एक बार की बात है, याकूब नामक एक व्यक्ति था, जो यीशु मसीह का शिष्य था। वह अपने भाइयों और बहनों को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाना चाहता था। उसने उन्हें इकट्ठा किया और कहा, “मेरे प्रिय भाइयों और बहनों, हम में से बहुत से लोग शिक्षक बनने की इच्छा रखते हैं, लेकिन यह जान लो कि शिक्षकों को और अधिक सख्त न्याय का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि हम सभी अक्सर गलतियाँ करते हैं। जो कोई भी अपने वचनों में गलती नहीं करता, वह एक सिद्ध व्यक्ति है, और अपने पूरे शरीर पर भी नियंत्रण रख सकता है।”
याकूब ने आगे कहा, “जब हम घोड़ों के मुँह में लगाम लगाते हैं तो वे हमारी आज्ञा मानते हैं, और हम उनके पूरे शरीर को नियंत्रित कर सकते हैं। जहाज़ों को भी देखो, वे इतने बड़े होते हैं और तेज़ हवाओं से चलते हैं, फिर भी एक छोटे से पतवार के द्वारा उन्हें मनचाही दिशा में मोड़ा जा सकता है। ठीक उसी तरह, जीभ भी एक छोटा सा अंग है, लेकिन इसके द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जा सकते हैं।”
उसने गंभीरता से कहा, “जीभ आग की तरह है। यह अधर्म का एक संसार है, और हमारे शरीर के अंगों में से एक होते हुए भी यह पूरे शरीर को दूषित कर सकती है। यह जीवन के पथ को जलाती है और खुद नरक की आग से प्रज्वलित होती है। मनुष्य ने हर प्रकार के जानवरों, पक्षियों, रेंगने वाले जीवों और समुद्री जीवों को वश में कर लिया है, लेकिन जीभ को कोई भी वश में नहीं कर सकता। यह एक अशांत बुराई है, जो घातक ज़हर से भरी हुई है।”
याकूब ने उन्हें समझाया, “एक ही मुँह से हम प्रभु की स्तुति करते हैं और फिर उसी मुँह से मनुष्यों को, जो परमेश्वर के स्वरूप में बने हैं, श्राप देते हैं। मेरे भाइयों और बहनों, ऐसा नहीं होना चाहिए। क्या एक ही सोते से मीठा और कड़वा पानी निकल सकता है? क्या अंजीर के पेड़ से जैतून या अंगूर की बेल से अंजीर मिल सकते हैं? नहीं, ऐसा संभव नहीं है। उसी तरह, खारा सोता मीठा पानी नहीं दे सकता।”
फिर उसने उन्हें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया, “जो कोई बुद्धिमान और समझदार है, वह अपने कामों से, नम्रता के साथ अपनी बुद्धिमत्ता को प्रकट करे। लेकिन यदि तुम्हारे मन में कड़वाहट और स्वार्थपरता है, तो घमंड मत करो और सत्य के विरुद्ध झूठ मत बोलो। ऐसी बुद्धिमत्ता स्वर्ग से नहीं, बल्कि सांसारिक, शैतानी है। क्योंकि जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थ होता है, वहाँ अव्यवस्था और हर प्रकार की बुराई होती है।”
याकूब ने आगे कहा, “लेकिन जो बुद्धिमत्ता ऊपर से आती है, वह पहले तो पवित्र होती है, फिर मेल-मिलाप कराने वाली, कोमल, आज्ञा मानने वाली, दया और अच्छे फलों से भरी हुई, पक्षपात रहित और कपटहीन होती है। और धार्मिकता का फल उन लोगों के लिए शांति से बोया जाता है, जो शांति स्थापित करते हैं।”
याकूब के इन शब्दों ने सभी को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने महसूस किया कि जीभ एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसका उपयोग सही या गलत दोनों तरह से किया जा सकता है। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे अपने वचनों को सावधानी से चुनेंगे और उनका उपयोग प्रभु की महिमा और दूसरों के उत्थान के लिए करेंगे। उन्होंने यह भी समझा कि सच्ची बुद्धिमत्ता वह है जो परमेश्वर से आती है और जो शांति, प्रेम और नम्रता से भरी होती है।
इस प्रकार, याकूब के शब्दों ने उन्हें एक नई दिशा दिखाई, और वे अपने जीवन में इन सिद्धांतों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हो गए। उन्होंने प्रार्थना की कि प्रभु उनकी जीभ को नियंत्रित करे और उनके वचनों को हमेशा उसकी महिमा के लिए उपयोग करे।