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यशायाह 31: मानवीय सहारे की निरर्थकता और परमेश्वर की सुरक्षा

यशायाह 31 की कहानी को एक विस्तृत और जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हुए, हम इस्राएल के इतिहास के एक महत्वपूर्ण पल को दर्शाएंगे। यह कहानी उस समय की है जब यहूदा के लोग संकट में थे और उन्होंने परमेश्वर के बजाय मानवीय सहारे की ओर देखा। यशायाह नबी के माध्यम से परमेश्वर ने उन्हें चेतावनी दी और उन्हें सच्चे विश्वास की ओर लौटने का आह्वान किया।

### यशायाह 31: मानवीय सहारे की निरर्थकता और परमेश्वर की सुरक्षा

यरूशलेम शहर में एक गहरी चिंता छाई हुई थी। असीरिया का शक्तिशाली साम्राज्य, जो उत्तर से आगे बढ़ रहा था, यहूदा के लोगों के लिए एक बड़ा खतरा बन गया था। उनके राजा हिजकिय्याह और उनके सलाहकार इस संकट से निपटने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बना रहे थे। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि मिस्र की सेना से सहायता माँगी जाए, क्योंकि मिस्र भी एक शक्तिशाली राष्ट्र था और उसके पास बड़ी संख्या में रथ और घोड़े थे। यहूदा के लोगों ने सोचा कि मिस्र की सहायता से वे असीरिया के आक्रमण को रोक सकते हैं।

लेकिन यशायाह नबी, जो परमेश्वर की ओर से बोलता था, ने इस योजना को गलत बताया। वह यरूशलेम की गलियों में चिल्लाता हुआ घूमता था और लोगों को चेतावनी देता था। उसने कहा, “हे यहूदा के लोगो, तुम क्यों मिस्र के घोड़ों और रथों पर भरोसा करते हो? क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर ही सच्चा सहारा है? वह जो स्वर्ग में बैठा है, वही तुम्हारी रक्षा कर सकता है। मिस्र के घोड़े और सैनिक तुम्हें नहीं बचा सकते। परमेश्वर ने कहा है, ‘मिस्र मनुष्य है, परमेश्वर नहीं; उनके घोड़े मांस हैं, आत्मा नहीं। जब परमेश्वर अपना हाथ बढ़ाएगा, तो वह जो सहारा देता है वह गिर जाएगा, और जो सहारा लेता है वह भी नष्ट हो जाएगा।'”

यशायाह की आवाज़ में एक गहरी गंभीरता थी। उसने लोगों को याद दिलाया कि परमेश्वर ने अतीत में कैसे उनकी रक्षा की थी। उसने कहा, “क्या तुम भूल गए हो कि कैसे परमेश्वर ने लाल समुद्र को फाड़ दिया और तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र की दासता से छुड़ाया? क्या तुम भूल गए हो कि कैसे उसने यरीहो की दीवारें गिरा दीं और तुम्हें वादा किया हुआ देश दिया? परमेश्वर ही तुम्हारा सच्चा रक्षक है, न कि मिस्र के घोड़े या असीरिया के हथियार।”

लेकिन यहूदा के लोगों ने यशायाह की बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्होंने मिस्र से सहायता माँगी और उनके साथ संधि कर ली। वे सोचते थे कि मिस्र की शक्ति उन्हें असीरिया से बचा लेगी। लेकिन यशायाह ने फिर से चेतावनी दी, “तुम्हारा विश्वास गलत जगह पर है। परमेश्वर ने कहा है, ‘जो मिस्र पर भरोसा करते हैं, वे निराश होंगे। जो घोड़ों और रथों पर भरोसा करते हैं, वे शर्मिंदा होंगे। परन्तु जो परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, वे सदैव सुरक्षित रहेंगे।'”

यशायाह ने यह भी कहा कि परमेश्वर यरूशलेम की रक्षा करेगा, जैसे एक शेर अपने शिकार की रक्षा करता है। उसने कहा, “परमेश्वर यरूशलेम के लिए लड़ेगा। वह असीरिया की सेना को हराएगा और उन्हें शर्मिंदा करेगा। वह अपने लोगों को बचाएगा, क्योंकि वह उनसे प्रेम करता है।”

अंत में, यशायाह ने लोगों से आह्वान किया कि वे परमेश्वर की ओर लौटें। उसने कहा, “हे यहूदा के लोगो, अपने हृदय को परमेश्वर की ओर मोड़ो। उस पर भरोसा रखो, क्योंकि वही तुम्हारा सच्चा सहारा है। यदि तुम उसकी आज्ञा मानोगे और उस पर विश्वास करोगे, तो वह तुम्हें हर संकट से बचाएगा।”

यशायाह के शब्दों में एक गहरी सच्चाई थी, लेकिन कई लोगों ने उसकी बातों को नहीं सुना। वे अपने मानवीय सहारे पर भरोसा करते रहे। लेकिन जैसा कि यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, परमेश्वर ने यरूशलेम की रक्षा की। असीरिया की सेना यरूशलेम के द्वार तक पहुँच गई, लेकिन परमेश्वर ने एक रात में ही उनके 1,85,000 सैनिकों को मार डाला। असीरिया का राजा संन्हेरीब शर्मिंदा होकर वापस लौट गया।

इस घटना ने यहूदा के लोगों को यह सिखाया कि परमेश्वर ही उनका सच्चा रक्षक है। यशायाह की भविष्यवाणी सच साबित हुई, और लोगों ने महसूस किया कि मानवीय सहारे की निरर्थकता और परमेश्वर की सुरक्षा की महानता।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें हर परिस्थिति में परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। मानवीय सहारे और शक्ति पर निर्भर रहने के बजाय, हमें परमेश्वर की ओर मुड़ना चाहिए, क्योंकि वही हमारा सच्चा रक्षक और सहारा है।

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