एक समय की बात है, जब दाऊद, इस्राएल के महान राजा और परमेश्वर के प्रिय सेवक, एक गहरे संकट में फंसे हुए थे। उनके चारों ओर शत्रुओं ने घेरा डाल रखा था, और उनका मन भय और चिंता से भर गया था। उन्होंने महसूस किया कि उनकी शक्ति और बुद्धि उन्हें इस संकट से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। ऐसे में, दाऊद ने अपने हृदय को परमेश्वर की ओर मोड़ा और उनसे प्रार्थना की, जैसा कि भजन संहिता 31 में वर्णित है।
दाऊद ने कहा, “हे यहोवा, मैं तेरी शरण में आया हूँ। मुझे कभी लज्जित न होने देना; तू अपने धर्म के कारण मुझे बचा ले। मेरी ओर कान लगा, और शीघ्र मुझे छुड़ा ले। तू मेरी शक्तिशाली चट्टान और मेरा गढ़ हो। तू ही मेरी रक्षा के लिए मेरा किला है।”
दाऊद के शब्दों में एक गहरी विश्वास और आशा झलक रही थी। वह जानते थे कि परमेश्वर उनकी सुनते हैं और उनकी रक्षा करेंगे। उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में समर्पित कर दिया, यह कहते हुए, “मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हूँ। हे सच्चे परमेश्वर, तू ने मुझे छुड़ाया है।”
दाऊद के चारों ओर का वातावरण बहुत ही भयावह था। उनके शत्रु उन्हें घेरे हुए थे, और उनके मित्र भी उन्हें छोड़कर चले गए थे। वह अकेले और निराश महसूस कर रहे थे। परन्तु उनकी आशा परमेश्वर में थी। उन्होंने कहा, “मैं उन सब से घृणा करता हूँ जो झूठे देवताओं की उपासना करते हैं, परन्तु मैं यहोवा पर भरोसा रखता हूँ।”
दाऊद ने अपने दुखों और पीड़ाओं को परमेश्वर के सामने रखा। उन्होंने कहा, “मेरी आँखें दुख से थक गई हैं, मेरी आत्मा और शरीर भी दुख से व्याकुल हैं। मेरा जीवन शोक से भर गया है, और मेरे वर्ष कराहने में बीत रहे हैं। मेरी शक्ति मेरे अधर्म के कारण क्षीण हो गई है, और मेरी हड्डियाँ सूख गई हैं।”
परन्तु दाऊद ने अपनी प्रार्थना में केवल अपने दुखों का वर्णन नहीं किया, बल्कि उन्होंने परमेश्वर की महिमा और उनकी दया का गुणगान भी किया। उन्होंने कहा, “परन्तु हे यहोवा, मैं तेरा भरोसा रखता हूँ। मैंने कहा है, ‘तू ही मेरा परमेश्वर है।’ मेरा समय तेरे हाथ में है। मुझे अपने शत्रुओं के हाथ से और उन सब से बचा ले जो मेरा पीछा करते हैं।”
दाऊद ने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह उनके चेहरे को अपने दास पर चमकाए और उन पर अपनी करुणा दिखाए। उन्होंने कहा, “हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने देना, क्योंकि मैंने तुझे पुकारा है। दुष्ट लज्जित हों, और अधोलोक में मौन हो जाएँ। झूठे होंठ गूंगे हो जाएँ, जो धर्मी के विरुद्ध अभिमान से और तिरस्कार से बोलते हैं।”
दाऊद ने परमेश्वर की भलाई और उनकी विश्वासयोग्यता के बारे में गाया। उन्होंने कहा, “तू ने अपने भय मानने वालों के लिए कितनी ही भलाई इकट्ठी कर रखी है! तू ने उनके लिए जो तेरा शरणागत हैं, मनुष्यों के सामने उसे प्रगट किया है। तू उन्हें मनुष्यों के षड्यंत्र से छिपा कर रखता है; तू उन्हें विवाद के स्थान में छिपा कर रखता है।”
दाऊद ने परमेश्वर की स्तुति की और उन्हें धन्यवाद दिया क्योंकि उन्होंने उनकी प्रार्थना सुनी थी। उन्होंने कहा, “धन्य है यहोवा, क्योंकि उसने मुझ पर अपनी अद्भुत करुणा दिखाई है। मैंने अपने मन में कहा था, ‘मैं कट गया हूँ, मैं तेरी दृष्टि से कट गया हूँ।’ तौभी तू ने मेरी विनती की सुन ली, जब मैंने तुझे पुकारा।”
दाऊद ने सभी विश्वासियों को प्रोत्साहित किया कि वे परमेश्वर से प्रेम रखें और उन पर भरोसा रखें। उन्होंने कहा, “हे सब पवित्र लोगो, यहोवा से प्रेम रखो। यहोवा सच्चे लोगों की रक्षा करता है, और अभिमानी को पूरा-पूरा बदला देता है। हे सब जो यहोवा पर भरोसा रखते हो, हियाव बाँधो, और तुम्हारा हृदय दृढ़ हो।”
इस प्रकार, दाऊद ने अपने संकट के समय में परमेश्वर की शरण ली और उन पर पूरा भरोसा रखा। उनकी प्रार्थना और विश्वास ने उन्हें शक्ति दी, और परमेश्वर ने उनकी सुनकर उन्हें उनके शत्रुओं से बचाया। दाऊद की कहानी हमें सिखाती है कि चाहे हम कितने भी बड़े संकट में क्यों न हों, परमेश्वर हमारी सुनते हैं और हमारी रक्षा करते हैं। हमें केवल उन पर भरोसा रखना है और उनकी शरण में आना है।