एस्तेर की पुस्तक के अध्याय 9 की कहानी हमें यहूदियों के उद्धार और उनकी विजय के बारे में बताती है। यह कहानी उस समय की है जब हामान, राजा अहश्वेरोश के दरबार में एक शक्तिशाली व्यक्ति था, ने यहूदियों को नष्ट करने की योजना बनाई थी। लेकिन परमेश्वर ने एस्तेर और मोर्दकै के माध्यम से अपने लोगों को बचाया। यह कहानी विस्तार से इस प्रकार है:
—
### यहूदियों की विजय
जब वह दिन आया जो हामान ने यहूदियों के विनाश के लिए निर्धारित किया था, तो स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी थी। राजा अहश्वेरोश ने एस्तेर की विनती पर एक नया आदेश जारी किया था, जिसके अनुसार यहूदियों को अपने शत्रुओं से लड़ने और अपने बचाव करने का अधिकार दिया गया था। यह आदेश सभी प्रांतों में जारी किया गया था, और यहूदियों ने इसे अपने लिए परमेश्वर की कृपा का संकेत माना।
उस निर्धारित दिन, तेरहवें दिन के महीने आदार में, यहूदियों ने अपने शत्रुओं के विरुद्ध खड़े होने का निर्णय लिया। वे एकजुट हो गए और अपने-अपने शहरों और गाँवों में इकट्ठा हुए। उनके हृदय में परमेश्वर का भय था, और वे जानते थे कि उनकी जीत परमेश्वर की इच्छा पर निर्भर है।
शूशन दुर्ग में, राजधानी में, यहूदियों ने अपने शत्रुओं पर भारी विजय प्राप्त की। उन्होंने पांच सौ पुरुषों को मार डाला, जिनमें हामान के दस पुत्र भी शामिल थे। यहूदियों ने अपने शत्रुओं के घरों में प्रवेश नहीं किया और न ही उनकी संपत्ति को लूटा। उनका उद्देश्य केवल अपने बचाव करना था, न कि लालच या बदला लेना।
राजा अहश्वेरोश ने एस्तेर से पूछा, “शूशन दुर्ग में यहूदियों ने पांच सौ पुरुषों को मार डाला है। अन्य प्रांतों में उन्होंने क्या किया है? अब तुम्हारी क्या इच्छा है? मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा।”
एस्तेर ने राजा से विनती की, “यदि राजा को यह उचित लगे, तो कृपया शूशन के यहूदियों को कल भी वही करने की अनुमति दीजिए जो आज उन्होंने किया है। और हामान के दस पुत्रों के शवों को फांसी पर लटका दिया जाए।”
राजा ने एस्तेर की बात मान ली और आदेश जारी किया। अगले दिन, शूशन के यहूदियों ने फिर से इकट्ठा होकर तीन सौ पुरुषों को मार डाला। हामान के दस पुत्रों के शवों को फांसी पर लटका दिया गया। यहूदियों ने अपने शत्रुओं के विरुद्ध पूरी शक्ति से लड़ाई लड़ी, लेकिन उन्होंने लूटपाट नहीं की।
अन्य प्रांतों में भी यहूदियों ने अपने शत्रुओं को हराया। उन्होंने पचहत्तर हजार शत्रुओं को मार डाला, लेकिन उन्होंने किसी की संपत्ति को हाथ नहीं लगाया। यह स्पष्ट था कि यहूदी केवल अपने बचाव के लिए लड़ रहे थे, न कि लालच या बदले की भावना से।
### पूरी का पर्व
जब यह सब हो चुका, तो यहूदियों ने अपने उद्धार और विजय का जश्न मनाने का निर्णय लिया। उन्होंने चौदहवें और पंद्रहवें दिन को आनंद और उत्सव के दिन के रूप में मनाया। इन दिनों में वे एक-दूसरे के साथ भोजन करते, उपहार बांटते, और गरीबों को दान देते थे। यह पर्व “पूरीम” के नाम से जाना गया, जो “पूरी” शब्द से लिया गया था, क्योंकि हामान ने यहूदियों के विनाश के लिए “पूरी” (चिट्ठी) डाली थी, लेकिन परमेश्वर ने उसकी योजना को पलट दिया था।
मोर्दकै ने सभी यहूदियों को पत्र लिखकर इस पर्व को मनाने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि यह दिन यहूदियों के लिए आनंद और उत्सव का दिन होगा, और इसे हर पीढ़ी में मनाया जाएगा। यहूदियों ने इस आदेश को स्वीकार किया और पूरीम का पर्व मनाना शुरू किया।
### परमेश्वर की सुरक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर अपने लोगों की सुरक्षा करता है और उन्हें उनके शत्रुओं से बचाता है। एस्तेर और मोर्दकै ने परमेश्वर पर भरोसा रखा और उनकी आज्ञा का पालन किया, जिसके कारण यहूदियों को बचाया गया। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि परमेश्वर की योजनाएं मनुष्य की योजनाओं से ऊपर हैं, और वह हर स्थिति में अपने लोगों के लिए कार्य करता है।
पूरीम का पर्व आज भी यहूदियों द्वारा मनाया जाता है, जो उनके उद्धार और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता की याद दिलाता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें भी परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और उसकी इच्छा के अनुसार चलना चाहिए, क्योंकि वह हमारे जीवन में महान कार्य कर सकता है।
—
यह कहानी हमें परमेश्वर की सामर्थ्य और उसकी योजनाओं के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर करती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि परमेश्वर हमेशा अपने लोगों के साथ खड़ा होता है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।