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होशेया 11: ईश्वर का अटूट प्रेम और दया की गाथा

होशेया 11 की कहानी एक ऐसे प्रेम की गाथा है जो इंसानी गुनाहों और ईश्वर की दया के बीच के संघर्ष को दर्शाती है। यह कहानी इस्राएल और उनके परमेश्वर के बीच के रिश्ते को एक पिता और उसके बेटे के रूप में चित्रित करती है। यहां हम इस कहानी को विस्तार से और जीवंत वर्णन के साथ प्रस्तुत करेंगे।

बहुत पहले की बात है, जब इस्राएल एक छोटा सा बच्चा था। परमेश्वर ने उसे मिस्र की गुलामी से छुड़ाया था, जैसे कोई पिता अपने बेटे को खतरे से बचाता है। परमेश्वर ने इस्राएल को अपनी बाहों में उठाया, उसे प्यार से पाला-पोसा, और उसे एक महान राष्ट्र बनाया। वह उनके साथ रहता था, उन्हें सिखाता था, और उनकी हर जरूरत को पूरा करता था। परमेश्वर का प्रेम एक कोमल माँ के प्रेम की तरह था, जो अपने बच्चे को खिलाती है, उसे गोद में लेकर चलती है, और उसकी हर पुकार सुनती है।

लेकिन जैसे-जैसे इस्राएल बड़ा हुआ, वह अपने पिता के प्रेम को भूलने लगा। उसने परमेश्वर की आज्ञाओं को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। उसने मूर्तियों की पूजा की, अन्याय किया, और अपने पड़ोसियों के साथ बुरा व्यवहार किया। परमेश्वर ने उन्हें चेतावनी दी, उन्हें सही रास्ते पर लौटने के लिए बुलाया, लेकिन इस्राएल ने उसकी बात नहीं सुनी। वे और भी अधिक गुनाह में डूबते चले गए।

परमेश्वर का हृदय दुख से भर गया। वह कहता है, “मैंने उन्हें प्यार से बुलाया, लेकिन वे मुझसे दूर भागते गए। मैंने उन्हें खिलाया, लेकिन वे मूर्तियों के सामने झुकते रहे। मैंने उन्हें सिखाया कि कैसे चलना है, लेकिन वे गलत रास्तों पर भटक गए।” परमेश्वर का क्रोध भड़क उठा, क्योंकि उसका प्रेम ठुकराया गया था। उसने सोचा, “क्या मैं उन्हें दंड दूं? क्या मैं उन्हें उनके गुनाहों के लिए सजा दूं?”

लेकिन फिर, परमेश्वर का हृदय पिघल गया। वह कहता है, “मेरा हृदय मुझे रोकता है। मेरी दया जाग उठती है। मैं उन्हें नष्ट नहीं करूंगा, क्योंकि मैं परमेश्वर हूं, इंसान नहीं। मैं उन्हें प्यार करता हूं, और मेरा प्रेम उनके गुनाहों से बड़ा है।” परमेश्वर ने फैसला किया कि वह इस्राएल को दंड देगा, लेकिन उन्हें पूरी तरह से नहीं छोड़ेगा। वह उन्हें सुधारेगा, उन्हें फिर से अपने पास लाएगा, और उनके दिलों को बदल देगा।

परमेश्वर ने कहा, “मैं उन्हें फिर से बुलाऊंगा। मैं उन्हें अपने पास लाऊंगा, और वे मेरी आवाज सुनेंगे। वे मिस्र से नहीं, बल्कि स्वर्ग से आएंगे। वे डर के साथ नहीं, बल्कि आनंद के साथ मेरे पास लौटेंगे। मैं उन्हें फिर से बसाऊंगा, और वे मेरे घर में शांति से रहेंगे।”

यह कहानी हमें परमेश्वर के अटूट प्रेम की याद दिलाती है। चाहे हम कितने भी गुनाहगार क्यों न हों, परमेश्वर हमें छोड़ता नहीं है। उसका प्रेम हमें सुधारता है, हमें माफ करता है, और हमें फिर से अपने पास ले आता है। जैसे होशेया ने इस्राएल को परमेश्वर के प्रेम की याद दिलाई, वैसे ही यह कहानी हमें भी यही सिखाती है कि परमेश्वर का प्रेम हमेशा हमारे साथ है, चाहे हम कहीं भी चले जाएं।

यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि परमेश्वर का प्रेम न्याय और दया के बीच का संतुलन है। वह हमें हमारे गुनाहों के लिए दंड दे सकता है, लेकिन उसका अंतिम लक्ष्य हमें बचाना और हमें फिर से अपने पास लाना है। यही है परमेश्वर का अद्भुत प्रेम, जो हमेशा हमारे साथ रहता है।

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