पवित्र बाइबल

अय्यूब की पीड़ा और दुष्टों का सुख

एक समय की बात है, जब अय्यूब नामक एक धर्मी व्यक्ति अपने दुखों से घिरा हुआ था। वह अपने मित्रों के साथ बैठकर अपने मन की पीड़ा को व्यक्त कर रहा था। उसने अपने मित्रों से कहा, “सुनो, मेरी बात को ध्यान से सुनो। यही मेरी सांत्वना होगी। मुझे बोलने दो, और जब मैं बोल चुकूं, तब तुम मेरी हंसी उड़ा सकते हो।”

अय्यूब ने अपने मित्रों से पूछा, “क्या मेरी शिकायत मनुष्य से है? यदि ऐसा है, तो मुझे चिंता क्यों नहीं होनी चाहिए? मुझे देखो और आश्चर्यचकित हो जाओ; अपने हाथ मुंह पर रख लो। जब मैं सोचता हूं, तो मैं घबरा जाता हूं, और मेरा शरीर कांपने लगता है।”

अय्यूब ने अपने मित्रों से कहा, “क्यों दुष्ट लोग जीवित रहते हैं? वे बूढ़े होते हैं, और उनकी शक्ति बढ़ती है। उनके बच्चे उनके सामने सुरक्षित रहते हैं, और उनके वंशज उनकी आंखों के सामने बढ़ते हैं। उनके घर सुरक्षित रहते हैं, और उन्हें कोई डर नहीं होता। उनकी छड़ी उन पर नहीं पड़ती। उनके बैल संभोग करते हैं और निष्फल नहीं होते; उनकी गायें बछड़े को जन्म देती हैं और नहीं गिरातीं। वे अपने बच्चों को भेड़ों की तरह बाहर भेजते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं। वे डफ और वीणा की धुन पर गाते हैं, और सारंगी की धुन पर आनंदित होते हैं। वे अपने दिन सुख से बिताते हैं, और एक पल में अधोलोक में उतर जाते हैं।”

अय्यूब ने आगे कहा, “फिर भी वे परमेश्वर से कहते हैं, ‘हमसे दूर रहो; हम तेरे मार्गों का ज्ञान नहीं चाहते। सर्वशक्तिमान कौन है कि हम उसकी सेवा करें? और हमें क्या लाभ होगा यदि हम उससे प्रार्थना करें?’ देखो, उनकी समृद्धि उनके अपने हाथ में नहीं है; दुष्टों की योजना मुझसे दूर है।”

अय्यूब ने अपने मित्रों से पूछा, “कितनी बार दुष्टों का दीपक बुझता है? कितनी बार उन पर विपत्ति आती है? कितनी बार परमेश्वर अपने क्रोध में उन्हें दंड देता है? कितनी बार वे भूसे की तरह हो जाते हैं, जो हवा के साथ उड़ जाता है, और आंधी के साथ बह जाता है? क्या परमेश्वर उनके पुत्रों के अधर्म के लिए उन्हें दंड देता है? उन्हें स्वयं अपने अधर्म के लिए दंड मिले, ताकि वे जान लें। उनकी आंखें देखें कि उनका विनाश हो रहा है, और वे सर्वशक्तिमान का क्रोध पीएं। क्योंकि उनके घराने के बाद उन्हें क्या चिंता होगी, जब उनके महीनों की गिनती पूरी हो जाएगी?”

अय्यूब ने कहा, “क्या कोई परमेश्वर को ज्ञान सिखा सकता है? क्योंकि वही ऊंचे लोगों का न्याय करता है। एक मनुष्य तो अपने सुख के दिनों में मर जाता है, पूर्ण रूप से शांत और सुरक्षित। उसकी टोकरियां दूध से भरी होती हैं, और उसकी हड्डियों का मज्जा तरोताजा होता है। दूसरा मनुष्य कड़वाहट के साथ मरता है, और कभी भी सुख का स्वाद नहीं चखता। वे दोनों धूल में एक साथ लेटते हैं, और कीड़े उन्हें ढक लेते हैं।”

अय्यूब ने अपने मित्रों से कहा, “मैं जानता हूं कि तुम्हारे विचार क्या हैं, और तुम मेरे विरुद्ध क्या योजना बना रहे हो। तुम कहते हो, ‘राजा का महल कहां है? दुष्टों के तंबू कहां हैं?’ क्या तुमने यात्रियों से नहीं पूछा? तुम उनके चिन्हों को नहीं पहचानते? क्योंकि दुष्ट व्यक्ति विनाश के दिन के लिए बचा लिया जाता है। वह प्रकोप के दिन बचा लिया जाता है। कौन उसके मार्ग को उसके मुंह पर बताएगा? और जो कुछ उसने किया है, उसका प्रतिफल कौन उसे देगा? वह कब्रों में ले जाया जाएगा, और उसकी कब्र पर पहरा दिया जाएगा। घाटी की मिट्टी उस पर मीठी लगेगी, और सब मनुष्य उसके पीछे चलेंगे, जैसे उससे पहले अनगिनत लोग चले हैं।”

अय्यूब ने अपने मित्रों से कहा, “तो तुम्हारी सांत्वना व्यर्थ है; तुम्हारे उत्तर केवल झूठ हैं।”

इस प्रकार, अय्यूब ने अपने मित्रों के सामने अपने मन की पीड़ा को व्यक्त किया और उनके द्वारा दिए गए उत्तरों को चुनौती दी। उसने उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि दुष्टों का जीवन कैसे सुखमय हो सकता है, जबकि धर्मी लोग दुखों से घिरे होते हैं। अय्यूब ने यह भी दिखाया कि परमेश्वर के न्याय और उसकी योजनाओं को समझना मनुष्य के लिए कितना कठिन है। उसने अपने मित्रों से कहा कि उनकी सांत्वना और उत्तर व्यर्थ हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के रहस्यों को नहीं समझते।

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