पवित्र बाइबल

यीशु मसीह: महायाजक और मुक्तिदाता की महिमा

**इब्रानियों 5 की कहानी: महायाजक यीशु मसीह की महिमा**

एक समय की बात है, जब परमेश्वर के लोगों के बीच एक गहरी आवश्यकता थी—एक ऐसे महायाजक की, जो उनके और परमेश्वर के बीच मध्यस्थता कर सके। यहूदी परंपरा के अनुसार, महायाजक का पद बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण था। वह परमेश्वर के सामने लोगों के पापों के लिए बलिदान चढ़ाता था और उनकी ओर से प्रार्थना करता था। परंतु, इस्राएल के महायाजक भी मनुष्य ही थे, जो अपनी कमजोरियों और पापों से घिरे हुए थे। उन्हें पहले अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ाना पड़ता था, फिर वे लोगों के लिए प्रायश्चित कर सकते थे।

लेकिन, इब्रानियों 5 में, एक नए और अनोखे महायाजक का परिचय दिया गया है—यीशु मसीह। वह कोई साधारण महायाजक नहीं था, बल्कि परमेश्वर का पुत्र था, जो मनुष्य बनकर इस धरती पर आया। उसकी महायाजकी की भूमिका पूरी तरह से अद्वितीय और पूर्ण थी। वह न केवल मनुष्यों के पापों के लिए बलिदान बना, बल्कि स्वयं परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।

यीशु मसीह का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उसकी पहचान कुछ असाधारण थी। वह दाऊद के वंश से था, जैसा कि भविष्यवाणियों में कहा गया था। उसका जीवन पूरी तरह से पवित्र और निष्कलंक था। उसने कभी भी पाप नहीं किया, न ही उसके मन में किसी प्रकार की बुराई आई। वह पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा के अधीन था। यही कारण था कि वह एक पूर्ण महायाजक बन सका।

इब्रानियों 5 में लिखा है कि यीशु मसीह को परमेश्वर ने स्वयं महायाजक नियुक्त किया था। वह हारून के वंश से नहीं था, जैसा कि पुराने नियम के महायाजक थे, बल्कि वह मलिकिसेदक के समान था। मलिकिसेदक एक रहस्यमय व्यक्ति था, जिसका उल्लेख उत्पत्ति की पुस्तक में मिलता है। वह एक राजा और याजक दोनों था, और उसका कोई आदि या अंत नहीं था। उसी तरह, यीशु मसीह भी एक राजा और याजक दोनों था। उसकी महायाजकी की भूमिका अनंत काल तक चलने वाली थी।

यीशु मसीह ने अपने जीवन में बहुत कष्ट सहे। उसने मनुष्यों की कमजोरियों और पीड़ाओं को समझा। वह अपने शिष्यों के साथ रहा, उन्हें सिखाया, और उनकी गलतियों को सहन किया। उसने प्रार्थना में घंटों बिताए, विशेषकर गतसमनी के बगीचे में, जहाँ उसने परमेश्वर से प्रार्थना की कि यदि संभव हो तो उस कड़वे कटोरे को उससे दूर कर दे। लेकिन, उसने हमेशा परमेश्वर की इच्छा को प्राथमिकता दी। उसने कहा, “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा दे; तौभी मेरी नहीं, परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।”

यीशु मसीह की महायाजकी की भूमिका में एक और महत्वपूर्ण पहलू था—उसकी आज्ञाकारिता। वह परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी था, यहाँ तक कि मृत्यु तक, वह भी क्रूस पर। उसने अपने जीवन को एक बलिदान के रूप में अर्पित किया, ताकि वह सभी मनुष्यों के पापों का प्रायश्चित कर सके। उसकी मृत्यु ने पुराने नियम के सभी बलिदानों को पूरा कर दिया। अब, कोई भी व्यक्ति यीशु मसीह के बलिदान के द्वारा परमेश्वर के पास आ सकता है।

इब्रानियों 5 में यह भी बताया गया है कि यीशु मसीह ने अपनी पीड़ाओं के द्वारा आज्ञाकारिता सीखी। वह पूर्ण था, लेकिन उसने मनुष्य के रूप में जीवन जीकर हमारी कमजोरियों को समझा। वह हमारे लिए एक दयालु और सहानुभूतिशील महायाजक बना। वह हमारी परीक्षाओं और संघर्षों में हमारी सहायता कर सकता है, क्योंकि उसने स्वयं भी उन्हें अनुभव किया है।

यीशु मसीह की महायाजकी की भूमिका हमें यह आश्वासन देती है कि हम परमेश्वर के पास बिना किसी डर के आ सकते हैं। वह हमारा मध्यस्थ है, जो हमारे पापों के लिए बलिदान बना और हमें अनंत जीवन का मार्ग दिखाया। उसके बलिदान के कारण, हम परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप कर सकते हैं और उसकी कृपा और दया का अनुभव कर सकते हैं।

इस प्रकार, इब्रानियों 5 की कहानी हमें यीशु मसीह की महिमा और उसके महायाजकीय कार्य की गहराई को समझाती है। वह हमारा उद्धारकर्ता, मध्यस्थ, और राजा है। उसके बलिदान के द्वारा, हमें अनंत जीवन और परमेश्वर के साथ एक नए संबंध का उपहार मिला है। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि यीशु मसीह हमारे लिए सब कुछ है, और उसके बिना हम कुछ भी नहीं हैं।

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