2 इतिहास 35 की कहानी को विस्तार से और जीवंत वर्णन के साथ हिंदी में प्रस्तुत करते हैं। यह कहानी यहूदा के राजा योशिय्याह के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शाती है, जब उसने यरूशलेम में फसह का पर्व मनाया। यह घटना न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह योशिय्याह की परमेश्वर के प्रति गहरी आस्था और उसकी नेतृत्व क्षमता को भी प्रदर्शित करती है।
—
यरूशलेम के राजा योशिय्याह ने अपने शासनकाल में परमेश्वर की व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने और मूर्तिपूजा को दूर करने के लिए अथक प्रयास किए थे। वह एक धर्मनिष्ठ और परमेश्वर के प्रति समर्पित राजा था। उसने यहोवा के मंदिर की मरम्मत करवाई और उसे पवित्र किया। एक दिन, जब योशिय्याह मंदिर में था, तो उसे यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक मिली, जिसे पढ़कर उसने अपने लोगों को परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने के लिए प्रेरित किया।
फसह का पर्व निकट था। यह पर्व इस्राएलियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह उनके मिस्र से छुटकारे और परमेश्वर की महान कृपा की याद दिलाता था। योशिय्याह ने सोचा, “हमें इस पर्व को पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए, जैसा कि परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी है।”
योशिय्याह ने याजकों और लेवियों को बुलाया और उनसे कहा, “यहोवा के मंदिर को पवित्र करो और अपने आप को तैयार करो। हमें फसह का पर्व मनाना है, जैसा कि हमारे पूर्वजों ने किया था। यह पर्व हमारे लिए परमेश्वर की कृपा और उद्धार का प्रतीक है।”
याजकों और लेवियों ने योशिय्याह की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने मंदिर को साफ किया और पवित्र किया। योशिय्याह ने लेवियों को आदेश दिया, “तुम्हें इस्राएल के सभी लोगों को फसह के बलिदान के लिए तैयार करना है। तुम्हें उन्हें परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार सिखाना है।”
लेवियों ने पूरे यहूदा और इस्राएल में संदेश भेजा कि सभी लोग यरूशलेम में एकत्रित हों। लोगों ने योशिय्याह के आह्वान पर प्रतिक्रिया दी और बड़ी संख्या में यरूशलेम पहुंचे। वे भेड़, बकरियां और बैल लेकर आए, जो फसह के बलिदान के लिए उपयोग किए जाने थे।
योशिय्याह ने स्वयं भी बलिदान के लिए अपनी ओर से 30,000 भेड़-बकरियां और 3,000 बैल दिए। उसने याजकों और लेवियों को निर्देश दिया कि वे लोगों की मदद करें और सुनिश्चित करें कि सब कुछ परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार हो। याजकों ने बलिदान की तैयारी की, और लेवियों ने लोगों को मार्गदर्शन दिया।
फसह का पर्व शुरू हुआ। याजकों ने बलिदान के पशुओं को वध किया, और लेवियों ने उनके रक्त को वेदी पर छिड़का। लोगों ने अपने हाथों में मांस लिया और उसे पकाया। पूरा यरूशलेम परमेश्वर की महिमा और आनंद से भर गया। योशिय्याह ने लोगों को याद दिलाया, “यह पर्व हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर ने हमें मिस्र की दासता से छुड़ाया और हमें इस धरती पर लाया। हमें उसकी कृपा के लिए धन्यवाद देना चाहिए।”
परमेश्वर की आराधना और गीतों से मंदिर गूंज उठा। लेवियों ने दाऊद के भजन गाए, और लोगों ने उनके साथ मिलकर परमेश्वर की स्तुति की। योशिय्याह ने लोगों को आशीर्वाद दिया और कहा, “परमेश्वर तुम्हारे साथ रहे और तुम्हें सदैव आशीषित करे।”
फसह का पर्व सात दिनों तक चला। इन सात दिनों में लोगों ने परमेश्वर की आराधना की और उसकी कृपा का स्मरण किया। योशिय्याह ने सुनिश्चित किया कि सब कुछ परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो। उसने लोगों को परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें याद दिलाया कि परमेश्वर ही उनका सच्चा राजा है।
इस घटना के बाद, योशिय्याह का नाम इस्राएल के इतिहास में एक महान और धर्मनिष्ठ राजा के रूप में दर्ज हो गया। उसने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन किया और अपने लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। योशिय्याह का शासनकाल परमेश्वर की कृपा और आशीष से भरा हुआ था।
—
यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना और उसकी आराधना करना हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। योशिय्याह की तरह, हमें भी परमेश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए और उसकी महिमा के लिए जीना चाहिए।