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योशिय्याह की ज्ञानपूर्ण शिक्षा: धर्मी और दुष्ट का मार्ग

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बुद्धिमान बूढ़ा व्यक्ति रहता था, जिसका नाम योशिय्याह था। वह गाँव के लोगों के लिए एक मार्गदर्शक और शिक्षक की तरह था। उसकी बातें हमेशा ज्ञान से भरी होती थीं, और लोग उसके पास सलाह लेने आते थे। एक दिन, गाँव के युवाओं ने उसके पास इकट्ठा होकर कहा, “योशिय्याह, हमें जीवन के बारे में कुछ सिखाओ। हमें समझाओ कि हम कैसे एक अच्छा और सफल जीवन जी सकते हैं।”

योशिय्याह ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा और कहा, “मेरे बच्चों, जीवन का रहस्य परमेश्वर के वचन में छिपा है। आज मैं तुम्हें नीतिवचन अध्याय 10 की शिक्षा सुनाऊंगा, जो हमें बताती है कि धर्मी और दुष्ट के बीच क्या अंतर है।”

उसने गहरी सांस ली और कहना शुरू किया, “धर्मी का मुँह जीवन देता है, क्योंकि उसके शब्द सत्य और प्रेम से भरे होते हैं। वह जो कुछ भी बोलता है, वह दूसरों के लिए आशीष बन जाता है। लेकिन दुष्ट का मुँह हिंसा और धोखे से भरा होता है। उसके शब्द लोगों को चोट पहुँचाते हैं और उन्हें अंधकार में डालते हैं।”

योशिय्याह ने एक कहानी सुनाई, “एक बार दो भाई थे। एक भाई मेहनती और ईमानदार था, जबकि दूसरा आलसी और धोखेबाज। मेहनती भाई हर दिन खेत में काम करता, बीज बोता और फसल काटता। उसकी मेहनत का फल उसे मिलता, और वह खुशी-खुशी अपने परिवार का पालन-पोषण करता। लेकिन दूसरा भाई चोरी और धोखे से अपना जीवन चलाता था। वह सोचता था कि वह आसान रास्ता अपनाकर धनवान बन जाएगा, लेकिन उसकी चोरी और बेईमानी उसे केवल दुःख और शर्मिंदगी लेकर आई।”

योशिय्याह ने आगे कहा, “धर्मी का मार्ग परमेश्वर की आशीष से भरा होता है। वह जो कुछ भी करता है, उसमें सफल होता है, क्योंकि वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलता है। लेकिन दुष्ट का मार्ग अंधकारमय होता है। वह जो कुछ भी करता है, उसमें असफल होता है, क्योंकि वह परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मानता।”

उसने एक और उदाहरण दिया, “एक धर्मी व्यक्ति हमेशा दूसरों की मदद करता है। वह गरीबों को खाना खिलाता है, अनाथों की देखभाल करता है, और विधवाओं की सहायता करता है। उसका हृदय दयालु और उदार होता है। लेकिन एक दुष्ट व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है। वह दूसरों का शोषण करता है और उन्हें नुकसान पहुँचाता है। उसका अंत बुरा होता है, क्योंकि परमेश्वर उसके कर्मों का न्याय करता है।”

योशिय्याह ने युवाओं को समझाया, “तुम्हें हमेशा सत्य का मार्ग चुनना चाहिए। झूठ और धोखे से दूर रहो, क्योंकि वे तुम्हें केवल नुकसान पहुँचाएंगे। परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करो और उसके वचन को अपने हृदय में रखो। तब तुम्हारा जीवन आशीषों से भर जाएगा।”

युवाओं ने योशिय्याह की बातें ध्यान से सुनीं और उन्हें अपने हृदय में उतार लिया। वे समझ गए कि धर्मी का जीवन ही सच्चा सुख और शांति लाता है। उन्होंने प्रण किया कि वे हमेशा परमेश्वर के मार्ग पर चलेंगे और उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे।

योशिय्याह ने अंत में कहा, “याद रखो, परमेश्वर हमेशा धर्मी की रक्षा करता है। वह उन्हें सुरक्षित रखता है और उनके शत्रुओं से बचाता है। लेकिन दुष्ट का अंत नाश होता है। इसलिए, हमेशा सत्य और धर्म का मार्ग चुनो, और परमेश्वर तुम्हें आशीष देगा।”

गाँव के युवाओं ने योशिय्याह का धन्यवाद किया और उसकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने का प्रण लिया। वे समझ गए कि जीवन का सच्चा सुख और सफलता केवल परमेश्वर के मार्ग पर चलने में ही है।

और इस तरह, योशिय्याह की शिक्षाओं ने गाँव के लोगों के जीवन को बदल दिया। वे सभी धर्मी और नेक बन गए, और परमेश्वर की आशीषें उन पर बरसने लगीं।

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