पवित्र बाइबल

कुम्हार और मिट्टी: परमेश्वर की दया और न्याय की कहानी

यिर्मयाह 18 की कहानी हिंदी में:

एक दिन, परमेश्वर का वचन यिर्मयाह नबी के पास आया। परमेश्वर ने उससे कहा, “यिर्मयाह, उठ और कुम्हार के घर जा। वहाँ मैं तुझे अपना संदेश दूंगा।” यिर्मयाह ने परमेश्वर की आज्ञा मानी और कुम्हार के घर की ओर चल पड़ा। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि कुम्हार अपने चाक पर मिट्टी के बर्तन बना रहा है।

कुम्हार ने मिट्टी को अपने हाथों से सावधानी से गूंथा और उसे चाक पर रखा। चाक घूमने लगा और कुम्हार ने मिट्टी को धीरे-धीरे आकार देना शुरू किया। यिर्मयाह ने देखा कि जब बर्तन बनते समय कोई त्रुटि होती, तो कुम्हार उसे फिर से मिट्टी का गोला बना देता और नए सिरे से शुरू करता। इस प्रक्रिया में कुम्हार का धैर्य और कौशल स्पष्ट था।

तब परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा, “क्या तूने देखा कि कुम्हार ने मिट्टी के साथ क्या किया? जैसे मिट्टी कुम्हार के हाथों में है, वैसे ही इस्राएल के घराने के लोग मेरे हाथों में हैं। यदि मैं किसी राष्ट्र या राज्य के विषय में यह घोषणा करूं कि मैं उसे उखाड़ूंगा, नाश करूंगा और नष्ट करूंगा, और यदि वह राष्ट्र मेरी बात मानकर अपने बुरे कामों से फिर जाए, तो मैं भी उस आपदा के विषय में जो मैंने उस पर लाने की सोची थी, पछताऊंगा।”

परमेश्वर ने आगे कहा, “और यदि मैं किसी राष्ट्र या राज्य के विषय में यह घोषणा करूं कि मैं उसे बनाऊंगा और रोपूंगा, और यदि वह राष्ट्र मेरी आज्ञा न माने और मेरी इच्छा के विरुद्ध काम करे, तो मैं भी उस भलाई के विषय में जो मैंने उसे दिखाने की सोची थी, पछताऊंगा।”

यिर्मयाह ने परमेश्वर के इन वचनों को गंभीरता से सुना और समझा कि परमेश्वर का न्याय और दया दोनों ही उसकी इच्छा और मनुष्य के प्रति उसकी प्रतिक्रिया पर निर्भर करते हैं। परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा, “अब जाओ और यहूदा के लोगों और यरूशलेम के निवासियों से कहो कि परमेश्वर यह कहता है: देखो, मैं तुम्हारे विरुद्ध आपदा की योजना बना रहा हूं। इसलिए तुम में से हर एक अपने बुरे मार्ग से फिरे और अपने कामों और विचारों को सुधारे।”

यिर्मयाह ने परमेश्वर का संदेश लोगों तक पहुँचाया, लेकिन लोगों ने उसकी बात नहीं सुनी। उन्होंने कहा, “हम अपने मार्ग पर चलते रहेंगे। हम में से हर एक अपनी हठीली और बुरी इच्छा के अनुसार काम करेगा।” यिर्मयाह ने देखा कि लोगों के हृदय कठोर हो गए हैं और वे परमेश्वर की ओर लौटने को तैयार नहीं हैं।

अंत में, यिर्मयाह ने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, तूने उन्हें चेतावनी दी है, लेकिन उन्होंने तेरी बात नहीं सुनी। अब तू ही उनके साथ न्याय कर।” परमेश्वर ने यिर्मयाह की प्रार्थना सुनी और उसे आश्वासन दिया कि वह न्याय करेगा और अपने वचन को पूरा करेगा।

इस प्रकार, यिर्मयाह 18 की कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर हमारे जीवन के कुम्हार हैं और हम उसके हाथों में मिट्टी के समान हैं। यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार चलें, तो वह हमें सुंदर रूप देगा, लेकिन यदि हम उसकी आज्ञा का उल्लंघन करें, तो वह हमें दंडित करेगा। परमेश्वर की दया और न्याय दोनों ही उसकी पवित्रता और प्रेम को प्रकट करते हैं।

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