उस समय, जब पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ गया था, और मनुष्यों के मन में बुरे विचार ही भरे हुए थे, परमेश्वर ने देखा कि मनुष्य का हृदय सदा बुराई की ओर ही झुका रहता है। उसने पृथ्वी पर जो कुछ बनाया था, उस पर बहुत दुख हुआ। तब परमेश्वर ने नूह से कहा, “मैं संसार के सभी प्राणियों को नष्ट करने का निर्णय ले चुका हूँ, क्योंकि पृथ्वी उनके अत्याचारों से भर गई है। इसलिए, तू एक जहाज बनाएगा, और उसमें अपने परिवार और सभी जीवित प्राणियों को बचाएगा।”
नूह ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया। उसने एक विशाल जहाज बनाना शुरू किया, जिसे “जलपोत” कहा गया। यह जहाज लकड़ी के मजबूत तख्तों से बना था और उसके अंदर कई कमरे बनाए गए थे। नूह ने उसे पिच से ढक दिया ताकि पानी अंदर न घुस सके। जहाज की लंबाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई तीस हाथ थी। इसमें तीन मंजिलें थीं, और एक दरवाजा और एक खिड़की बनाई गई थी।
जब जहाज तैयार हो गया, तो परमेश्वर ने नूह से कहा, “तू और तेरा पूरा परिवार जहाज में प्रवेश कर जाए, क्योंकि मैं देखता हूँ कि इस पीढ़ी में केवल तू ही मेरी दृष्टि में धर्मी है। साथ ही, सभी प्रकार के जीवित प्राणियों में से नर और मादा को एक-एक जोड़ा लेकर जहाज में ले आएगा, ताकि वे तेरे साथ बच सकें। पक्षियों, पशुओं और रेंगने वाले जीवों में से हर एक प्रजाति का एक जोड़ा तेरे पास आएगा।”
नूह ने वैसा ही किया। उसने अपनी पत्नी, अपने तीन बेटों—शेम, हाम और येपेत—और उनकी पत्नियों को जहाज में ले लिया। फिर, सभी प्रकार के जीवित प्राणी, जैसे परमेश्वर ने आज्ञा दी थी, नर और मादा के जोड़े में जहाज में आ गए। पक्षी, पशु, और सभी रेंगने वाले जीव, हर एक प्रजाति से एक जोड़ा, नूह के पास आया। परमेश्वर ने उन्हें जहाज में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया।
सात दिन बाद, पृथ्वी पर जलप्रलय आ गया। उस समय नूह छह सौ वर्ष का था। उसी दिन, आकाश के सारे स्रोत फट गए, और पृथ्वी के गहरे स्रोत खुल गए। आकाश से मूसलाधार बारिश होने लगी, और पृथ्वी के नीचे से पानी उबलकर बाहर आने लगा। यह बारिश चालीस दिन और चालीस रात तक लगातार होती रही। पानी इतना बढ़ गया कि पृथ्वी के सभी ऊँचे पहाड़ डूब गए। पानी पंद्रह हाथ ऊपर उठ गया, और सारी पृथ्वी पानी से ढक गई।
पृथ्वी पर जो कुछ भी जीवित था, वह सब नष्ट हो गया। मनुष्य, पशु, रेंगने वाले जीव और पक्षी, सभी पानी में डूबकर मर गए। केवल नूह और जो उसके साथ जहाज में थे, वे ही बचे रहे। पानी पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक बना रहा।
इस प्रकार, परमेश्वर ने अपनी योजना के अनुसार पृथ्वी को शुद्ध किया। नूह और उसके परिवार, साथ ही जहाज में सुरक्षित सभी जीवित प्राणी, परमेश्वर की कृपा से बच गए। यह घटना परमेश्वर की न्यायप्रियता और दया दोनों को दर्शाती है। उसने पापी संसार को दंड दिया, लेकिन अपने वचन के अनुसार धर्मी नूह और उसके परिवार को बचाया। इस तरह, जलप्रलय की कहानी हमें परमेश्वर की सत्ता और उसकी योजना की महानता का स्मरण दिलाती है।