पवित्र बाइबल

मत्ती 6: यीशु का शांति और विश्वास का संदेश

मत्ती अध्याय 6 की कहानी को एक विस्तृत और जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हुए, हम इस प्रकार से लिख सकते हैं:

एक दिन, यीशु मसीह गलील की पहाड़ियों पर चढ़े। उनके चारों ओर एक बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई थी, जो उनके शब्दों को सुनने के लिए उत्सुक थी। यीशु ने अपने शिष्यों और लोगों को शांत करते हुए उपदेश देना शुरू किया। उनकी आवाज़ में एक अद्भुत शांति और अधिकार था, जो हर किसी के दिल को छू रहा था।

यीशु ने कहा, “जब तुम दान करो, तो अपने बाएँ हाथ को यह न जानने दो कि दाहिना हाथ क्या कर रहा है। तुम्हारा दान गुप्त रूप से किया जाना चाहिए, और तुम्हारा पिता, जो गुप्त में देखता है, तुम्हें खुलेआम पुरस्कार देगा।”

उन्होंने आगे कहा, “जब तुम प्रार्थना करो, तो झूठे लोगों की तरह न बनो, जो सिनेगॉग और सड़कों के कोनों पर खड़े होकर प्रार्थना करते हैं ताकि लोग उन्हें देख सकें। मैं तुमसे कहता हूँ, उन्हें उनका प्रतिफल मिल चुका है। लेकिन जब तुम प्रार्थना करो, तो अपने कमरे में जाओ, दरवाज़ा बंद करो और अपने पिता से गुप्त में प्रार्थना करो। और तुम्हारा पिता, जो गुप्त में देखता है, तुम्हें खुलेआम पुरस्कार देगा।”

यीशु ने उन्हें प्रार्थना का एक उदाहरण भी दिया, “जब तुम प्रार्थना करो, तो इस प्रकार कहो: ‘हे हमारे पिता, जो स्वर्ग में हैं, तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा पृथ्वी पर भी पूरी हो, जैसे स्वर्ग में होती है। हमें आज हमारी दैनिक रोटी दे। और हमारे अपराधों को क्षमा कर, जैसे हम भी अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं। और हमें परीक्षा में न ले, परन्तु हमें बुराई से बचा।'”

फिर यीशु ने उपवास के बारे में बात की, “जब तुम उपवास करो, तो अपने चेहरे को उदास न बनाओ, जैसे कपटी लोग करते हैं। वे अपना चेहरा बिगाड़ते हैं ताकि लोग उन्हें उपवास करते हुए देख सकें। मैं तुमसे कहता हूँ, उन्हें उनका प्रतिफल मिल चुका है। लेकिन जब तुम उपवास करो, तो अपने सिर पर तेल लगाओ और अपना चेहरा धोओ, ताकि लोगों को न पता चले कि तुम उपवास कर रहे हो, केवल तुम्हारा पिता, जो गुप्त में है, वह देखेगा। और तुम्हारा पिता, जो गुप्त में देखता है, तुम्हें खुलेआम पुरस्कार देगा।”

यीशु ने आगे कहा, “धन-दौलत के लिए मत चिंता करो। स्वर्ग के पक्षियों को देखो, वे न तो बोते हैं, न काटते हैं, न भंडार करते हैं, फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन्हें खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्यवान नहीं हो? और तुम में से कौन अपनी चिंता करके अपनी आयु में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?”

उन्होंने आगे कहा, “कपड़ों के लिए क्यों चिंता करते हो? खेत के सुसानों को देखो, वे कैसे बढ़ते हैं; वे न तो परिश्रम करते हैं, न कातते हैं। फिर भी मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलैमान भी अपने सारे वैभव में इनमें से किसी एक के समान सुशोभित नहीं हुआ। इसलिए, यदि परमेश्वर घास को, जो आज खेत में है और कल भट्ठी में डाल दी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहनाता है, तो क्या वह तुम्हें, हे अल्पविश्वासियों, और अधिक नहीं पहनाएगा?”

यीशु ने अपने शिष्यों को समझाया, “इसलिए चिंता न करो, यह कहकर कि ‘हम क्या खाएँगे?’ या ‘हम क्या पीएँगे?’ या ‘हम क्या पहनेंगे?’ क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है। इसलिए पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करो, और ये सब वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी।”

यीशु ने अपने उपदेश को समाप्त करते हुए कहा, “कल के लिए चिंता न करो, क्योंकि कल अपनी चिंता आप करेगा। आज के लिए आज की ही चिंता पर्याप्त है।”

यीशु के इन शब्दों ने लोगों के दिलों को छू लिया। उन्होंने महसूस किया कि यीशु ने उन्हें सच्ची शांति और विश्वास का मार्ग दिखाया है। उनके शब्दों में एक गहरा आध्यात्मिक सत्य था, जो हर किसी को परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए प्रेरित कर रहा था।

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