एक बार की बात है, जब इस्राएल के लोग मिस्र की गुलामी से छूटकर वादा किए हुए देश की ओर जा रहे थे। उनका मार्गदर्शन करने वाला कोई और नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर थे। परमेश्वर ने मूसा के माध्यम से उन्हें नियम और आज्ञाएं दीं, ताकि वे उनके साथ सही संबंध बनाए रख सकें। इन आज्ञाओं में से एक थी भेंट चढ़ाने की विधि, जो लेव्यव्यवस्था के दूसरे अध्याय में वर्णित है।
एक दिन, एक इस्राएली व्यक्ति, जिसका नाम एलीशाफा था, ने परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिए एक अन्न की भेंट चढ़ाने का निर्णय लिया। एलीशाफा एक साधारण किसान था, जो अपने खेतों में गेहूं और जौ उगाता था। उसने सोचा कि परमेश्वर ने उसे अच्छी फसल दी है, इसलिए वह उन्हें अपने उत्तम अन्न का एक हिस्सा अर्पित करेगा।
एलीशाफा ने अपने खेत से सबसे अच्छा महीन आटा चुना। उसने आटे को एक साफ बर्तन में डाला और उसमें जैतून का तेल मिलाया। तेल की सुगंध हवा में फैल गई, और एलीशाफा ने महसूस किया कि यह भेंट परमेश्वर को प्रसन्न करेगी। फिर उसने आटे में थोड़ा सा लोबान डाला, जो परमेश्वर के लिए सुगंधित धूप का प्रतीक था। लोबान की मीठी खुशबू ने उसके हृदय को शांति से भर दिया।
एलीशाफा ने यह सब तैयार करने के बाद, उसे एक साफ कपड़े में लपेटा और अपने गाँव के पास स्थित पवित्र तंबू की ओर चल पड़ा। पवित्र तंबू वह स्थान था जहां परमेश्वर की उपस्थिति विद्यमान थी, और याजक वहां भेंट चढ़ाते थे। एलीशाफा ने तंबू के द्वार पर पहुंचकर याजक को अपनी भेंट सौंपी। याजक ने उसकी भेंट को स्वीकार किया और उसे वेदी पर रख दिया।
याजक ने एलीशाफा से कहा, “तुम्हारी भेंट परमेश्वर को प्रसन्न करेगी। यह अन्न की भेंट है, जो उनके प्रति हमारी कृतज्ञता और समर्पण का प्रतीक है।” याजक ने भेंट का एक हिस्सा वेदी पर जलाया, और धुआं आकाश की ओर उठने लगा। एलीशाफा ने देखा कि धुआं परमेश्वर की ओर बढ़ रहा है, और उसने महसूस किया कि उसकी प्रार्थना और भेंट स्वीकार की गई है।
याजक ने एलीशाफा को समझाया कि अन्न की भेंट में नमक भी डाला जाना चाहिए, क्योंकि नमक परमेश्वर के साथ हमारे अनंत वाचा का प्रतीक है। एलीशाफा ने यह सुनकर अपने हृदय में और भी अधिक आनंद महसूस किया। उसने सोचा कि परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता नमक की तरह है, जो कभी खत्म नहीं होता।
भेंट चढ़ाने के बाद, एलीशाफा ने याजक को धन्यवाद दिया और पवित्र तंबू से वापस अपने घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसने सोचा कि परमेश्वर ने उसे न केवल अच्छी फसल दी है, बल्कि उसे अपने प्रेम और अनुग्रह का अनुभव करने का अवसर भी दिया है। उसने महसूस किया कि भेंट चढ़ाना केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि परमेश्वर के साथ एक गहरा संबंध बनाने का तरीका है।
एलीशाफा के घर पहुंचने पर, उसने अपने परिवार को सारी कहानी सुनाई। उसकी पत्नी और बच्चों ने भी परमेश्वर की महिमा की और उन्हें धन्यवाद दिया। उस रात, एलीशाफा ने सपना देखा कि वह एक विशाल खेत में खड़ा है, जहां अन्न की बालियां आकाश तक पहुंच रही हैं। उसने महसूस किया कि यह परमेश्वर का आशीर्वाद है, और उसने प्रण किया कि वह हमेशा परमेश्वर के प्रति वफादार रहेगा।
इस तरह, एलीशाफा की अन्न की भेंट ने न केवल परमेश्वर को प्रसन्न किया, बल्कि उसके हृदय को भी शुद्ध और प्रेम से भर दिया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर के प्रति हमारी भेंट और आज्ञाकारिता हमारे जीवन को आशीषों से भर देती है।