पवित्र बाइबल

दाऊद का पश्चाताप और ईश्वर की क्षमा

एक बार की बात है, एक गाँव में दाऊद नाम का एक व्यक्ति रहता था। दाऊद एक ईश्वरभक्त इंसान था, लेकिन एक बार उसने एक बड़ी गलती कर दी। उसने अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ अनैतिक संबंध बनाए और फिर उसके पति को युद्ध में मार डालने का षड्यंत्र रचा। यह सब करने के बाद, दाऊद को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन वह इसे छुपाने की कोशिश करने लगा। वह सोचता था कि अगर वह चुप रहेगा, तो कोई उसकी गलती को नहीं जान पाएगा।

लेकिन ईश्वर सब कुछ देख रहा था। दाऊद के मन में अंदर ही अंदर एक तूफान चल रहा था। वह रातों को सो नहीं पाता था। उसका मन बेचैन रहता था, और उसकी आत्मा उसे डांटती रहती थी। उसने महसूस किया कि उसका पाप उसके शरीर और मन को सुखा रहा है, जैसे गर्मी के दिनों में सूखी धरती। वह दिन-रात अपने पाप के बोझ से दबा रहता था।

एक दिन, दाऊद ने ईश्वर के सामने अपने हृदय को खोल दिया। उसने कहा, “हे प्रभु, मैंने तुम्हारे सामने अपने पापों को छुपाया है, लेकिन अब मैं उन्हें स्वीकार करता हूँ। मैंने तुम्हारे विरुद्ध पाप किया है, और मैं इसके लिए पश्चाताप करता हूँ।” दाऊद ने अपने पापों को ईश्वर के सामने कबूल किया, और उसने अपने दिल से पश्चाताप किया।

जैसे ही दाऊद ने अपने पापों को स्वीकार किया, ईश्वर ने उसे क्षमा कर दिया। दाऊद ने महसूस किया कि उसका बोझ हल्का हो गया है, और उसकी आत्मा को शांति मिली। उसने कहा, “धन्य है वह व्यक्ति जिसके पापों को ईश्वर ने माफ कर दिया है, और जिसके अधर्म को ढक दिया है। धन्य है वह मनुष्य जिसके पापों को ईश्वर ने गिनती में नहीं लिया है, और जिसके हृदय में कपट नहीं है।”

दाऊद ने अपने अनुभव को एक भजन में लिखा, जो आज भी हमें सिखाता है कि पाप को छुपाने से हमारी आत्मा दुखी होती है, लेकिन जब हम ईश्वर के सामने अपने पापों को कबूल करते हैं, तो वह हमें क्षमा कर देता है। दाऊद ने कहा, “जब मैं चुप रहा, तो मेरी हड्डियाँ सूख गईं, और मैं दिन-रात कराहता रहा। लेकिन जब मैंने अपने पापों को स्वीकार किया, तो तूने मेरे अधर्म को क्षमा कर दिया।”

दाऊद ने लोगों को सलाह दी कि वे ईश्वर के पास जाएँ और उनके पापों को स्वीकार करें। उसने कहा, “तुम सभी जो ईश्वर से डरते हो, उसके पास जाओ और अपने पापों को कबूल करो। वह तुम्हें क्षमा करेगा और तुम्हें बचाएगा। ईश्वर हमारा सहायक है, और वह हमें सही रास्ते पर चलने की शक्ति देता है।”

दाऊद ने यह भी कहा कि ईश्वर हमारा मार्गदर्शक है। उसने कहा, “मैं तुम्हें सिखाऊंगा और तुम्हें वह रास्ता दिखाऊंगा जिस पर तुम्हें चलना चाहिए। मैं तुम्हें सलाह दूंगा और तुम्हारी देखभाल करूंगा।” दाऊद ने लोगों को यह भी चेतावनी दी कि अगर वे ईश्वर की आज्ञा नहीं मानेंगे, तो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। उसने कहा, “अगर तुम ईश्वर की आज्ञा नहीं मानोगे, तो तुम्हें दुख और कष्ट झेलने पड़ेंगे। लेकिन जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, उनके चारों ओर उसकी करुणा होगी।”

दाऊद का यह भजन हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की क्षमा और करुणा हमारे लिए हमेशा उपलब्ध है। हमें केवल अपने पापों को स्वीकार करना है और उसके सामने पश्चाताप करना है। दाऊद ने कहा, “हे धर्मी लोगों, ईश्वर में आनन्दित हो और गाओ। सब जो सीधे हृदय के हो, आनन्द से चिल्लाओ।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ईश्वर हमारे पापों को क्षमा करने के लिए तैयार है, लेकिन हमें उसके सामने ईमानदार होना चाहिए। दाऊद की तरह, हमें भी अपने पापों को स्वीकार करना चाहिए और ईश्वर की क्षमा और मार्गदर्शन की तलाश करनी चाहिए।

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