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यिर्मयाह 42: परमेश्वर की आज्ञा और मनुष्य का डर

यिर्मयाह 42 की कहानी हमें यहूदा के लोगों की एक महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताती है। यह घटना उस समय की है जब बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम को नष्ट कर दिया था और यहूदा के अधिकांश लोगों को बंदी बना लिया था। कुछ लोग जो बच गए थे, वे डर और अनिश्चितता में जी रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब उन्हें क्या करना चाहिए। उनके सामने एक बड़ा सवाल था: क्या वे मिस्र में शरण लेने जाएं या यहूदा की भूमि पर बने रहें?

उस समय, यिर्मयाह नबी परमेश्वर का संदेश लेकर लोगों के बीच खड़ा था। वह परमेश्वर की आवाज़ था, जो लोगों को सही मार्ग दिखाने के लिए भेजा गया था। यहूदा के लोगों ने फैसला किया कि वे यिर्मयाह के पास जाएंगे और परमेश्वर से प्रार्थना करेंगे कि वह उन्हें मार्गदर्शन दे। वे यिर्मयाह के पास इकट्ठे हुए और उससे कहा, “हे यिर्मयाह, हमारी प्रार्थना सुन। हमारे लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर कि वह हमें बताए कि हमें क्या करना चाहिए। हम तुम्हारी बात मानेंगे और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करेंगे।”

यिर्मयाह ने उनकी बात सुनी और उन्हें आश्वासन दिया कि वह परमेश्वर से प्रार्थना करेगा। वह जानता था कि लोगों के दिल में डर और अनिश्चितता थी, लेकिन वह यह भी जानता था कि परमेश्वर की इच्छा ही सबसे महत्वपूर्ण है। यिर्मयाह ने परमेश्वर से प्रार्थना की और दस दिन तक उसकी प्रतीक्षा की। दस दिन बाद, परमेश्वर ने यिर्मयाह से बात की और उसे एक संदेश दिया।

यिर्मयाह ने लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, “परमेश्वर ने मुझसे बात की है और तुम्हारे लिए एक संदेश दिया है। परमेश्वर कहता है, ‘यदि तुम यहूदा की भूमि पर बने रहोगे, तो मैं तुम्हें सुरक्षा और आशीर्वाद दूंगा। मैं तुम्हें बाबुल के राजा से बचाऊंगा और तुम्हारी रक्षा करूंगा। लेकिन यदि तुम मिस्र में शरण लेने जाओगे, तो तुम्हारे लिए विनाश होगा। तुम्हारा डर तुम्हें मार डालेगा, और तुम वहां तलवार, भूख और महामारी से मरोगे।'”

यिर्मयाह ने लोगों को चेतावनी दी कि वे परमेश्वर की आज्ञा का पालन करें और यहूदा की भूमि पर बने रहें। उसने उन्हें यह भी बताया कि परमेश्वर उनके साथ है और उनकी रक्षा करेगा। लेकिन यिर्मयाह को पता था कि लोगों के दिल में डर और संदेह था। वे सोच रहे थे कि क्या वास्तव में परमेश्वर उनकी रक्षा करेगा या नहीं।

लोगों ने यिर्मयाह की बात सुनी, लेकिन उनके दिल में संदेह बना रहा। वे सोचने लगे कि शायद मिस्र में जाना ही बेहतर होगा। वे डर गए कि अगर वे यहूदा में रहेंगे, तो बाबुल के राजा उन्हें फिर से हरा देंगे। उन्होंने यिर्मयाह की बात नहीं मानी और मिस्र जाने का फैसला किया।

यिर्मयाह ने उन्हें फिर से चेतावनी दी और कहा, “तुम लोग परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हो। तुम अपने डर के कारण उसकी बात नहीं मान रहे हो। यदि तुम मिस्र जाओगे, तो तुम्हारा विनाश निश्चित है। परमेश्वर ने तुम्हें चेतावनी दी है, लेकिन तुम उसकी बात नहीं सुन रहे हो।”

लेकिन लोगों ने यिर्मयाह की बात नहीं मानी। वे मिस्र चले गए और वहां बस गए। उन्होंने सोचा कि वे सुरक्षित हो जाएंगे, लेकिन परमेश्वर की चेतावनी सच साबित हुई। मिस्र में उन्हें तलवार, भूख और महामारी का सामना करना पड़ा। उनका विनाश हो गया, जैसा कि परमेश्वर ने कहा था।

यिर्मयाह 42 की कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। यह हमें यह भी सिखाती है कि डर और संदेह हमें परमेश्वर से दूर कर सकते हैं। हमें हमेशा परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और उसकी इच्छा के अनुसार चलना चाहिए। यिर्मयाह की तरह, हमें भी परमेश्वर की आवाज़ सुननी चाहिए और उसके मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए।

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