2 शमूएल 19 की कहानी एक ऐसे समय की है जब राजा दाऊद अपने पुत्र अबशालोम के विद्रोह के बाद यरूशलेम लौट रहा था। यह कहानी दाऊद के दिल की गहराईयों, उसकी पीड़ा, और उसकी दया को दर्शाती है। यह एक ऐसा समय था जब राजा को न केवल अपने राज्य को फिर से स्थापित करना था, बल्कि लोगों के दिलों को भी जीतना था।
जब अबशालोम की मृत्यु हो गई, तो दाऊद के लिए यह खबर एक बड़ा झटका थी। वह अपने पुत्र के लिए शोक में डूब गया, भले ही अबशालोम ने उसके खिलाफ विद्रोह किया था। दाऊद ने अपने पुत्र के लिए रोते हुए कहा, “हे मेरे पुत्र अबशालोम, हे मेरे पुत्र, मेरे पुत्र अबशालोम! काश मैं तेरे स्थान पर मर गया होता! हे अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र!” यह दाऊद की पितृसुलभ प्रेम और दुख की अभिव्यक्ति थी।
लेकिन यह शोक युद्ध के मैदान में जीत हासिल करने वाले सैनिकों के लिए उचित नहीं लगा। योआब, दाऊद के सेनापति, ने राजा से कहा, “आज आपने उन सभी के प्रति अपना सम्मान खो दिया है जो आपके लिए अपने प्राणों की बाजी लगा चुके हैं। आप उन्हें दुश्मन की तरह मान रहे हैं, जबकि वे आपके लिए मरने-मारने को तैयार हैं। आप उन लोगों से प्रेम करते हैं जो आपसे घृणा करते हैं और उनसे घृणा करते हैं जो आपसे प्रेम करते हैं। आज यह स्पष्ट हो गया है कि आपके लिए सेनापति और सैनिक कुछ भी नहीं हैं। यदि अबशालोम जीवित होता और हम सभी मर जाते, तो आपको कोई फर्क नहीं पड़ता।”
योआब की यह कड़वी बातें दाऊद के दिल को छू गईं। उसने अपने शोक को छोड़ दिया और राजसी ढंग से बैठ गया। फिर उसने लोगों को संबोधित किया और उन्हें धन्यवाद दिया। दाऊद ने महसूस किया कि उसे अपने लोगों के साथ फिर से जुड़ना होगा और उन्हें आश्वस्त करना होगा कि वह उनके साथ है।
इसके बाद, दाऊद ने यरूशलेम लौटने का निर्णय लिया। उसने यहूदा के लोगों को संदेश भेजा और कहा, “तुम मेरे भाई हो, मेरी हड्डियों और मांस के हो। तुम मुझे वापस ले जाने में क्यों संकोच कर रहे हो?” यहूदा के लोगों ने दाऊद के शब्दों को सुना और उन्होंने उसे वापस लाने का निर्णय लिया।
जब दाऊद यरदन नदी के पास पहुंचा, तो शिमी, जिसने पहले दाऊद को शाप दिया था, उसके सामने आया। शिमी ने दाऊद से क्षमा मांगी और कहा, “हे मेरे प्रभु, मैंने जो पाप किया है, उसे कृपया माफ कर दें। मैं जानता हूं कि मैंने गलत किया है, लेकिन आज मैं आपके लिए सबसे पहले यरदन पार करने आया हूं।” अबीशै, दाऊद के सेनापति, ने कहा, “क्या शिमी को मृत्युदंड नहीं मिलना चाहिए? उसने परमेश्वर के अभिषिक्त को शाप दिया था।” लेकिन दाऊद ने कहा, “आज मैं किसी को मारने का मूड में नहीं हूं। क्या तुम नहीं जानते कि आज मैं इस्राएल का राजा हूं?” दाऊद ने शिमी को क्षमा कर दिया, यह दर्शाता हुआ कि उसका हृदय दया से भरा था।
इसके बाद, मपीबोशेत, जो शाऊल के वंशज थे, दाऊद के सामने आए। मपीबोशेत ने दाऊद के लिए अपने प्रेम और निष्ठा को दिखाया। उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, मैं आपके लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।” दाऊद ने मपीबोशेत की निष्ठा को देखा और उसे आशीर्वाद दिया।
अंत में, बरजिल्ली, जो एक बूढ़ा व्यक्ति था और दाऊद की मदद करने के लिए आगे आया था, ने दाऊद से कहा, “मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूं और अब आपके साथ यरूशलेम नहीं जा सकता। मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा आपके साथ जाए।” दाऊद ने बरजिल्ली की इच्छा का सम्मान किया और उसके बेटे को अपने साथ ले गया।
इस तरह, दाऊद ने अपने लोगों के साथ फिर से जुड़कर अपने राज्य को मजबूत किया। उसने दया और न्याय के साथ शासन किया, यह दिखाते हुए कि एक सच्चा राजा वही होता है जो अपने लोगों के दिलों को जीतता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि दया और प्रेम ही वह मार्ग है जो हमें परमेश्वर के करीब ले जाता है।