एक समय की बात है, जब दाऊद राजा शाऊल के क्रोध से भाग रहा था। वह जंगलों और पहाड़ियों में छिपता हुआ, परमेश्वर की शरण मांग रहा था। उस समय, दाऊद ने एक घटना का सामना किया जो उसके हृदय को गहराई से छू गई। यह घटना उस समय की है जब वह नोब नगर में याजक अहीमेलेक के पास गया था। वहां उसे भोजन और गोलियत की तलवार मिली थी, लेकिन इसी बीच शाऊल के दरबारी दोएग नामक एक व्यक्ति ने यह देख लिया और शाऊल को सूचना दे दी। दोएग एक धूर्त और अहंकारी व्यक्ति था, जो अपनी शक्ति और धन पर घमंड करता था। उसने निर्दोष याजकों को मार डाला और परमेश्वर के घर को अपवित्र किया। यह सब देखकर दाऊद का हृदय दुख से भर गया, और उसने परमेश्वर से प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना और भावनाएं भजन संहिता 52 में दर्ज हैं।
दाऊद ने परमेश्वर से कहा, “हे शक्तिशाली परमेश्वर, तू क्यों धूर्तों के बुरे कामों पर घमंड करता है? वे लोग जो अहंकार से भरे हैं और अपनी बुराई पर गर्व करते हैं, वे तेरी दृष्टि में कैसे खड़े हो सकते हैं? उनकी जीभ धारदार छुरी की तरह है, जो झूठ बोलती है और धोखा देती है। वे अच्छे की बजाय बुराई को चुनते हैं और सच्चाई के बजाय झूठ को पसंद करते हैं।”
दाऊद ने दोएग के बारे में सोचा, जो अपनी धन-दौलत और शक्ति पर इतना घमंड करता था। वह जानता था कि दोएग का अहंकार उसके विनाश का कारण बनेगा। दाऊद ने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, तू उसे उखाड़ देगा और उसके स्थान से गिरा देगा। तू उसके जीवन को जड़ से उखाड़ फेंकेगा, जैसे कोई पेड़ को जड़ से उखाड़ देता है। धर्मी लोग यह देखकर डरेंगे और हंसेंगे, और कहेंगे, ‘देखो, यह वह व्यक्ति है जो परमेश्वर पर भरोसा नहीं करता था, बल्कि अपने धन और शक्ति पर घमंड करता था। वह अपनी बुराई में आनंद लेता था, लेकिन अब उसका अंत आ गया है।'”
दाऊद ने अपने हृदय में परमेश्वर की स्तुति की और कहा, “लेकिन मैं तो हरे-भरे जैतून के पेड़ की तरह हूं, जो परमेश्वर के घर में लगा हुआ है। मैं सदैव परमेश्वर की कृपा पर भरोसा करता हूं, और उसकी दया मेरे साथ है। मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा, क्योंकि तू ने मुझे बचाया है। मैं तेरे भक्तों के सामने तेरी भलाई का प्रचार करूंगा, क्योंकि तू ही मेरी आशा है।”
दाऊद ने यह भजन लिखकर परमेश्वर की महिमा की और उसकी स्तुति की। वह जानता था कि परमेश्वर उन लोगों को दंड देगा जो अहंकार और बुराई में जीते हैं, लेकिन जो उस पर भरोसा रखते हैं, वे सदैव सुरक्षित रहेंगे। दाऊद की यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने जीवन में परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और उसकी कृपा में जीना चाहिए, क्योंकि वही हमारा सच्चा सहारा और रक्षक है।