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उज्जिय्याह: उत्थान और पतन की प्रेरणादायक कहानी

2 इतिहास 26 की कहानी यहूदा के राजा उज्जिय्याह के जीवन और उसके शासनकाल पर आधारित है। उज्जिय्याह यहूदा के एक महान राजा थे, जिन्होंने अपने जीवन में परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन किया और अपने राज्य को समृद्धि और शक्ति प्रदान की। यह कहानी उसके उत्थान और पतन को विस्तार से बताती है।

### उज्जिय्याह का राज्यारोहण

उज्जिय्याह के पिता, राजा अमस्याह, युद्ध में मारे गए थे। जब उज्जिय्याह केवल सोलह वर्ष का था, तब वह यहूदा का राजा बना। उस समय यहूदा का राज्य अशांत था, और लोग परमेश्वर से दूर हो रहे थे। परन्तु उज्जिय्याह ने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति समर्पण रखा। वह यहोवा की आज्ञाओं का पालन करने वाला था और उसने अपने जीवन में जकर्याह नामक एक भविष्यद्वक्ता से मार्गदर्शन लिया। जकर्याह ने उसे परमेश्वर के मार्ग पर चलने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने की शिक्षा दी।

उज्जिय्याह ने अपने राज्य की सुरक्षा और समृद्धि के लिए कई कदम उठाए। उसने यरूशलेम की दीवारों को मजबूत किया और शहर के फाटकों को सुदृढ़ बनाया। उसने सेना को संगठित किया और युद्ध के लिए तैयार किया। उसने नए हथियार और युद्ध के उपकरण बनवाए, जिससे यहूदा की सेना शक्तिशाली बन गई।

### उज्जिय्याह की सफलताएँ

उज्जिय्याह ने अपने शासनकाल में कई युद्ध जीते। उसने पलिश्तियों के खिलाफ युद्ध किया और उनके शहरों को जीत लिया। उसने अरबों और मौनी लोगों के खिलाफ भी विजय प्राप्त की। उसकी सेना इतनी शक्तिशाली थी कि उसके नाम से दूर-दूर तक लोग कांपते थे। उसने अपने राज्य की सीमाओं को विस्तारित किया और यहूदा को एक समृद्ध और सुरक्षित राष्ट्र बना दिया।

उज्जिय्याह ने केवल युद्ध में ही नहीं, बल्कि कृषि और व्यापार में भी अपने राज्य को समृद्ध किया। उसने खेतों और बागों की देखभाल की और किसानों को प्रोत्साहित किया। उसने जलाशयों और कुओं का निर्माण करवाया, ताकि लोगों को पानी की कमी न हो। उसके शासनकाल में यहूदा एक समृद्ध और खुशहाल राष्ट्र बन गया।

### उज्जिय्याह का घमंड और पतन

परन्तु जैसे-जैसे उज्जिय्याह की शक्ति और समृद्धि बढ़ी, वैसे-वैसे उसका घमंड भी बढ़ने लगा। वह अपनी सफलताओं को अपने बल और बुद्धि का परिणाम समझने लगा। उसने परमेश्वर को भूलना शुरू कर दिया और अपने आप को सर्वशक्तिमान समझने लगा।

एक दिन, उज्जिय्याह ने यहोवा के मंदिर में प्रवेश करने का निर्णय लिया। वह परमेश्वर के सामने धूप जलाना चाहता था, जो केवल याजकों का कार्य था। याजकों ने उसे रोकने की कोशिश की और कहा, “हे राजा, यह तेरे लिए उचित नहीं है। धूप जलाना केवल याजकों का कार्य है, जो हारून के वंशज हैं। तू यहोवा के मंदिर में प्रवेश न कर, नहीं तो परमेश्वर तुझे दण्ड देगा।”

परन्तु उज्जिय्याह ने याजकों की बात नहीं मानी। वह क्रोधित हो गया और धूप जलाने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया। जैसे ही उसने धूप जलाना शुरू किया, परमेश्वर का क्रोध उस पर प्रकट हुआ। उज्जिय्याह के माथे पर कोढ़ निकल आया। याजकों ने उसे तुरंत मंदिर से बाहर निकाल दिया, क्योंकि वह अब अशुद्ध हो गया था।

### उज्जिय्याह का अंत

उज्जिय्याह कोढ़ी हो गया और उसे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक अलग रहना पड़ा। वह अब राजमहल में नहीं रह सकता था और उसका पुत्र योथाम राज्य का प्रबंध करने लगा। उज्जिय्याह ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में परमेश्वर के प्रति अपनी गलती का एहसास किया, परन्तु अब बहुत देर हो चुकी थी।

उज्जिय्याह की मृत्यु के बाद, उसे उसके पूर्वजों के साथ दफनाया गया, परन्तु उसे राजाओं की कब्र में नहीं रखा गया, क्योंकि वह कोढ़ी था। उसकी कहानी हमें यह सीख देती है कि घमंड और परमेश्वर की आज्ञाओं की अवहेलना करने का परिणाम बहुत भयानक हो सकता है।

उज्जिय्याह की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि परमेश्वर के प्रति विनम्रता और आज्ञाकारिता ही सच्ची सफलता की कुंजी है। जब हम अपने जीवन में परमेश्वर को प्रथम स्थान देते हैं, तो वह हमें आशीष देता है। परन्तु जब हम घमंड करते हैं और उसकी आज्ञाओं को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो हमारा पतन निश्चित है।

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