पवित्र बाइबल

यरूशलेम की दीवारों का पुनर्निर्माण और समर्पण

यह कहानी नहेम्याह 12 के आधार पर है, जो यरूशलेम की दीवारों के पुनर्निर्माण और उनके समर्पण के बारे में है। यह घटना इस्राएलियों के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मोड़ थी। यह कहानी विस्तार से और विवरणों के साथ बताई गई है, जो पाठकों को उस समय की भावनाओं और घटनाओं में डुबो देगी।

यरूशलेम की दीवारों का पुनर्निर्माण पूरा हो चुका था। नहेम्याह, जो इस महान कार्य का नेतृत्व कर रहे थे, ने देखा कि यह केवल पत्थर और मिट्टी का काम नहीं था, बल्कि यह परमेश्वर की महिमा और उनकी प्रतिज्ञाओं का प्रतीक था। दीवारें अब मजबूत और ऊंची खड़ी थीं, जो शहर को सुरक्षा और गौरव प्रदान करती थीं। लेकिन नहेम्याह जानते थे कि यह काम तब तक पूरा नहीं होगा जब तक कि इसे परमेश्वर के सामने समर्पित न किया जाए।

नहेम्याह ने याजकों, लेवियों और सभी लोगों को इकट्ठा किया। उन्होंने कहा, “हमारे परमेश्वर ने हमें यह काम पूरा करने की शक्ति दी है। अब हमें उनकी महिमा के लिए इस दीवार को समर्पित करना चाहिए।” लोगों ने उत्साह से सहमति दी, और एक बड़ा उत्सव आयोजित करने का निर्णय लिया गया।

समर्पण के दिन, यरूशलेम के सभी लोग एकत्र हुए। याजकों और लेवियों ने अपने सफेद वस्त्र पहने, जो पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक थे। उनके हाथों में तुरहियाँ और वाद्य यंत्र थे, जो परमेश्वर की स्तुति के लिए तैयार थे। नहेम्याह ने दो बड़े गायक मंडल बनाए, जो दीवारों के ऊपर चलकर परमेश्वर की स्तुति करेंगे। एक मंडल दक्षिण की ओर से चलना शुरू करेगा, और दूसरा उत्तर की ओर से। वे दीवार के ऊपर चलते हुए मिलेंगे और फिर मंदिर में जाकर परमेश्वर की आराधना करेंगे।

पहला मंडल, जिसका नेतृत्व एज्रा कर रहे थे, दक्षिण की ओर से चलना शुरू किया। उनके साथ याजक और लेवी थे, जो तुरहियाँ बजा रहे थे। दूसरा मंडल, जिसका नेतृत्व नहेम्याह ने किया, उत्तर की ओर से चलना शुरू किया। दोनों मंडलों के लोगों ने जोर-जोर से गाना गाया, “हमारा परमेश्वर महान है! उसने हमें यह काम पूरा करने की शक्ति दी है। उसकी दया और विश्वासयोग्यता सदा बनी रहेगी।”

दीवार के ऊपर चलते हुए, लोगों ने देखा कि यह केवल पत्थरों की दीवार नहीं थी, बल्कि यह परमेश्वर की सुरक्षा और प्रतिज्ञाओं का प्रतीक थी। उन्होंने अपने पूर्वजों के समय से लेकर अब तक के सभी संघर्षों को याद किया। बाबुल की गुलामी, यरूशलेम का विनाश, और अब इसका पुनर्निर्माण—यह सब परमेश्वर की योजना का हिस्सा था। उनके हृदय आनंद और कृतज्ञता से भर गए।

जब दोनों मंडल दीवार के मध्य में मिले, तो उन्होंने और भी जोर से गाना शुरू किया। तुरहियों की आवाज़ आकाश को छूने लगी, और लोगों के आनंद के आँसू उनकी आँखों से बहने लगे। वे जानते थे कि यह केवल उनका काम नहीं था, बल्कि परमेश्वर का हाथ उनके साथ था।

अंत में, सभी लोग मंदिर में इकट्ठा हुए। याजकों ने बलिदान चढ़ाए, और लेवियों ने परमेश्वर की स्तुति में गीत गाए। नहेम्याह ने लोगों को संबोधित किया और कहा, “आज हमने न केवल दीवारों को समर्पित किया है, बल्कि हमने अपने जीवन को भी परमेश्वर के सामने समर्पित किया है। हमें उनकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए और उनकी सेवा में बने रहना चाहिए।”

लोगों ने एक स्वर में कहा, “आमीन!” उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करेंगे और उनकी सेवा में वफादार रहेंगे। उस दिन, यरूशलेम में आनंद और उत्सव का माहौल था। लोगों ने महसूस किया कि परमेश्वर उनके साथ है, और उनका भविष्य उनकी आज्ञाकारिता और विश्वास पर निर्भर करता है।

इस तरह, यरूशलेम की दीवारों का समर्पण एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटना बन गया। यह इस्राएलियों के लिए एक नई शुरुआत थी, जहाँ उन्होंने परमेश्वर की महिमा और उनकी प्रतिज्ञाओं को याद किया। नहेम्याह और एज्रा के नेतृत्व में, लोगों ने अपने विश्वास को मजबूत किया और परमेश्वर की सेवा में एकजुट हो गए।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर हमारे साथ है, और उनकी योजनाएं हमारे लिए भलाई और आशा से भरी हैं। हमें केवल उन पर विश्वास करना चाहिए और उनकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।

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