भजन संहिता 106 एक ऐसा भजन है जो इस्राएल के इतिहास को याद करता है और उनकी अवज्ञा, परमेश्वर की कृपा, और उनके पश्चाताप की कहानी को बयान करता है। यह भजन परमेश्वर की स्तुति से शुरू होता है और उसकी दया को याद करता है, जो हर पीढ़ी के लिए बनी रहती है। आइए, इस भजन को एक विस्तृत कहानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो इस्राएल के इतिहास को जीवंत कर दे।
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### भजन 106: इस्राएल की कहानी – अवज्ञा, कृपा, और पश्चाताप
प्राचीन काल में, जब इस्राएल के लोग मिस्र की गुलामी से छुटकारा पाकर बंजर भूमि में भटक रहे थे, तब उनके हृदय में परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता और भय का मिश्रण था। परमेश्वर ने उन्हें अपने शक्तिशाली हाथ से छुड़ाया था, लाल सागर को चीरकर उन्हें सुरक्षित पार उतारा था, और फिरौन की सेना को उसी सागर में डुबो दिया था। उन्होंने अपनी आँखों से परमेश्वर के चमत्कार देखे थे, फिर भी उनका हृदय अक्सर अविश्वास और अवज्ञा से भर जाता था।
जंगल में, जब उन्हें भोजन और पानी की कमी महसूस हुई, तो वे परमेश्वर के विरुद्ध बड़बड़ाने लगे। “क्या परमेश्वर हमें इस जंगल में मरने के लिए ले आया है?” वे चिल्लाते थे। परन्तु परमेश्वर ने उनकी शिकायतों को सुना और उन पर दया की। उसने आकाश से मन्ना बरसाया, जो सुबह-सुबह जमीन पर ओस की तरह बिछ जाता था। उसने चट्टान से पानी निकाला, जो उनकी प्यास बुझाने के लिए बह निकला। परमेश्वर की कृपा उन पर बरसती रही, फिर भी वे उसकी आज्ञाओं को भूल जाते थे।
एक बार, जब मूसा परमेश्वर से बात करने के लिए पर्वत पर चढ़ गया, तो लोगों ने धैर्य खो दिया। उन्होंने सोने का एक बछड़ा बनाया और उसकी पूजा करने लगे। “यही हमारा देवता है जो हमें मिस्र से निकाल लाया!” वे चिल्लाए। उनकी इस अवज्ञा ने परमेश्वर को क्रोधित कर दिया। वह उन्हें नष्ट करने के लिए तैयार हो गया, परन्तु मूसा ने उनके लिए बीच में खड़े होकर प्रार्थना की। मूसा ने परमेश्वर से कहा, “हे प्रभु, इन लोगों को क्षमा कर, क्योंकि तू दयालु और कृपाशील है।” परमेश्वर ने मूसा की प्रार्थना सुनी और इस्राएल को नष्ट नहीं किया।
फिर भी, इस्राएल के लोग बार-बार परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ते रहे। जब वे कनान देश के निकट पहुँचे, तो परमेश्वर ने उन्हें उस भूमि को लेने के लिए कहा जो उसने उनके पूर्वजों से वादा की थी। परन्तु जब उन्होंने वहाँ के निवासियों को देखा, तो वे डर गए। “ये लोग हमसे बलवान हैं! हम उन्हें कभी नहीं हरा सकते!” उन्होंने कहा। उनके अविश्वास ने परमेश्वर को क्रोधित कर दिया, और उसने कहा, “तुम में से कोई भी इस वादा की हुई भूमि में प्रवेश नहीं करेगा। तुम्हारे बच्चे ही इसे विरासत में पाएंगे।”
जंगल में चालीस वर्षों तक भटकते हुए, इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर के चमत्कारों को देखा, फिर भी वे बार-बार उसकी आज्ञाओं को तोड़ते रहे। उन्होंने अन्यजातियों के देवताओं की पूजा की, और परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया। परमेश्वर ने उन्हें दण्ड दिया, परन्तु जब भी वे पश्चाताप करते और उसकी ओर लौटते, वह उन पर दया करता और उन्हें बचाता।
भजनकार इस्राएल के इतिहास को याद करते हुए कहता है, “हे प्रभु, हमने पाप किया है, हमारे पूर्वजों की तरह हमने भी अधर्म किया है। हमने तेरे चमत्कारों को भुला दिया और तेरी आज्ञाओं को नहीं माना। परन्तु तू दयालु है, और तेरी करुणा अनन्त है। हम तेरी स्तुति करते हैं, क्योंकि तू ही हमारा उद्धारकर्ता है।”
भजनकार परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि वह इस्राएल को फिर से इकट्ठा करे और उन्हें उनकी भूमि में लौटा दे। “हे प्रभु, हमें बचा, हमें इकट्ठा कर, ताकि हम तेरे पवित्र नाम का धन्यवाद कर सकें और तेरी स्तुति में आनन्द मनाएं।”
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यह कहानी हमें याद दिलाती है कि परमेश्वर की कृपा और दया हमारे पापों से बड़ी है। चाहे हम कितनी भी बार उसकी आज्ञाओं को तोड़ें, वह हमें माफ करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि हम पश्चाताप करें और उसकी ओर लौटें। भजन 106 हमें परमेश्वर की स्तुति करने और उसकी करुणा को याद रखने के लिए प्रेरित करता है।