**गिनती 20: कादेश में मूसा और हारून की परीक्षा**
यह कहानी इस्राएलियों के जंगल में भटकने के चालीसवें वर्ष की है। वे कादेश नामक स्थान पर पहुँचे थे, जो कनान देश की सीमा के पास था। यह स्थान बंजर और सूखा था, जहाँ पानी की भारी कमी थी। इस्राएलियों का समुदाय, जो अब एक पूरी पीढ़ी के बाद भी वादा किए गए देश में प्रवेश करने के लिए तैयार था, एक बार फिर परमेश्वर की परीक्षा में खड़ा था।
उस समय, मरियम, मूसा और हारून की बहन, जो इस्राएलियों के बीच एक नबी के रूप में जानी जाती थी, का निधन हो गया। उसे कादेश में दफनाया गया। इस्राएलियों के लिए यह एक दुखद समय था, क्योंकि मरियम ने उनके जंगल की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसकी मृत्यु के बाद, लोगों के हृदय में एक नई बेचैनी उत्पन्न हो गई।
जल की कमी ने इस्राएलियों को फिर से विद्रोह के लिए उकसाया। वे मूसा और हारून के पास इकट्ठे हुए और उनके विरुद्ध शिकायत करने लगे। उनकी आवाज़ें क्रोध और निराशा से भरी हुई थीं। “काश! हम भी अपने भाइयों के साथ यहोवा के सामने मर गए होते!” वे चिल्लाए। “तुम हमें इस बंजर जंगल में क्यों लाए हो? यहाँ न तो अनाज है, न अंगूर, न अनार, और न ही पीने के लिए पानी! क्या तुम हमें और हमारे पशुओं को प्यास से मरने के लिए यहाँ लाए हो?”
मूसा और हारून ने लोगों की शिकायतें सुनीं और वे परमेश्वर के सामने गए। वे मिलाप के तम्बू में प्रवेश किए और यहोवा के सामने अपना मुँह झुकाया। उनकी प्रार्थना सुनकर, यहोवा की महिमा उनके सामने प्रकट हुई। परमेश्वर ने मूसा से कहा, “लोगों को इकट्ठा करो और उनके सामने चट्टान के पास खड़े हो जाओ। मैं उनके सामने चट्टान से पानी निकालूँगा, ताकि वे और उनके पशु पी सकें।”
मूसा ने परमेश्वर के आदेश का पालन किया। वह और हारून लोगों को इकट्ठा करके चट्टान के पास ले गए। चट्टान विशाल और सूखी थी, जैसे कि उसमें से कभी पानी न निकल सके। मूसा ने अपना हाथ उठाया और लोगों से कहा, “सुनो, हे विद्रोही लोगो! क्या हम इस चट्टान से तुम्हारे लिए पानी निकाल सकते हैं?” यह कहकर, मूसा ने अपनी लाठी से चट्टान पर दो बार प्रहार किया।
तब एक अद्भुत चमत्कार हुआ। चट्टान से पानी की धाराएँ फूट पड़ीं। पानी इतना अधिक था कि वह नदी की तरह बहने लगा। लोग और उनके पशु पानी पीकर तृप्त हो गए। यहोवा ने अपनी महान शक्ति दिखाई थी, और उसने अपने लोगों की जरूरत को पूरा किया था।
हालाँकि, इस घटना में मूसा और हारून ने एक गंभीर गलती की थी। परमेश्वर ने उन्हें स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि वे चट्टान से बात करें, न कि उसे मारें। मूसा ने अपने क्रोध में चट्टान पर दो बार प्रहार किया, जो परमेश्वर के आदेश का पालन नहीं था। इसके अलावा, मूसा ने लोगों से कहा, “क्या हम तुम्हारे लिए पानी निकाल सकते हैं?” यह वाक्य परमेश्वर की महिमा को कम करता था, क्योंकि यह दिखाता था कि मूसा और हारून अपनी शक्ति से यह चमत्कार कर रहे थे, न कि परमेश्वर की।
इसलिए, यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “क्योंकि तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया और इस्राएलियों के सामने मेरी पवित्रता को प्रकट नहीं किया, इसलिए तुम इस समुदाय को उस देश में नहीं ले जाओगे, जो मैंने उन्हें दिया है।” यह एक कठोर दंड था, क्योंकि मूसा और हारून ने परमेश्वर के आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं किया था।
इस घटना को “मेरिबा” (विवाद) का स्थान कहा गया, क्योंकि वहाँ इस्राएलियों ने यहोवा के साथ विवाद किया था। यह स्थान इस्राएलियों के लिए एक यादगार बन गया, जहाँ परमेश्वर ने उनकी जरूरत को पूरा किया, लेकिन साथ ही उनके नेताओं को उनकी गलती के लिए दंडित भी किया।
इस प्रकार, यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर के आदेशों का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। मूसा और हारून, जो परमेश्वर के विश्वासयोग्य सेवक थे, उन्हें भी अपनी गलती की कीमत चुकानी पड़ी। यह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर की आज्ञाकारिता और उसकी महिमा को सर्वोच्च स्थान देना हमारे जीवन में कितना आवश्यक है।