2 इतिहास 14 की कहानी हमें यहूदा के राजा आसा के बारे में बताती है, जो एक धर्मनिष्ठ और परमेश्वर के प्रति समर्पित राजा था। आसा ने अपने पिता अबिय्याह के बाद यहूदा का राज्य संभाला और उसने अपने राज्य में परमेश्वर की इच्छा के अनुसार शासन किया। उसका शासनकाल यहूदा के लिए एक नई शुरुआत थी, क्योंकि उसने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने और उसकी सेवा करने के लिए अपने लोगों को प्रोत्साहित किया।
आसा ने अपने राज्य के पहले दस वर्षों में शांति और स्थिरता लाने के लिए कड़ी मेहनत की। उसने यहूदा के देश में से मूर्तिपूजा और अशुद्ध पूजा स्थलों को हटा दिया। उसने ऊँचे स्थानों को तोड़ डाला और मूर्तियों को नष्ट कर दिया। उसने अपने लोगों से कहा, “हमें अपने पूर्वजों के परमेश्वर, यहोवा की खोज करनी चाहिए और उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।” आसा की यह नीति यहूदा के लोगों के लिए एक आशीर्वाद साबित हुई, क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें शांति और समृद्धि दी।
आसा ने यहूदा के शहरों को मजबूत किया और उनकी दीवारों को ऊँचा किया। उसने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित किया और उन्हें हथियारों से लैस किया। उसने यहूदा के लोगों से कहा, “हमें अपने देश की रक्षा करनी चाहिए और अपने परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।” आसा की तैयारियों ने यहूदा को एक मजबूत और सुरक्षित राष्ट्र बना दिया।
लेकिन शांति हमेशा के लिए नहीं रही। एक दिन, एक विशाल सेना ने यहूदा पर हमला करने का फैसला किया। यह सेना इतनी बड़ी थी कि उसके पास दस लाख से अधिक सैनिक और तीन सौ रथ थे। यह सेना कूश के ज़ेरह के नेतृत्व में थी, जो एक शक्तिशाली और अनुभवी सेनापति था। जब आसा ने इस विशाल सेना के बारे में सुना, तो वह डर गया। उसने जाना कि उसकी सेना इस विशाल सेना का सामना नहीं कर सकती।
लेकिन आसा ने अपना विश्वास परमेश्वर में रखा। उसने यहूदा के लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, “हमारे पास शक्ति और बल नहीं है, लेकिन हमारे पास परमेश्वर है, जो हमारे साथ है। हम उस पर भरोसा करेंगे और उससे मदद मांगेंगे।” आसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा, “हे यहोवा, तू ही हमारी सहायता कर सकता है। हम तेरे नाम पर भरोसा करते हैं और तेरी इच्छा के अनुसार चलते हैं। कृपया हमें इस विशाल सेना से बचा।”
परमेश्वर ने आसा की प्रार्थना सुनी और उसकी सेना की सहायता की। जब यहूदा की सेना और कूश की सेना आमने-सामने हुई, तो परमेश्वर ने कूश की सेना में भ्रम पैदा कर दिया। कूश के सैनिक एक-दूसरे से लड़ने लगे और यहूदा की सेना ने उन्हें हरा दिया। यहूदा की सेना ने कूश की सेना का पीछा किया और उनके शिविर को लूट लिया। उन्हें इतना धन और संपत्ति मिली कि वे उसे ले जाने में असमर्थ थे।
आसा और यहूदा के लोगों ने परमेश्वर की महिमा की और उसका धन्यवाद किया। उन्होंने जाना कि परमेश्वर ही उनकी जीत का स्रोत था। आसा ने यहूदा के लोगों से कहा, “हमें परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, क्योंकि उसने हमें इस विशाल सेना से बचाया है। हमें हमेशा उस पर भरोसा रखना चाहिए और उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।”
इस जीत के बाद, यहूदा में शांति और समृद्धि आई। आसा ने अपने राज्य में परमेश्वर की सेवा करने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए अपने लोगों को प्रोत्साहित किया। उसने यहूदा के देश में से अशुद्ध पूजा स्थलों को हटाने का काम जारी रखा और लोगों को परमेश्वर की ओर मोड़ा। आसा का शासनकाल यहूदा के लिए एक आशीर्वाद था, क्योंकि उसने परमेश्वर के मार्ग पर चलकर अपने लोगों को आशीर्वाद दिलाया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो वह हमारी सहायता करता है और हमें विजय दिलाता है। आसा की तरह, हमें भी परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और उसके मार्ग पर चलना चाहिए।