2 इतिहास 4 में वर्णित मंदिर के बर्तनों और साज-सामान के बारे में एक विस्तृत कहानी है। यह कहानी सुलैमान के राज्यकाल में परमेश्वर के मंदिर के निर्माण और उसकी सजावट को दर्शाती है। यह कहानी हमें परमेश्वर की महिमा और उसकी सेवा में प्रयुक्त होने वाली हर चीज़ की पवित्रता के बारे में सिखाती है।
सुलैमान ने परमेश्वर के मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया था। अब वह समय आया था जब मंदिर के अंदर के साज-सामान और बर्तनों को तैयार किया जाना था। ये सभी चीज़ें परमेश्वर की महिमा को प्रकट करने और उसकी आराधना में उपयोग के लिए बनाई जा रही थीं। सुलैमान ने इस कार्य के लिए दुनिया के सबसे कुशल कारीगरों को चुना, जिन्हें परमेश्वर ने बुद्धि और कला से भर दिया था।
सबसे पहले, सुलैमान ने एक विशाल कांसे का सागर बनवाया। यह सागर गोलाकार था और इसका व्यास दस हाथ था। इसकी ऊंचाई पांच हाथ थी, और इसकी परिधि तीस हाथ थी। इस सागर के किनारे पर बैलों की मूर्तियां बनी हुई थीं, जो चारों दिशाओं में मुंह किए हुए थे। ये बैल परमेश्वर की सामर्थ्य और स्थिरता का प्रतीक थे। सागर का पानी याजकों के शुद्धिकरण के लिए उपयोग किया जाता था। यह पानी उनके हाथ-पैर धोने के लिए था, ताकि वे पवित्र होकर परमेश्वर की सेवा कर सकें।
इसके बाद, सुलैमान ने दस कांसे की धोने की चौकियां बनवाईं। ये चौकियां मंदिर के दक्षिण और उत्तर दिशा में रखी गईं। हर चौकी चार हाथ लंबी, चार हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊंची थी। इन चौकियों पर भी बैलों की मूर्तियां बनी हुई थीं, जो परमेश्वर की सुरक्षा और सामर्थ्य का प्रतीक थीं। इन चौकियों का उपयोग होमबलि के लिए तैयार किए जाने वाले पशुओं को धोने के लिए किया जाता था। यह इस बात का प्रतीक था कि परमेश्वर के सामने आने से पहले हर चीज़ को शुद्ध और पवित्र किया जाना चाहिए।
सुलैमान ने मंदिर के अंदर एक सोने का वेदी भी बनवाया। यह वेदी धूप जलाने के लिए थी। यह वेदी पूरी तरह से सोने से मढ़ी हुई थी, जो परमेश्वर की महिमा और पवित्रता को दर्शाती थी। धूप की सुगंध परमेश्वर तक पहुंचती थी, जो उसके लोगों की प्रार्थनाओं का प्रतीक थी। यह वेदी इस बात की याद दिलाती थी कि परमेश्वर के सामने हमारी प्रार्थनाएं और आराधना उसके लिए सुगंध के समान हैं।
मंदिर के अंदर एक और महत्वपूर्ण वस्तु थी – दस दीपक। ये दीपक शुद्ध सोने से बने हुए थे और मंदिर के पवित्र स्थान में रखे गए थे। ये दीपक परमेश्वर के वचन की रोशनी का प्रतीक थे, जो हमारे मार्ग को प्रकाशित करते हैं। ये दीपक हमेशा जलते रहते थे, जो इस बात का प्रतीक था कि परमेश्वर का वचन हमेशा हमारे साथ है और हमें अंधकार से बचाता है।
सुलैमान ने मंदिर के लिए और भी कई बर्तन बनवाए, जैसे कटोरे, चम्मच, और कलश। ये सभी बर्तन शुद्ध सोने और कांसे से बने हुए थे। इन बर्तनों का उपयोग याजकों द्वारा परमेश्वर की सेवा में किया जाता था। ये बर्तन इस बात का प्रतीक थे कि परमेश्वर की सेवा में हर चीज़ उत्कृष्ट और पवित्र होनी चाहिए।
मंदिर के बाहर एक बड़ा बलिवेदी भी बनाया गया था। यह वेदी होमबलि के लिए थी और यह कांसे से बनी हुई थी। इस वेदी पर याजक परमेश्वर को बलिदान चढ़ाते थे। यह बलिदान परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और समर्पण का प्रतीक था। यह वेदी इस बात की याद दिलाती थी कि परमेश्वर के सामने हमें अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहिए और उसकी इच्छा के अनुसार जीवन जीना चाहिए।
सुलैमान ने मंदिर के लिए जो कुछ भी बनवाया, वह सब परमेश्वर की महिमा और उसकी पवित्रता को प्रकट करने के लिए था। हर वस्तु, हर बर्तन, और हर सजावट इस बात का प्रतीक थी कि परमेश्वर हमारे जीवन का केंद्र है और हमें उसकी सेवा में पूरी तरह से समर्पित होना चाहिए।
इस कहानी से हम सीखते हैं कि परमेश्वर की सेवा में हर चीज़ की पवित्रता और उत्कृष्टता महत्वपूर्ण है। हमें अपने जीवन को भी परमेश्वर के लिए पवित्र और समर्पित करना चाहिए, ताकि हम उसकी महिमा को प्रकट कर सकें। जैसे सुलैमान ने मंदिर के लिए सबसे उत्तम चीज़ें तैयार कीं, वैसे ही हमें भी परमेश्वर के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए।