पवित्र बाइबल

न्याय और दया: परमेश्वर की व्यवस्था की कहानी

यह कहानी व्यवस्थाविवरण (ड्यूटरोनॉमी) के अध्याय 25 के आधार पर है, जो परमेश्वर के नियमों और न्याय के सिद्धांतों को दर्शाता है। यह कहानी एक गाँव की पृष्ठभूमि में घटित होती है, जहाँ परमेश्वर के नियमों का पालन करने वाले लोग रहते हैं। यह कहानी न्याय, दया और परमेश्वर की व्यवस्था के महत्व को उजागर करती है।

### **न्याय और दया की कहानी**

एक छोटे से गाँव में, जो इस्राएल के पहाड़ियों के बीच बसा हुआ था, शांति और सद्भाव का वातावरण था। यह गाँव परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार चलता था, और यहाँ के लोग मूसा की शिक्षाओं का पालन करते थे। गाँव के बुजुर्गों ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन न हो। उनका मानना था कि न्याय और दया दोनों ही परमेश्वर की इच्छा हैं।

एक दिन, गाँव में एक विवाद उत्पन्न हुआ। दो भाई, एलियाब और योनातान, जो एक साथ खेतों में काम करते थे, के बीच झगड़ा हो गया। उनके पिता की मृत्यु के बाद, उन्हें विरासत में मिली जमीन को लेकर मतभेद हो गया। एलियाब, जो बड़ा भाई था, चाहता था कि जमीन का बड़ा हिस्सा उसे मिले, जबकि योनातान मानता था कि जमीन को बराबर बाँटा जाए।

झगड़ा इतना बढ़ गया कि गाँव के बुजुर्गों ने हस्तक्षेप करने का फैसला किया। वे जानते थे कि परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार, न्याय सही ढंग से किया जाना चाहिए। उन्होंने दोनों भाइयों को गाँव के चौराहे पर बुलाया, जहाँ परमेश्वर के नियमों के अनुसार न्याय किया जाना था।

गाँव के बुजुर्गों में से एक, जिसका नाम यिर्मयाह था, ने कहा, “परमेश्वर की व्यवस्था हमें सिखाती है कि न्याय निष्पक्ष और निष्कपट होना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति अन्याय का शिकार न हो।”

यिर्मयाह ने व्यवस्थाविवरण के अध्याय 25 की ओर इशारा करते हुए कहा, “परमेश्वर ने हमें सिखाया है कि यदि दो व्यक्ति आपस में झगड़ते हैं, और एक का अपराध इतना बड़ा हो कि उसे कोड़े मारने की सजा दी जाए, तो उसे चालीस कोड़े से अधिक नहीं मारे जाएँ। यह इसलिए कि हमारे भाई का अपमान न हो, और परमेश्वर की दृष्टि में वह तुच्छ न समझा जाए।”

यिर्मयाह ने आगे कहा, “लेकिन आज का मामला कोड़े मारने का नहीं है, बल्कि यह न्याय और विरासत का है। परमेश्वर ने हमें यह भी सिखाया है कि यदि दो भाई एक साथ रहते हैं, और उनमें से एक की मृत्यु हो जाए, तो जीवित भाई को मृतक भाई की पत्नी से विवाह करना चाहिए, ताकि उसका नाम इस्राएल में मिट न जाए। यह परमेश्वर की दया और न्याय का प्रतीक है।”

यिर्मयाह ने एलियाब और योनातान से कहा, “तुम दोनों को यह समझना चाहिए कि परमेश्वर की व्यवस्था न केवल न्याय की माँग करती है, बल्कि दया और भाईचारे की भी। तुम्हारे पिता ने तुम्हें यह जमीन दी है, और तुम्हें इसे बराबर बाँटना चाहिए। यही परमेश्वर की इच्छा है।”

दोनों भाइयों ने यिर्मयाह की बात सुनी और उनके शब्दों पर विचार किया। एलियाब ने अपने छोटे भाई योनातान की ओर देखा और कहा, “मैंने गलती की है। मैंने अपने लालच में अपने भाई के साथ अन्याय किया है। परमेश्वर की दया और न्याय के सामने, मैं तुम्हें जमीन का आधा हिस्सा देता हूँ।”

योनातान ने भी अपने भाई की ओर देखा और कहा, “मैं भी तुम्हें क्षमा करता हूँ। हमें एक साथ रहना चाहिए और परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना चाहिए।”

गाँव के लोगों ने देखा कि कैसे परमेश्वर की व्यवस्था ने दो भाइयों के बीच शांति स्थापित की। यिर्मयाह ने कहा, “परमेश्वर की व्यवस्था न केवल हमें न्याय सिखाती है, बल्कि यह हमें दया और प्रेम का पाठ भी पढ़ाती है। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि परमेश्वर हमारे साथ है, और उसकी इच्छा हमारे जीवन में पूरी हो।”

इस तरह, गाँव में शांति और सद्भाव फिर से स्थापित हो गया। एलियाब और योनातान ने अपनी जमीन को बराबर बाँट लिया, और वे एक साथ मिलकर काम करने लगे। उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था का पालन किया, और उनके जीवन में आशीर्वाद बना रहा।

यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की व्यवस्था न केवल न्याय की माँग करती है, बल्कि यह हमें दया, प्रेम और भाईचारे का पाठ भी पढ़ाती है। जब हम परमेश्वर के नियमों का पालन करते हैं, तो हमारे जीवन में शांति और आशीर्वाद बना रहता है।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *