एज्रा 10 की कहानी हमें एक ऐसे समय की ओर ले जाती है जब परमेश्वर के लोगों ने अपने जीवन में गंभीर पाप किया था और उन्हें इसका एहसास हुआ। यह कहानी उनके पश्चाताप और परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण की गवाही देती है। आइए, इस घटना को विस्तार से जानें।
यरूशलेम में, एज्रा नामक एक धर्मी और परमेश्वर के वचन का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति था। वह एक याजक और शास्त्री था, जो परमेश्वर की व्यवस्था को गहराई से समझता था। उस समय, यहूदी लोग बाबुल की गुलामी से छूटकर यरूशलेम लौट आए थे और मंदिर का पुनर्निर्माण कर रहे थे। लेकिन, उनके बीच एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई थी। कई यहूदी पुरुषों ने विदेशी स्त्रियों से विवाह कर लिया था, जो परमेश्वर की व्यवस्था के विरुद्ध था। यह पाप उनके और परमेश्वर के बीच एक बड़ी दीवार बन गया था।
एज्रा को जब इस बात का पता चला, तो वह बहुत दुखी हुआ। उसने अपने वस्त्र फाड़े, अपने सिर पर राख डाली, और परमेश्वर के सामने गहरा पश्चाताप किया। वह जानता था कि यह पाप उनके लिए परमेश्वर के क्रोध को भड़काएगा और उन्हें फिर से दुष्टता की ओर ले जाएगा। एज्रा ने प्रार्थना की और परमेश्वर से क्षमा मांगी। उसने कहा, “हे परमेश्वर, हमने तेरी आज्ञाओं को तोड़ा है। हमने तेरे विरुद्ध पाप किया है। कृपया हम पर दया कर और हमें क्षमा कर।”
एज्रा की प्रार्थना और पश्चाताप ने लोगों के हृदय को छू लिया। यहूदी लोगों ने महसूस किया कि उन्होंने परमेश्वर के साथ अपनी वाचा को तोड़ दिया है। वे एज्रा के पास इकट्ठे हुए और उससे कहा, “हमने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है। हमने विदेशी स्त्रियों से विवाह कर लिया है, जो तेरी व्यवस्था के विरुद्ध है। लेकिन अब हम परमेश्वर के सामने अपने पापों को स्वीकार करते हैं और उनसे दूर होने का निर्णय लेते हैं।”
एज्रा ने लोगों को समझाया कि परमेश्वर की इच्छा है कि वे अपने पापों को छोड़ दें और उसकी व्यवस्था के अनुसार चलें। उसने सभी यहूदी लोगों को यरूशलेम में इकट्ठा होने का आदेश दिया। उसने कहा, “जो कोई तीन दिन के भीतर यहां नहीं आएगा, उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और वह समाज से अलग कर दिया जाएगा।” लोगों ने एज्रा के आदेश का पालन किया और तीन दिन के भीतर यरूशलेम में इकट्ठा हो गए।
जब सभी लोग इकट्ठे हुए, तो एज्रा ने उनसे कहा, “तुमने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है। तुमने विदेशी स्त्रियों से विवाह कर लिया है, जो तेरी व्यवस्था के विरुद्ध है। अब तुम्हें अपने पापों को स्वीकार करना होगा और उनसे दूर होना होगा। परमेश्वर की इच्छा है कि तुम उसकी व्यवस्था के अनुसार चलो और उसके साथ अपनी वाचा को निभाओ।”
लोगों ने एज्रा की बात मानी और अपने पापों को स्वीकार किया। उन्होंने विदेशी स्त्रियों और उनके बच्चों को छोड़ने का निर्णय लिया। यह एक कठिन निर्णय था, लेकिन वे जानते थे कि यह परमेश्वर की इच्छा है। उन्होंने एक-एक करके अपने नाम दर्ज कराए और यह प्रतिज्ञा की कि वे अपने पापों से दूर रहेंगे और परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करेंगे।
इस प्रकार, यहूदी लोगों ने अपने पापों से पश्चाताप किया और परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण दिखाया। एज्रा ने उनकी अगुवाई की और सुनिश्चित किया कि वे परमेश्वर के मार्ग पर चलें। यह घटना हमें सिखाती है कि पश्चाताप और परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण हमें उसके करीब लाता है और हमारे जीवन को पवित्र बनाता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परमेश्वर हमारे पापों को क्षमा करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि हम अपने पापों को स्वीकार करें और उनसे दूर होने का निर्णय लें। एज्रा और यहूदी लोगों का उदाहरण हमें यह याद दिलाता है कि परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना और उसके साथ वाचा बनाए रखना हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।