोष होनी चाहिए, क्योंकि वह स्वयं पवित्र और निर्दोष है। उन्होंने यह भी सीखा कि परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना उसके प्रति आज्ञाकारिता और प्रेम का प्रतीक है।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परमेश्वर की पवित्रता का सम्मान करना और उसकी व्यवस्था का पालन करना हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम जो कुछ भी परमेश्वर को अर्पित करें, वह पूर्ण और निर्दोष हो, क्योंकि वह हमारे जीवन के हर पहलू में पवित्रता चाहता है।

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