यहेज्केल 47 में वर्णित घटना एक अद्भुत और आध्यात्मिक रूप से गहन प्रकरण है, जो भविष्यद्वक्ता यहेज्केल के दर्शन में घटित होता है। यह दर्शन मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र में होने वाली एक अलौकिक घटना को दर्शाता है, जो परमेश्वर की महिमा और उसकी कृपा को प्रकट करता है। यह कहानी हिंदी में विस्तार से इस प्रकार है:
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यहेज्केल, परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता, को एक दर्शन दिया गया। वह उस समय बाबुल की बंधुआई में थे, लेकिन परमेश्वर की आत्मा ने उन्हें यरूशलेम के मंदिर में ले जाकर एक अद्भुत दृश्य दिखाया। वह मंदिर के द्वार पर खड़े थे, जब अचानक उन्होंने देखा कि मंदिर के पूर्वी द्वार से पानी की एक धारा निकल रही है। यह पानी धीरे-धीरे बह रहा था, और यहेज्केल को आश्चर्य हुआ कि यह पानी कहाँ से आ रहा है।
परमेश्वर ने यहेज्केल से कहा, “हे मनुष्य के सन्तान, इस पानी के मार्ग को देख और इसके प्रवाह को समझ।” यहेज्केल ने देखा कि पानी मंदिर के दक्षिणी कोने से निकलकर पूर्व की ओर बह रहा था। वह पानी धीरे-धीरे बढ़ता गया, और यहेज्केल को आश्चर्य हुआ कि यह पानी कितना शुद्ध और जीवनदायी है।
परमेश्वर ने यहेज्केल को आदेश दिया कि वह इस पानी के साथ चले और उसकी गहराई को मापे। यहेज्केल ने ऐसा ही किया। जब वह पानी में घुसे, तो उन्होंने पाया कि पानी उनके टखनों तक पहुँच गया है। वह आगे बढ़े, और पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया। फिर वह और आगे बढ़े, और पानी उनकी कमर तक आ गया। अंत में, जब वह और आगे बढ़े, तो पानी इतना गहरा हो गया कि वह उसमें तैरने लगे। यह पानी एक नदी बन गया, जो तेजी से बह रही थी।
यहेज्केल ने देखा कि यह नदी मरुस्थल से होकर बहती हुई मृत सागर की ओर जा रही थी। जहाँ कहीं भी यह पानी बहता, वहाँ जीवन फूट पड़ता। नदी के किनारे हरे-भरे पेड़ उग आए, जिनके पत्ते कभी नहीं मुरझाते थे और जिनके फल हर मौसम में लगते थे। ये पेड़ न केवल सुंदर थे, बल्कि उनके फल भोजन के लिए और उनके पत्ते औषधि के लिए उपयोगी थे।
जब यह नदी मृत सागर में गिरी, तो उसका खारा पानी मीठा हो गया। मृत सागर, जो अपने नमकीन पानी के कारण जीवन से रहित था, अब जीवन से भर गया। उसमें मछलियाँ तैरने लगीं, और मछुआरे उसके किनारे बैठकर अपने जाल डालने लगे। यह एक चमत्कार था, जो परमेश्वर की कृपा और उसकी सामर्थ्य को दर्शाता था।
यहेज्केल ने परमेश्वर से पूछा, “हे प्रभु, यह सब क्या है? यह पानी कहाँ से आया है, और यह इतना जीवनदायी क्यों है?” परमेश्वर ने उत्तर दिया, “यह पानी मेरे मंदिर से निकलता है। यह मेरी उपस्थिति और मेरी कृपा का प्रतीक है। जहाँ कहीं भी यह पानी बहता है, वहाँ जीवन फूट पड़ता है। यह उन सभी के लिए आशीष है, जो मेरे पास आते हैं और मेरे वचन को मानते हैं।”
यहेज्केल ने इस दर्शन को गहराई से समझा। उन्होंने देखा कि परमेश्वर की कृपा और उसकी आत्मा का प्रवाह हर उस स्थान को जीवन देता है, जो सूखा और निर्जीव है। यह नदी मसीह के जीवनदायी जल का प्रतीक थी, जो सभी को शुद्ध करता है और उन्हें नया जीवन देता है।
इस दर्शन के माध्यम से, परमेश्वर ने यहेज्केल को यह संदेश दिया कि वह अपने लोगों को पुनर्स्थापित करेगा और उन्हें नया जीवन देगा। यह नदी उसकी प्रतिज्ञा का प्रतीक थी कि वह अपने लोगों के साथ रहेगा और उन्हें आशीष देगा। यहेज्केल ने इस संदेश को अपने लोगों तक पहुँचाया, ताकि वे परमेश्वर की महिमा और उसकी कृपा को समझ सकें।
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यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर की उपस्थिति और उसकी कृपा हर स्थान को जीवन दे सकती है। चाहे हमारा जीवन कितना भी सूखा और निर्जीव क्यों न हो, परमेश्वर का जीवनदायी जल हमें नया जीवन दे सकता है। यहेज्केल का यह दर्शन हमें यह आशा देता है कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ है और वह हमें आशीष देने के लिए तैयार है।