पवित्र बाइबल

सीनै जंगल में परमेश्वर की आज्ञाएँ और इस्राएल का वचन

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोग मिस्र की गुलामी से मुक्त होकर सीनै के जंगल में पहुँचे थे। वहाँ परमेश्वर ने मूसा को बुलाया और उन्हें अपनी व्यवस्था और आज्ञाएँ दीं, ताकि वे उनके जीवन का मार्गदर्�न कर सकें। ये आज्ञाएँ न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए थीं, बल्कि उनके समाज और समुदाय के लिए भी थीं। परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हें एक ऐसी भूमि की ओर ले जा रहा हूँ जो दूध और मध की धारा बहाती है। लेकिन तुम्हें मेरी आज्ञाओं का पालन करना होगा और न्याय और धर्म के मार्ग पर चलना होगा।”

परमेश्वर ने मूसा को विस्तार से समझाया कि कैसे उन्हें अपने समाज में न्याय और ईमानदारी बनाए रखनी है। उन्होंने कहा, “तुम झूठी खबर फैलाने से बचो। किसी दुष्ट व्यक्ति के साथ मिलकर गवाही देने के लिए तैयार मत हो। बहुसंख्यकों के प्रभाव में आकर न्याय को मत मोड़ो। तुम्हें गरीबों के साथ भी न्याय करना चाहिए, चाहे वे तुम्हारे समाज में कितने ही छोटे क्यों न हों।”

परमेश्वर ने आगे कहा, “यदि तुम्हें अपने शत्रु का बैल या गधा भटका हुआ मिले, तो उसे वापस उसके पास ले जाना। यदि तुम्हें अपने बैरी का गधा उसके बोझ के नीचे दबा हुआ मिले, तो उसे छोड़ने में उसकी सहायता करो। तुम्हें उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।”

फिर परमेश्वर ने उन्हें सच्चाई और निष्पक्षता के बारे में सिखाया। उन्होंने कहा, “तुम न्याय में पक्षपात न करो। न तो गरीबों के साथ पक्षपात करो, न ही धनी लोगों के साथ। तुम्हें हमेशा सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए।”

परमेश्वर ने उन्हें सातवें वर्ष के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, “छह वर्ष तक तुम अपने खेतों में बोओगे और फसल काटोगे, लेकिन सातवें वर्ष में तुम उन्हें बिना जोते और बिना बोए छोड़ दोगे। इस वर्ष में गरीब लोग तुम्हारे खेतों से खा सकेंगे, और जंगली जानवर भी उसमें से खाएँगे। यह मेरी व्यवस्था है।”

परमेश्वर ने उन्हें सब्त के दिन के बारे में भी सिखाया। उन्होंने कहा, “छह दिन तक तुम अपना काम करोगे, लेकिन सातवें दिन तुम आराम करोगे। यह दिन मेरे लिए पवित्र है। इस दिन तुम्हें कोई काम नहीं करना चाहिए, न तो तुम्हें, न तुम्हारे बच्चों को, न तुम्हारे दासों को, न तुम्हारे पशुओं को, और न ही तुम्हारे देश में रहने वाले परदेशियों को।”

परमेश्वर ने उन्हें तीन वार्षिक पर्वों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, “तुम्हें हर साल तीन बार मेरे सामने उपस्थित होना चाहिए। पहला पर्व अखमीरी रोटी का पर्व है, जो तुम्हें निसान के महीने में मनाना चाहिए। दूसरा पर्व फसल काटने का पर्व है, जो तुम्हें गेहूँ की फसल काटने के समय मनाना चाहिए। तीसरा पर्व फलों की कटाई का पर्व है, जो तुम्हें साल के अंत में मनाना चाहिए। इन पर्वों पर तुम्हें मेरे सामने खाली हाथ नहीं आना चाहिए। तुम्हें अपने परमेश्वर के लिए उपहार लेकर आना चाहिए।”

परमेश्वर ने उन्हें यह भी चेतावनी दी, “तुम मेरी व्यवस्था का पालन करो और मेरी आज्ञाओं को मानो। यदि तुम ऐसा करोगे, तो मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे सामने से भगा दूंगा और तुम्हें उस भूमि में स्थिरता दूंगा जो मैंने तुम्हें देने का वचन दिया है। मैं तुम्हारे बीच में रहूंगा और तुम्हारा रक्षक बनूंगा।”

परमेश्वर ने उन्हें यह भी सिखाया कि वे अन्यजातियों के देवताओं की पूजा न करें। उन्होंने कहा, “तुम उनके देवताओं की पूजा न करो, न ही उनकी मूर्तियों को अपने बीच में रखो। यदि तुम ऐसा करोगे, तो वे तुम्हारे लिए फंदा बन जाएंगे। तुम्हें केवल मेरी ही आराधना करनी चाहिए और मेरी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।”

परमेश्वर ने उन्हें यह भी वचन दिया कि यदि वे उनकी आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो वे उन्हें आशीर्वाद देंगे। उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारे खेतों में फसलें बढ़ाऊंगा, तुम्हारे पशुओं को स्वस्थ रखूंगा, और तुम्हारे बीच में कोई बीमारी नहीं आने दूंगा। मैं तुम्हारे दुश्मनों को तुम्हारे सामने से भगा दूंगा और तुम्हें शांति और सुरक्षा प्रदान करूंगा।”

मूसा ने परमेश्वर की इन सभी आज्ञाओं को इस्राएल के लोगों को सुनाया। उन्होंने उन्हें समझाया कि ये आज्ञाएँ न केवल उनके लिए हैं, बल्कि उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हैं। उन्होंने कहा, “यदि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करोगे, तो वे तुम्हें आशीर्वाद देंगे और तुम्हारे जीवन में उनकी उपस्थिति बनी रहेगी। लेकिन यदि तुम उनकी आज्ञाओं को नहीं मानोगे, तो तुम्हारे जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी।”

इस्राएल के लोगों ने मूसा की बातों को ध्यान से सुना और परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने का वचन दिया। वे जानते थे कि परमेश्वर उनके साथ हैं और उन्हें एक नई भूमि की ओर ले जा रहे हैं। उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को अपने हृदय में संजोया और उनका पालन करने का निश्चय किया।

इस प्रकार, परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को न्याय, ईमानदारी, और उनके समाज के लिए आवश्यक नियम दिए। ये आज्ञाएँ न केवल उनके लिए थीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी थीं, ताकि वे परमेश्वर के मार्ग पर चल सकें और उनकी आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

और इस तरह, इस्राएल के लोग परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए, उनकी उपस्थिति और आशीर्वाद के साथ, अपने जीवन की यात्रा पर आगे बढ़ते रहे।

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