पवित्र बाइबल

एलियाह की आस्था: परमेश्वर की कृपा और कृतज्ञता की कहानी

भजन संहिता 116 का यह कहानी एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाती है, जो एक व्यक्ति के संघर्ष, विश्वास, और परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भरी हुई है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर हमारी पुकार सुनता है और हमें हमारे संकटों से बचाता है। आइए, इस कहानी को विस्तार से जानें।

एक समय की बात है, एक युवक था जिसका नाम एलियाह था। वह एक साधारण परिवार से आता था और अपने माता-पिता के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। एलियाह बचपन से ही परमेश्वर के प्रति गहरी आस्था रखता था। उसके माता-पिता ने उसे बाइबल की शिक्षाएँ दी थीं, और वह हमेशा भजन संहिता के वचनों को अपने हृदय में संजोए रहता था।

एक दिन, एलियाह के जीवन में अचानक एक बड़ा संकट आ गया। उसके गाँव में भयंकर बीमारी फैल गई, और उसके माता-पिता भी इस बीमारी की चपेट में आ गए। एलियाह ने देखा कि उसके चारों ओर लोग दुःख और निराशा में डूबे हुए हैं। वह स्वयं भी बहुत डर गया और उसका हृदय भारी हो गया। उसने महसूस किया कि उसकी सारी आशाएँ और सपने धूमिल होते जा रहे हैं।

एक रात, जब एलियाह अपने माता-पिता के बिस्तर के पास बैठा हुआ था, उसने परमेश्वर से प्रार्थना की। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, और उसका हृदय टूटा हुआ था। उसने कहा, “हे प्रभु, मैं तेरी शरण में आता हूँ। मेरी पुकार सुन और मेरे प्राणों को बचा। मैं तेरे सामने झुकता हूँ और तेरी दया की याचना करता हूँ।”

भजन संहिता 116:1 के अनुसार, एलियाह ने कहा, “मैं यहोवा से प्रेम रखता हूँ, क्योंकि उसने मेरी विनती सुनी है।” उसने महसूस किया कि परमेश्वर उसकी पुकार सुन रहा है, और उसके हृदय में एक शांति उत्पन्न हुई।

कुछ दिनों बाद, एलियाह के माता-पिता की तबीयत में सुधार होने लगा। डॉक्टरों ने भी आश्चर्यचकित होकर कहा कि यह एक चमत्कार है। एलियाह ने महसूस किया कि यह परमेश्वर की कृपा और उसकी प्रार्थनाओं का उत्तर है। उसने परमेश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक छोटा सा उत्सव मनाया। उसने अपने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें बताया कि कैसे परमेश्वर ने उसकी पुकार सुनी और उसे उसके संकट से बचाया।

भजन संहिता 116:12-14 के अनुसार, एलियाह ने कहा, “मैं यहोवा को क्या चढ़ावन दूँ, कि उसने मेरे लिए जो कुछ किया है, उसके बदले में मैं उसे क्या दूँ? मैं उद्धार के प्याले को उठाऊँगा और यहोवा के नाम का प्रचार करूँगा। मैं उसके सामने अपनी मन्नतें पूरी करूँगा।”

एलियाह ने अपने जीवन को परमेश्वर की सेवा में समर्पित करने का निर्णय लिया। वह गाँव-गाँव जाकर लोगों को परमेश्वर के प्रेम और उद्धार की कहानी सुनाने लगा। उसने लोगों को बताया कि परमेश्वर हमारी पुकार सुनता है और हमें हमारे संकटों से बचाता है। उसने भजन संहिता 116:15 के वचन को याद किया, “यहोवा की दृष्टि में उसके भक्तों की मृत्यु बहुमूल्य है।”

एलियाह की कहानी ने लोगों के हृदयों को छू लिया। उसके गाँव के लोगों ने भी परमेश्वर की ओर मुड़ना शुरू कर दिया। वे समझ गए कि परमेश्वर हमारे जीवन में सच्चा सहारा है, और उसकी कृपा हमें हर संकट से बचा सकती है।

अंत में, एलियाह ने परमेश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, “हे यहोवा, तूने मेरे प्राणों को मृत्यु से, मेरी आँखों को आँसुओं से, और मेरे पैरों को ठोकर खाने से बचाया है। मैं जीवित रहते हुए यहोवा के सामने चलूँगा।” (भजन संहिता 116:8-9)

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर हमारी पुकार सुनता है और हमें हमारे संकटों से बचाता है। हमें उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए और उसकी महिमा का प्रचार करना चाहिए। जैसे एलियाह ने परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का अनुभव किया, वैसे ही हम भी उसकी कृपा का अनुभव कर सकते हैं।

यह कहानी भजन संहिता 116 के सन्देश को जीवंत करती है और हमें परमेश्वर के प्रति विश्वास और कृतज्ञता का महत्व सिखाती है।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *