पवित्र बाइबल

जलप्रलय के बाद नूह और परमेश्वर की प्रतिज्ञा

उत्पत्ति 8 की कहानी हिंदी में विस्तार से लिखी गई है, जो वर्णनात्मक शैली में है और धार्मिक सटीकता को बनाए रखती है:

जलप्रलय के बाद, परमेश्वर ने नूह और उसके परिवार को सुरक्षित रखा था। बारिश रुक चुकी थी, और पृथ्वी पर पानी धीरे-धीरे कम होने लगा था। नूह और उसके परिवार ने जहाज़ के अंदर लंबे समय तक प्रतीक्षा की थी, और अब वे परमेश्वर के संकेतों की प्रतीक्षा कर रहे थे।

जलप्रलय के 150वें दिन, परमेश्वर ने नूह को याद किया। उसने एक शक्तिशाली हवा चलाई, जो पृथ्वी के ऊपर बहने लगी। यह हवा पानी को सुखाने लगी, और धीरे-धीरे जलस्तर कम होने लगा। जहाज़ अरारत के पहाड़ों पर टिका हुआ था, और अब पानी इतना कम हो गया था कि पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई देने लगीं।

नूह ने जहाज़ की खिड़की खोली और एक कौवे को बाहर भेजा। कौवा इधर-उधर उड़ता रहा, लेकिन उसे आराम करने के लिए कोई सूखी जगह नहीं मिली। वह वापस जहाज़ में लौट आया। फिर नूह ने एक कबूतर को भेजा, ताकि वह देख सके कि पानी सूख गया है या नहीं। कबूतर ने भी कोई सूखी जगह नहीं पाई और वह भी वापस आ गया।

सात दिन बाद, नूह ने फिर से कबूतर को भेजा। इस बार कबूतर शाम को वापस आया, और उसकी चोंच में जैतून की एक ताज़ा पत्ती थी। नूह को पता चल गया कि पानी कम हो गया है और पृथ्वी पर फिर से जीवन उत्पन्न होने लगा है। एक और सात दिन बाद, नूह ने कबूतर को फिर से भेजा। इस बार कबूतर वापस नहीं आया, क्योंकि उसे सूखी जमीन मिल गई थी।

नूह ने जहाज़ की छत पर खड़े होकर चारों ओर देखा। पृथ्वी धीरे-धीरे सूख रही थी, और हरियाली वापस आने लगी थी। परमेश्वर ने नूह से कहा, “अब तुम जहाज़ से बाहर आओ। तुम, तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे बेटे, और तुम्हारी बहूएँ सब बाहर आओ। साथ ही, जितने जीव-जंतु तुम्हारे साथ हैं, उन्हें भी बाहर ले आओ, ताकि वे पृथ्वी पर फैल सकें और उसे भर सकें।”

नूह ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया। वह और उसका परिवार जहाज़ से बाहर आए। सभी जानवर, पक्षी, और रेंगने वाले जीव भी बाहर निकले। नूह ने परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाई और उस पर शुद्ध पशुओं और पक्षियों की बलि चढ़ाई। परमेश्वर ने नूह की बलि को स्वीकार किया और उसके मन में यह प्रतिज्ञा की: “मैं फिर कभी मनुष्य के कारण पृथ्वी को श्राप नहीं दूंगा, भले ही मनुष्य का मन बचपन से ही बुराई की ओर झुका हुआ है। मैं फिर कभी सब प्राणियों को नष्ट नहीं करूंगा, जैसा कि मैंने इस बार किया है।”

परमेश्वर ने आकाश में एक इंद्रधनुष बनाया और कहा, “यह इंद्रधनुष मेरे और पृथ्वी के बीच एक चिन्ह होगा। जब भी मैं बादल लाऊंगा और इंद्रधनुष दिखाई देगा, तो मैं अपनी प्रतिज्ञा को याद करूंगा कि मैंने फिर कभी जलप्रलय से पृथ्वी को नष्ट नहीं करने का वचन दिया है।”

नूह और उसका परिवार नई पृथ्वी पर रहने लगे। उन्होंने परमेश्वर की महिमा की और उसकी आज्ञाओं का पालन किया। पृथ्वी फिर से हरी-भरी हो गई, और जीवन ने नई शुरुआत की।

यह कहानी परमेश्वर की दया, प्रतिज्ञा, और मनुष्य के साथ उसके संबंध को दर्शाती है। नूह की आज्ञाकारिता और परमेश्वर की कृपा इस कहानी के मुख्य बिंदु हैं।

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