भजन संहिता 41 एक ऐसा भजन है जो परमेश्वर की करुणा और उनकी सुरक्षा के प्रति विश्वास को दर्शाता है। यह भजन दाऊद के जीवन से जुड़ा हुआ है, जो अपने कठिन समय में परमेश्वर की शरण में जाता है और उनकी दया पर भरोसा करता है। आइए, इस भजन को एक विस्तृत कहानी के रूप में देखें, जो दाऊद के जीवन की घटनाओं को उजागर करती है।
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### दाऊद की पीड़ा और परमेश्वर की करुणा
एक समय की बात है, जब दाऊद, इस्राएल के महान राजा, गहरी पीड़ा और बीमारी से जूझ रहे थे। उनका शरीर कमजोर हो गया था, और उनकी आत्मा भारी थी। वे अपने महल में अकेले पड़े हुए थे, और उनके चारों ओर अंधकार छा गया था। उनके मित्र और सलाहकार भी उनसे दूर हो गए थे, और उनके विरोधी उनकी कमजोरी का फायदा उठाने के लिए तैयार थे।
दाऊद ने अपने हृदय में परमेश्वर को पुकारा, “हे यहोवा, मुझ पर दया कर! मैं दीन-हीन हूँ, मेरी आत्मा पीड़ा से भरी हुई है। तू ही मेरा सहारा है, तू ही मेरी शक्ति है।”
परमेश्वर ने दाऊद की पुकार सुनी। वे उसके निकट आए और उसके दुख को देखा। परमेश्वर की करुणा दाऊद पर बरसी, और उन्होंने उसे सांत्वना दी। दाऊद ने महसूस किया कि परमेश्वर उसके साथ है, और उसकी आत्मा में शांति आने लगी।
### विश्वासघात और धोखे का सामना
लेकिन दाऊद की परीक्षा अभी खत्म नहीं हुई थी। उसके अपने ही घर में और उसके आसपास के लोगों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। उसके करीबी मित्र, जिन पर उसे भरोसा था, उन्होंने भी उसे धोखा दिया। वे उसकी कमजोरी का फायदा उठाने के लिए तैयार थे, और उसके विरुद्ध बुरी योजनाएँ बनाने लगे।
दाऊद ने देखा कि उसके शत्रु उसकी बीमारी के बारे में बातें कर रहे थे। वे कहते थे, “अब दाऊद का अंत निकट है। उसकी बीमारी उसे मार डालेगी, और हमें उससे छुटकारा मिल जाएगा।” यह सुनकर दाऊद का हृदय टूट गया, लेकिन उसने परमेश्वर पर भरोसा नहीं छोड़ा।
दाऊद ने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे यहोवा, मेरे शत्रु मेरे विरुद्ध बुराई की योजना बना रहे हैं। वे मेरी मृत्यु की कामना करते हैं। कृपया मुझे बचा और मेरी सहायता कर।”
### परमेश्वर की सुरक्षा और विजय
परमेश्वर ने दाऊद की प्रार्थना सुनी और उसकी रक्षा की। उन्होंने दाऊद को उसके शत्रुओं के षड्यंत्र से बचाया और उसे नई शक्ति प्रदान की। दाऊद की बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगी, और उसका शरीर फिर से मजबूत हो गया। उसकी आत्मा में खुशी लौट आई, और उसने परमेश्वर की स्तुति करना शुरू कर दिया।
दाऊद ने कहा, “धन्य है वह व्यक्ति जो दीन-हीनों की सहायता करता है। परमेश्वर उसे संकट के दिन में बचाएगा और उसे आशीर्वाद देगा। मैंने परमेश्वर पर भरोसा रखा, और उन्होंने मेरी रक्षा की। मेरे शत्रु मुझे हानि नहीं पहुँचा सके।”
दाऊद ने महसूस किया कि परमेश्वर की करुणा और उनकी सुरक्षा उसके साथ थी। उसने अपने हृदय से परमेश्वर का धन्यवाद किया और कहा, “हे यहोवा, तू सदैव मेरे साथ रहा है। तूने मुझे मेरे शत्रुओं से बचाया है, और मैं तेरी महिमा का वर्णन करूंगा।”
### परमेश्वर की महिमा
दाऊद ने अपने जीवन के इस कठिन समय में परमेश्वर की महिमा का अनुभव किया। उसने देखा कि परमेश्वर उन लोगों को आशीर्वाद देते हैं जो दीन-हीनों की सहायता करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। दाऊद ने अपने अनुभव को भजन संहिता 41 में लिखा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी परमेश्वर की करुणा और उनकी सुरक्षा के बारे में जान सकें।
दाऊद ने कहा, “हे यहोवा, तू सदैव मेरे साथ रहा है। तूने मुझे मेरे शत्रुओं से बचाया है, और मैं तेरी महिमा का वर्णन करूंगा। तू धर्मी है, और तेरी करुणा अनंतकाल तक बनी रहेगी।”
इस प्रकार, दाऊद ने परमेश्वर की महिमा का गुणगान किया और उनकी स्तुति की। उसने अपने जीवन के हर पल में परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस किया और उनकी करुणा पर भरोसा रखा।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे हमारे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, परमेश्वर हमारे साथ हैं। वे हमारी पुकार सुनते हैं और हमें संकट से बचाते हैं। हमें भी दीन-हीनों की सहायता करनी चाहिए और परमेश्वर की करुणा पर भरोसा रखना चाहिए।