1 कुरिन्थियों 3 के आधार पर एक विस्तृत और गहन कहानी:
एक समय की बात है, कोरिंथ शहर में एक छोटा सा मण्डली था। यह मण्डली यीशु मसीह में विश्वास रखती थी और उनके नाम में एकत्र होती थी। लेकिन इस मण्डली में कुछ मतभेद उत्पन्न हो गए थे। कुछ लोग पौलुस के पक्ष में थे, तो कुछ अपुल्लोस के। यह विवाद इतना बढ़ गया कि मण्डली में एकता और प्रेम की जगह ईर्ष्या और विवाद ने ले ली।
एक दिन, पौलुस ने कोरिंथ की मण्डली को एक पत्र लिखा। वह जानता था कि यह विवाद उनके विश्वास के लिए हानिकारक है। उसने अपने पत्र में लिखा, “हे भाइयों और बहनों, मैं तुमसे ईश्वर के नाम में बात करता हूँ। तुम्हारे बीच जो विवाद है, वह ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। क्या तुम नहीं जानते कि तुम ईश्वर के मंदिर हो और ईश्वर का आत्मा तुम में वास करता है?”
पौलुस ने आगे लिखा, “तुम्हारे बीच जो विवाद है, वह इस बात का प्रमाण है कि तुम अभी भी शारीरिक हो। तुम अभी भी मनुष्यों की तरह सोचते हो। क्या पौलुस तुम्हारे लिए क्रूस पर चढ़ा? क्या अपुल्लोस ने तुम्हें बपतिस्मा दिया? नहीं, यह सब ईश्वर की कृपा से हुआ है। हम केवल सेवक हैं, जिनके द्वारा तुमने विश्वास किया।”
पौलुस ने एक दृष्टांत दिया। उसने कहा, “मैंने तुम्हारे बीच ईश्वर के खेत की नींव रखी, जैसे एक कुशल कारीगर करता है। लेकिन हर कोई अपने-अपने तरीके से इस खेत पर काम कर रहा है। कुछ सोना, चांदी, और कीमती पत्थरों का उपयोग कर रहे हैं, तो कुछ लकड़ी, घास, और भूसा। लेकिन समय आएगा जब हर एक का काम परखा जाएगा। आग उसे प्रकट करेगी कि किसका काम टिकाऊ है।”
उसने आगे कहा, “यदि किसी का काम टिक जाएगा, तो उसे पुरस्कार मिलेगा। लेकिन यदि किसी का काम जल जाएगा, तो वह हानि उठाएगा, हालांकि वह स्वयं बच जाएगा, परन्तु ऐसे जैसे आग से बचकर निकला हुआ।”
पौलुस ने मण्डली को याद दिलाया, “तुम ईश्वर के मंदिर हो। यदि कोई ईश्वर के मंदिर को नष्ट करता है, तो ईश्वर उसे नष्ट कर देगा। क्योंकि ईश्वर का मंदिर पवित्र है, और वह मंदिर तुम हो।”
उसने उन्हें चेतावनी दी, “कोई भी अपने आप को धोखा न दे। यदि तुम में से कोई इस संसार में बुद्धिमान समझा जाता है, तो वह मूर्ख बने, ताकि वह सचमुच बुद्धिमान बन सके। क्योंकि इस संसार की बुद्धि ईश्वर की दृष्टि में मूर्खता है।”
पौलुस ने अपने पत्र को समाप्त करते हुए कहा, “इसलिए, हे भाइयों और बहनों, किसी पर गर्व मत करो। सब कुछ तुम्हारा है—चाहे पौलुस हो, अपुल्लोस हो, या किफास हो, या संसार हो, या जीवन हो, या मृत्यु हो, या वर्तमान हो, या भविष्य हो—सब कुछ तुम्हारा है। और तुम मसीह के हो, और मसीह ईश्वर के।”
इस पत्र को पढ़कर कोरिंथ की मण्डली में एक नई चेतना जागी। उन्होंने अपने विवादों को त्याग दिया और एकता और प्रेम में वापस लौट आए। उन्होंने समझा कि वे सभी ईश्वर के सेवक हैं, और उनका एकमात्र लक्ष्य ईश्वर की महिमा करना है। इस तरह, पौलुस के शब्दों ने उनके हृदयों को छुआ और उन्हें सच्चे मसीही जीवन की ओर मोड़ दिया।