यह कहानी यूहन्ना के सुसमाचार के अध्याय 13 पर आधारित है, जो यीशु मसीह और उनके शिष्यों के बीच घटित एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शाती है। यह घटना फसह के पर्व से ठीक पहले की है, जब यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोजन साझा किया। यह कहानी विस्तार से और विवरणों के साथ प्रस्तुत की गई है, जो इस घटना के आध्यात्मिक और भावनात्मक पहलुओं को उजागर करती है।
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### यीशु का शिष्यों के पैर धोना
फसह का पर्व निकट था, और यीशु जानते थे कि उनका समय आ गया है। वह इस संसार को छोड़कर पिता के पास जाने वाले थे। उन्होंने अपने शिष्यों से, जिनसे वह प्रेम करते थे, एक गहरा और अटूट प्रेम रखा। यह वह समय था जब यीशु ने अपने शिष्यों को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाने का निर्णय लिया। यह सबक न केवल नम्रता और सेवा के बारे में था, बल्कि यह उनके प्रेम और आपसी समर्पण का प्रतीक भी था।
भोजन के समय, यीशु और उनके बारह शिष्य एक कमरे में इकट्ठे हुए। वातावरण गंभीर था, क्योंकि यीशु ने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि उनमें से एक उन्हें धोखा देगा। शिष्यों के मन में उथल-पुथल थी, और वे चुपचाप बैठे थे, यह सोचते हुए कि आगे क्या होगा।
तभी यीशु ने अपने वस्त्र उतारे और एक सेवक की तरह एक तौलिया लेकर उसे अपनी कमर में बांध लिया। फिर उन्होंने एक बर्तन में पानी डाला और अपने शिष्यों के पैर धोने लगे। यह दृश्य अत्यंत असामान्य था, क्योंकि यहूदी संस्कृति में पैर धोना एक सेवक का काम माना जाता था। यीशु, जो उनके गुरु और प्रभु थे, वह स्वयं अपने शिष्यों के पैर धो रहे थे।
शिष्यों ने यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए। पतरस, जो हमेशा यीशु के सबसे निकट रहता था, ने विरोध किया और कहा, “प्रभु, क्या आप मेरे पैर धोएंगे?” यीशु ने उत्तर दिया, “जो मैं कर रहा हूं, वह तुम अभी नहीं समझ सकते, लेकिन बाद में समझ जाओगे।” पतरस ने जोर देकर कहा, “प्रभु, आप कभी मेरे पैर नहीं धोएंगे!” यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं तुम्हारे पैर न धोऊं, तो तुम मेरे साथ कोई संबंध नहीं रख सकते।”
यह सुनकर पतरस ने कहा, “प्रभु, तो केवल मेरे पैर ही नहीं, बल्कि मेरे हाथ और सिर भी धो दीजिए।” यीशु ने उत्तर दिया, “जिसने स्नान किया है, उसे केवल पैर धोने की आवश्यकता है, क्योंकि वह पूरी तरह से शुद्ध है। और तुम शुद्ध हो, लेकिन हर एक नहीं।” यीशु यह जानते थे कि उनमें से एक, यहूदा इस्करियोती, उन्हें धोखा देने वाला था।
जब यीशु ने सभी शिष्यों के पैर धो लिए, तो उन्होंने अपने वस्त्र पहने और अपने स्थान पर बैठ गए। उन्होंने शिष्यों से कहा, “क्या तुम समझते हो कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है? तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो, और तुम ठीक कहते हो, क्योंकि मैं वही हूं। यदि मैं, तुम्हारे प्रभु और गुरु ने तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए। मैंने तुम्हें एक उदाहरण दिया है, ताकि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया है, वैसा ही तुम भी करो।”
यीशु ने आगे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूं, सेवक अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, और न ही दूत उससे बड़ा होता है जिसने उसे भेजा है। यदि तुम इन बातों को जानते हो, और उन पर चलते हो, तो धन्य हो।”
यीशु के ये शब्द शिष्यों के हृदय में गहराई तक उतर गए। उन्होंने महसूस किया कि यीशु ने उन्हें न केवल नम्रता और सेवा का पाठ पढ़ाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि प्रेम और समर्पण कैसे व्यक्त किया जाता है। यीशु ने उन्हें यह भी याद दिलाया कि वह उनके बीच में है और उन्हें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए, जैसे उन्होंने उनसे प्रेम किया है।
इस घटना के बाद, यीशु ने यहूदा को पहचान लिया कि वह उन्हें धोखा देगा। उन्होंने कहा, “जिसके लिए मैं रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूंगा, वही मुझे धोखा देगा।” यह कहकर यीशु ने रोटी का टुकड़ा डुबोया और यहूदा को दे दिया। यहूदा ने रोटी ले ली, और उसी क्षण शैतान ने उसके हृदय में प्रवेश किया। यीशु ने उससे कहा, “जो तू करने वाला है, उसे शीघ्र कर।” यहूदा तुरंत बाहर चला गया, और रात का अंधेरा उस पर छा गया।
यीशु ने शेष शिष्यों से कहा, “अब मनुष्य के पुत्र की महिमा हो चुकी है, और परमेश्वर की महिमा उसमें हो चुकी है। यदि परमेश्वर की महिमा उसमें हो चुकी है, तो परमेश्वर भी उसकी महिमा करेगा, और वह उसे शीघ्र ही महिमा देगा।”
यह कहानी यीशु की नम्रता, प्रेम और सेवा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है। यह हमें यह सिखाती है कि हमें भी एक दूसरे के प्रति वैसा ही प्रेम और समर्पण दिखाना चाहिए, जैसा यीशु ने हमें दिखाया। यीशु का यह कार्य न केवल एक उदाहरण है, बल्कि यह हमें यह याद दिलाता है कि प्रेम और सेवा ही सच्चे शिष्यत्व की पहचान है।
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यह कहानी यूहन्ना 13 के आधार पर लिखी गई है और इसमें यीशु के शिष्यों के प्रति प्रेम और नम्रता को विस्तार से दर्शाया गया है। यह हमें यह सीख देती है कि हमें भी एक दूसरे के प्रति वैसा ही प्रेम और समर्पण दिखाना चाहिए।