यह कहानी मूसा और इस्राएलियों के बीच हुई एक महत्वपूर्ण घटना पर आधारित है, जो निर्गमन 32 में वर्णित है। यह घटना सीनै पर्वत के पास घटी, जहाँ मूसा परमेश्वर से दस आज्ञाएँ प्राप्त करने के लिए गया था। इस्राएलियों ने मूसा के लौटने में देरी होने के कारण एक बड़ी गलती की, जिसने उनके विश्वास और परमेश्वर के साथ उनके संबंध को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
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### सोने का बछड़ा: इस्राएलियों की विश्वासघात
मूसा सीनै पर्वत पर चढ़ गया था, जहाँ वह परमेश्वर से दस आज्ञाएँ प्राप्त करने वाला था। इस्राएलियों ने देखा कि मूसा कई दिनों से लौटा नहीं था। वे बेचैन होने लगे और एकत्रित होकर हारून के पास गए। उन्होंने हारून से कहा, “उठो और हमारे लिए एक देवता बनाओ जो हमारे आगे चले। हम नहीं जानते कि मूसा का क्या हुआ, जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया।”
हारून ने उनकी बात सुनी और उनसे कहा, “अपने सोने के कानों की बालियाँ उतारकर मेरे पास लाओ।” लोगों ने ऐसा ही किया और अपने सोने के आभूषण हारून को दे दिए। हारून ने उन सोने को पिघलाया और एक ढालनेवाले के साधन से उसका एक बछड़ा बनाया। लोगों ने उसे देखकर चिल्लाया, “हे इस्राएल, यही तेरा देवता है जो तुझे मिस्र देश से निकाल लाया!”
हारून ने उस बछड़े के सामने एक वेदी बनाई और घोषणा की, “कल परमेश्वर के लिए एक पर्व मनाया जाएगा।” अगले दिन लोग सुबह जल्दी उठे और होमबलि और मेलबलि चढ़ाने लगे। वे खाने-पीने और नाचने-गाने में मग्न हो गए। उन्होंने परमेश्वर को भुला दिया और उस सोने के बछड़े की पूजा करने लगे।
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### परमेश्वर का क्रोध और मूसा की प्रार्थना
इस बीच, परमेश्वर ने मूसा से कहा, “जल्दी नीचे उतर, क्योंकि तेरी प्रजा, जिसे तू मिस्र देश से निकाल लाया है, बिगड़ गई है। उन्होंने जल्दी ही उस मार्ग को छोड़ दिया है जिसकी मैंने उन्हें आज्ञा दी थी। उन्होंने अपने लिए एक सोने का बछड़ा बनाया है और उसकी पूजा कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि यही उनका देवता है जो उन्हें मिस्र से निकाल लाया।”
परमेश्वर का क्रोध भड़क उठा, और उसने मूसा से कहा, “मैं इन लोगों को नष्ट कर दूँगा और तुझे एक बड़ा राष्ट्र बना दूँगा।” लेकिन मूसा ने परमेश्वर से विनती की, “हे प्रभु, तू अपनी प्रजा पर क्रोध क्यों करता है, जिसे तूने अपनी बड़ी सामर्थ्य और बलवंत हाथ से मिस्र से निकाला है? क्या मिस्रवाले कहेंगे कि परमेश्वर ने उन्हें बुराई के लिए निकाला, ताकि उन्हें पहाड़ों में मार डाले? कृपया अपने प्रचंड क्रोध को शांत कर और अपनी प्रजा के प्रति दया दिखा।”
परमेश्वर ने मूसा की प्रार्थना सुनी और उसके क्रोध को शांत किया। उसने इस्राएलियों को नष्ट करने का विचार त्याग दिया।
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### मूसा का लौटना और उसका क्रोध
मूसा दो पत्थर की पट्टियों को लेकर पर्वत से नीचे उतरा। यहोशू ने उससे कहा, “शिविर में युद्ध का शोर सुनाई दे रहा है।” मूसा ने उत्तर दिया, “यह विजय का नहीं, बल्कि पराजय का शोर है।”
जब मूसा शिविर के निकट पहुँचा और उस सोने के बछड़े तथा नाचते-गाते लोगों को देखा, तो उसका क्रोध भड़क उठा। उसने पत्थर की पट्टियों को फेंक दिया और उन्हें पहाड़ की तलहटी में तोड़ डाला। फिर उसने सोने के बछड़े को लेकर उसे पिघलाया, पीसकर चूर्ण बना दिया, और उसे पानी में मिलाकर इस्राएलियों को पिला दिया।
मूसा ने हारून से कहा, “इन लोगों ने तुझे क्या किया कि तू उन पर ऐसी बड़ी पाप की घटना ले आया?” हारून ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु, क्रोध न कर। तू इन लोगों की प्रकृति को जानता है। उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिए एक देवता बनाओ जो हमारे आगे चले, क्योंकि हम नहीं जानते कि मूसा का क्या हुआ।’ मैंने उनसे कहा, ‘जिनके पास सोना है, वे उसे उतारें।’ उन्होंने मुझे सोना दिया, और मैंने उसे आग में डाल दिया, और यह बछड़ा निकल आया।”
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### लेवियों का न्याय
मूसा ने देखा कि लोग बुरी तरह बिगड़ चुके हैं। उसने शिविर के द्वार पर खड़े होकर कहा, “जो परमेश्वर के पक्ष में है, वह मेरे पास आए।” लेवी के सभी पुत्र उसके पास इकट्ठे हो गए। मूसा ने उनसे कहा, “परमेश्वर, इस्राएल के परमेश्वर, यह कहता है: ‘तुम में से हर एक अपनी तलवार कमर से बाँधकर शिविर में जाओ और अपने भाई, मित्र और पड़ोसी को मार डालो।'” लेवियों ने मूसा की आज्ञा का पालन किया, और उस दिन लगभग तीन हज़ार लोग मारे गए।
मूसा ने लोगों से कहा, “आज तुमने अपने आप को परमेश्वर के लिए अर्पित किया है, क्योंकि तुम में से हर एक ने अपने पुत्र और भाई के विरुद्ध खड़े होकर परमेश्वर का न्याय किया है।”
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### मूसा की मध्यस्थता
अगले दिन मूसा ने लोगों से कहा, “तुमने बहुत बड़ा पाप किया है। अब मैं परमेश्वर के पास जाऊँगा, शायद तुम्हारे पाप के लिए प्रायश्चित कर सकूँ।” मूसा परमेश्वर के पास लौटा और उससे कहा, “इस लोग ने बहुत बड़ा पाप किया है; उन्होंने अपने लिए सोने का देवता बनाया है। किंतु अब, यदि तू उनके पाप को क्षमा करे, तो ठीक है; यदि नहीं, तो कृपया मुझे अपनी पुस्तक से मिटा दे।”
परमेश्वर ने मूसा से कहा, “जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है, उसे मैं अपनी पुस्तक से मिटा दूँगा। अब जा, इस लोग को उस स्थान की ओर ले चल, जिसके विषय में मैंने तुझसे कहा है। देख, मेरा दूत तेरे आगे-आगे चलेगा। परन्तु जब मेरा समय आएगा, तो मैं उनके पाप का दण्ड दूँगा।”
इस प्रकार, परमेश्वर ने इस्राएलियों को उनके पाप के लिए दण्ड दिया, लेकिन मूसा की मध्यस्थता के कारण उन्हें पूरी तरह नष्ट नहीं किया। यह घटना इस्राएलियों के लिए एक बड़ी चेतावनी थी कि वे परमेश्वर के प्रति विश्वासघात न करें और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।