पवित्र बाइबल

अगूर की विनम्रता और परमेश्वर की बुद्धि की खोज

एक समय की बात है, जब एक बुद्धिमान व्यक्ति ने परमेश्वर के वचन को गहराई से समझने की कोशिश की। उसका नाम अगूर था, और वह परमेश्वर के सामने विनम्र था। उसने अपने हृदय में यह जानने की लालसा रखी कि परमेश्वर की बुद्धि और उसकी सृष्टि कितनी अद्भुत है। एक दिन, वह एकांत में बैठकर परमेश्वर से प्रार्थना करने लगा। उसने कहा, “हे परमेश्वर, मैं तेरी महानता को समझने के लिए तरस रहा हूँ। मुझे तेरी बुद्धि और तेरे कार्यों की गहराई दिखा।”

अगूर ने नीतिवचन 30 में लिखी बातों को ध्यान से पढ़ा और उन पर मनन किया। उसने देखा कि परमेश्वर की बुद्धि मनुष्य की समझ से परे है। उसने सोचा, “क्या कोई मनुष्य परमेश्वर के रहस्यों को पूरी तरह समझ सकता है? क्या हम उसकी महिमा को माप सकते हैं?” उसने महसूस किया कि परमेश्वर की सृष्टि में असंख्य चमत्कार हैं, जिन्हें मनुष्य की बुद्धि पूरी तरह नहीं समझ सकती।

एक दिन, अगूर ने अपने आसपास की प्रकृति को देखना शुरू किया। उसने देखा कि चींटियाँ बिना किसी नेता के मेहनत से अपना भोजन जमा करती हैं। उसने सोचा, “ये छोटे जीव परमेश्वर की बुद्धि को दर्शाते हैं। वे बिना किसी आलस्य के काम करते हैं और अपने लिए भविष्य की तैयारी करते हैं।” फिर उसने टिड्डियों को देखा, जो बिना किसी राजा के एक साथ इकट्ठा होकर चलती हैं। उसने महसूस किया कि परमेश्वर ने हर जीव को एक विशेष तरीके से बनाया है, और उनके कार्य उसकी महिमा को प्रकट करते हैं।

अगूर ने आकाश की ओर देखा और सोचा, “कितना विशाल और अथाह है यह आकाश! परमेश्वर ने इसे अपनी शक्ति से बनाया है।” उसने पृथ्वी को देखा और महसूस किया कि यह कितनी स्थिर और दृढ़ है। उसने सोचा, “परमेश्वर ने पृथ्वी को अपने हाथों से स्थापित किया है, और यह उसकी महिमा को प्रकट करती है।”

फिर अगूर ने समुद्र को देखा। उसने सोचा, “यह समुद्र कितना विशाल और गहरा है! इसकी लहरें कितनी शक्तिशाली हैं! परमेश्वर ने इसे अपनी सीमा में बाँध रखा है, और यह उसकी आज्ञा का पालन करता है।” उसने महसूस किया कि परमेश्वर की सृष्टि में हर चीज़ उसकी महिमा और बुद्धि को दर्शाती है।

अगूर ने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति और भी अधिक आदर और भय महसूस किया। उसने कहा, “हे परमेश्वर, तू कितना महान है! तेरी बुद्धि और तेरे कार्य अद्भुत हैं। मैं तेरी महिमा को समझने में असमर्थ हूँ, परंतु मैं तेरी स्तुति करता हूँ।”

अगूर ने यह भी सीखा कि परमेश्वर के वचन में कितनी शक्ति है। उसने नीतिवचन 30:5 में लिखी बात को याद किया, “परमेश्वर का हर वचन खरा है; वह उन लोगों की ढाल है, जो उसकी शरण लेते हैं।” उसने महसूस किया कि परमेश्वर का वचन उसके जीवन का आधार है, और उसे हर परिस्थिति में उस पर भरोसा करना चाहिए।

अगूर ने अपने जीवन में परमेश्वर की बुद्धि को अपनाने का निर्णय लिया। उसने सीखा कि अहंकार और घमंड मनुष्य को परमेश्वर से दूर करते हैं, लेकिन विनम्रता और आज्ञाकारिता उसे परमेश्वर के करीब लाते हैं। उसने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे विनम्र बनाए रख और मेरे हृदय को तेरी बुद्धि से भर दे।”

अगूर की कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर की बुद्धि और उसकी सृष्टि को समझने के लिए हमें विनम्र और आज्ञाकारी होना चाहिए। हमें उसके वचन पर भरोसा करना चाहिए और उसकी महिमा को हर दिन देखने की कोशिश करनी चाहिए। परमेश्वर की बुद्धि हमारे जीवन को मार्गदर्शन देती है, और उसकी महिमा हमें उसकी आराधना करने के लिए प्रेरित करती है।

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