पवित्र बाइबल

यरूशलेम की पुनर्स्थापना और निवासियों का चयन

यह कहानी नहेम्याह की पुस्तक के अध्याय 11 पर आधारित है, जो यरूशलेम की पुनर्स्थापना और उसमें बसने वाले लोगों के बारे में है। यह कहानी विस्तृत और वर्णनात्मक शैली में लिखी गई है, जो बाइबल के सिद्धांतों और ऐतिहासिक तथ्यों के अनुरूप है।

### यरूशलेम की पुनर्स्थापना और निवासियों का चयन

यरूशलेम की दीवारों का पुनर्निर्माण पूरा हो चुका था। नहेम्याह, जो यहूदा के लोगों के नेता थे, ने परमेश्वर की सहायता से शहर को फिर से खड़ा किया था। लेकिन अब एक नई चुनौती सामने थी। यरूशलेम शहर बड़ा और महत्वपूर्ण था, परंतु उसमें बसने वाले लोगों की संख्या कम थी। शहर के बाहर के गाँवों और खेतों में लोग रहते थे, लेकिन यरूशलेम को फिर से जीवंत बनाने के लिए उसमें और लोगों को बसाना जरूरी था।

नहेम्याह ने यहूदा के प्रमुख लोगों, याजकों, और लेवियों को एक साथ बुलाया। उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वजों का यह पवित्र शहर, यरूशलेम, परमेश्वर की महिमा का केंद्र है। यह हमारी आस्था और पहचान का प्रतीक है। लेकिन अगर इसमें लोग नहीं बसेंगे, तो यह शहर खाली और उजाड़ हो जाएगा। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यरूशलेम में पर्याप्त लोग रहें, ताकि यह फिर से जीवंत हो सके।”

लोगों ने इस बात पर विचार किया और एक योजना बनाई। उन्होंने तय किया कि यरूशलेम में बसने के लिए हर दस में से एक व्यक्ति को चुना जाएगा। यह चयन निष्पक्ष और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होगा। जो लोग यरूशलेम में बसेंगे, वे शहर की रक्षा करेंगे, उसकी देखभाल करेंगे, और परमेश्वर की सेवा में लगे रहेंगे।

### यरूशलेम में बसने वाले लोग

चयन प्रक्रिया शुरू हुई। लोगों ने अपने परिवारों और समुदायों के बीच से उन लोगों को चुना, जो यरूशलेम में बसने के लिए तैयार थे। यह एक बड़ा बलिदान था, क्योंकि यरूशलेम में बसने का मतलब था कि उन्हें अपने पुराने घरों और खेतों को छोड़ना पड़ेगा। लेकिन वे जानते थे कि यह परमेश्वर की इच्छा है और यरूशलेम की पुनर्स्थापना के लिए यह आवश्यक है।

यरूशलेम में बसने वाले लोगों में यहूदा के वंशज, बिन्यामीन के वंशज, याजक, लेवी, और नेतिनीम (मंदिर के सेवक) शामिल थे। उन्होंने शहर के विभिन्न हिस्सों में अपने घर बनाए। यरूशलेम की सड़कें फिर से जीवंत हो उठीं। बच्चों की हँसी, महिलाओं की बातचीत, और पुरुषों के काम करने की आवाज़ें शहर को भरने लगीं।

याजक और लेवी यरूशलेम में विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे। वे परमेश्वर के मंदिर की सेवा करते थे और लोगों को परमेश्वर के नियमों और आदेशों की शिक्षा देते थे। उन्होंने यरूशलेम को न केवल एक शहर बल्कि एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया।

### यरूशलेम के निवासियों का जीवन

यरूशलेम में बसने वाले लोगों का जीवन सरल लेकिन उद्देश्यपूर्ण था। वे सुबह जल्दी उठते और परमेश्वर की स्तुति और प्रार्थना के साथ अपना दिन शुरू करते। याजक और लेवी मंदिर में बलिदान चढ़ाते और लोगों को परमेश्वर के वचन की शिक्षा देते। महिलाएँ घरों में रोटी बनातीं, बच्चों की देखभाल करतीं, और परिवारों को संभालतीं। पुरुष खेतों में काम करते, शहर की दीवारों की रखवाली करते, और व्यापार करते।

यरूशलेम के लोगों के बीच एकता और भाईचारा था। वे जानते थे कि उनकी सफलता और सुरक्षा परमेश्वर पर निर्भर है। उन्होंने अपने जीवन को परमेश्वर की सेवा और उसकी महिमा के लिए समर्पित कर दिया था।

### परमेश्वर की आशीष

यरूशलेम में बसने वाले लोगों को परमेश्वर की आशीष मिली। उनके खेत फलने-फूलने लगे, उनके परिवार सुरक्षित और संपन्न थे, और उनका शहर दिन-प्रतिदिन मजबूत होता गया। परमेश्वर ने उनकी वफादारी और बलिदान को देखा और उन्हें आशीष दी।

नहेम्याह ने लोगों को याद दिलाया, “परमेश्वर हमारे साथ है। उसने हमें यरूशलेम की पुनर्स्थापना का अवसर दिया है। हमें उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए और उसकी सेवा में लगे रहना चाहिए। यही हमारी सफलता और सुरक्षा का रहस्य है।”

यरूशलेम के लोगों ने नहेम्याह की बात मानी और परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी। वे जानते थे कि यरूशलेम न केवल एक शहर है बल्कि परमेश्वर की उपस्थिति और उसकी प्रतिज्ञाओं का प्रतीक है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीने और उसकी सेवा में लगे रहने से हमें आशीष और सुरक्षा मिलती है। यरूशलेम की पुनर्स्थापना न केवल एक ऐतिहासिक घटना है बल्कि हमारे जीवन में परमेश्वर की योजना और उसकी महिमा का प्रतीक है।

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