यशायाह 65 की कहानी एक ऐसे समय की है जब परमेश्वर अपने लोगों से बात कर रहे थे, उन्हें उनके पापों के लिए ताड़ना दे रहे थे और साथ ही उन्हें एक नई आशा और वादा भी दे रहे थे। यह कहानी उस समय की है जब इस्राएल के लोग परमेश्वर से दूर हो गए थे और उन्होंने मूर्तियों की पूजा करना शुरू कर दिया था। परमेश्वर ने उन्हें बार-बार चेतावनी दी, लेकिन वे नहीं सुन रहे थे। अब, परमेश्वर ने उन्हें एक संदेश दिया, जो यशायाह के माध्यम से आया।
यशायाह ने परमेश्वर के वचन को सुना और उसे लोगों तक पहुँचाया। परमेश्वर ने कहा, “मैंने उन लोगों को ढूंढ़ा जो मुझे नहीं पूछते थे, मैंने उन्हें पाया जो मुझे नहीं ढूंढ़ते थे। मैंने कहा, ‘मैं यहाँ हूँ, मैं यहाँ हूँ,’ उस जाति के लोगों के सामने जो मेरा नाम नहीं लेते थे।” परमेश्वर ने यह कहकर अपने लोगों को याद दिलाया कि वह हमेशा उनके साथ है, चाहे वे उसे भूल गए हों या उसकी उपेक्षा कर रहे हों। वह उन्हें ढूंढ़ रहा था, उन्हें वापस बुला रहा था।
परमेश्वर ने आगे कहा, “मैंने अपने हाथ फैलाए, दिन भर एक ऐसी जाति की ओर जो विद्रोही है, जो अपने मन के विचारों के अनुसार चलती है, जो अच्छे मार्ग पर नहीं चलती।” यह बात इस्राएल के लोगों के लिए एक कड़ी चेतावनी थी। वे अपने मन की इच्छाओं के अनुसार चल रहे थे, परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मान रहे थे। उन्होंने मूर्तियों की पूजा की, गलत काम किए, और परमेश्वर के प्रति अपनी वफादारी भूल गए।
परमेश्वर ने उनके पापों को गिनाते हुए कहा, “वे बागों में जाते हैं और वहाँ मूर्तियों के सामने धूप जलाते हैं। वे ईंटों पर बैठकर अशुद्ध मांस खाते हैं और सुअर का मांस खाते हैं। उनके बर्तनों में अशुद्ध पदार्थ हैं।” यह सुनकर लोगों को एहसास हुआ कि उन्होंने कितने गंभीर पाप किए हैं। उन्होंने परमेश्वर की पवित्रता को तुच्छ समझा और अशुद्ध कामों में लिप्त हो गए।
परमेश्वर ने उन्हें चेतावनी दी, “मैं तुम्हारे कामों का फल दूँगा। तुम्हारे पापों के कारण तुम्हें दंड मिलेगा।” यह सुनकर लोग डर गए, क्योंकि उन्हें पता था कि परमेश्वर का क्रोध भयानक हो सकता है। लेकिन परमेश्वर ने उन्हें केवल दंड देने की बात नहीं कही, बल्कि उन्हें एक नई आशा भी दी।
परमेश्वर ने कहा, “मैं नया आकाश और नई पृथ्वी बनाऊँगा। पहली बातें याद नहीं रहेंगी, और उन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। मेरे चुने हुए लोग आनंदित होंगे और मैं उनकी सुनेगा।” यह वादा इस्राएल के लोगों के लिए एक नई शुरुआत का संकेत था। परमेश्वर ने उन्हें बताया कि उनके पापों के बावजूद, वह उन्हें माफ करने के लिए तैयार है और उनके लिए एक नया भविष्य तैयार कर रहा है।
परमेश्वर ने आगे कहा, “जब तुम मुझे पुकारोगे, मैं तुम्हें सुनूँगा। जब तुम बोलोगे, मैं तुम्हारी बात सुनूँगा। भेड़िया और मेमना एक साथ चरेंगे, और सिंह बैल की तरह भूसा खाएगा।” यह वादा शांति और सद्भाव का था। परमेश्वर ने अपने लोगों को आश्वासन दिया कि उनका भविष्य उज्ज्वल होगा, और वे फिर से उसके साथ रहेंगे।
यशायाह ने परमेश्वर के इन वचनों को लोगों तक पहुँचाया। उन्होंने लोगों को बताया कि परमेश्वर उनसे प्यार करता है और उन्हें माफ करने के लिए तैयार है, लेकिन उन्हें अपने पापों से मुंह मोड़ना होगा और परमेश्वर की ओर लौटना होगा। यशायाह ने लोगों से कहा, “परमेश्वर तुम्हें एक नया जीवन देगा, लेकिन तुम्हें उसकी आज्ञाओं का पालन करना होगा।”
लोगों ने यशायाह की बात सुनी और उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने कितने बड़े पाप किए हैं। उन्होंने परमेश्वर से माफी माँगी और उसकी ओर लौटने का निर्णय लिया। परमेश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें आशीर्वाद दिया।
इस तरह, यशायाह 65 की कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ है, चाहे हम उसे भूल जाएं या उसकी उपेक्षा करें। वह हमें ढूंढ़ता है और हमें वापस बुलाता है। हमें केवल उसकी ओर लौटना है और उसकी आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर हमें माफ करने के लिए तैयार है और हमारे लिए एक नया भविष्य तैयार कर रहा है।