भजन संहिता 150 एक ऐसा अध्याय है जो परमेश्वर की स्तुति और आराधना के लिए समर्पित है। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि हर प्रकार के वाद्य यंत्रों और हर प्रकार की आवाज़ के साथ हमें परमेश्वर की महिमा गानी चाहिए। आइए, इस भजन को एक कहानी के रूप में बुनते हैं, जो इसकी गहराई और सुंदरता को प्रकट करे।
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एक छोटे से गाँव में, जो पहाड़ियों और हरे-भरे मैदानों से घिरा हुआ था, एक समुदाय रहता था। यह समुदाय परमेश्वर के प्रति गहरी आस्था रखता था। उनका विश्वास था कि परमेश्वर की स्तुति करना और उनकी महिमा गाना ही उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। गाँव के बीचोंबीच एक छोटा सा मंदिर था, जहाँ वे हर शाम इकट्ठा होते थे और परमेश्वर की आराधना करते थे।
एक दिन, गाँव के बुजुर्ग नेता, योनातान, ने सभा बुलाई। वह एक बुद्धिमान और परमेश्वर के प्रति समर्पित व्यक्ति था। उसने कहा, “भाइयों और बहनों, आज हम भजन संहिता 150 को पढ़ेंगे और समझेंगे कि कैसे हम परमेश्वर की स्तुति कर सकते हैं। यह भजन हमें सिखाता है कि हर प्रकार के वाद्य यंत्रों और हर प्रकार की आवाज़ के साथ हमें परमेश्वर की महिमा गानी चाहिए।”
योनातान ने भजन को पढ़ना शुरू किया:
“हallelujah! परमेश्वर की स्तुति करो, उसके पवित्र स्थान में उसकी स्तुति करो। उसकी स्तुति करो, उसके सामर्थ्य के आकाश में। उसकी स्तुति करो, उसके महान कामों के लिए। उसकी स्तुति करो, उसकी असीम महानता के अनुसार।”
गाँव के लोगों ने ध्यान से सुना। योनातान ने आगे कहा, “परमेश्वर की स्तुति करने के लिए हमें किसी भी प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग करना चाहिए। तुरही, वीणा, ढोल, नृत्य, सितार, मंजीरा, और ऊँचे स्वरों वाले वाद्य यंत्रों के साथ हमें उसकी महिमा गानी चाहिए।”
गाँव के लोगों ने योनातान की बातों को गंभीरता से लिया। उन्होंने तय किया कि वे अगले दिन एक विशाल स्तुति सभा का आयोजन करेंगे, जहाँ हर कोई अपने वाद्य यंत्रों और आवाज़ के साथ परमेश्वर की महिमा गाएगा।
अगले दिन, सूरज की पहली किरण के साथ ही गाँव के लोग मंदिर के आँगन में इकट्ठा होने लगे। कुछ लोग तुरही लेकर आए, कुछ वीणा और सितार लेकर, कुछ ढोल और मंजीरा लेकर। बच्चे नृत्य करने के लिए तैयार थे, और बूढ़े लोग ऊँचे स्वरों में गाने के लिए तैयार थे।
योनातान ने सभा की शुरुआत की। उसने कहा, “आज हम परमेश्वर की स्तुति करेंगे, उसके महान कामों के लिए, उसकी असीम महानता के लिए। हम उसे हर प्रकार के वाद्य यंत्रों और हर प्रकार की आवाज़ के साथ गाएँगे।”
तुरही की ध्वनि गूँज उठी, और उसके साथ ही वीणा और सितार के मधुर स्वर मिल गए। ढोल की थाप ने सभी के दिलों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। बच्चे नृत्य करने लगे, और बूढ़े लोग ऊँचे स्वरों में गाने लगे। मंजीरा की झनझनाहट ने पूरे वातावरण को भर दिया।
योनातान ने ऊँचे स्वर में कहा, “हर साँस लेने वाला प्राणी परमेश्वर की स्तुति करे! हम उसकी महिमा गाएँ, उसके पवित्र नाम की प्रशंसा करें।”
गाँव के लोगों ने मिलकर गाया:
“हallelujah! परमेश्वर की स्तुति करो, उसके पवित्र स्थान में।
उसकी स्तुति करो, उसके सामर्थ्य के आकाश में।
उसकी स्तुति करो, उसके महान कामों के लिए।
उसकी स्तुति करो, उसकी असीम महानता के अनुसार।”
उस दिन, गाँव के आकाश में परमेश्वर की स्तुति की ध्वनि गूँज उठी। लोगों का विश्वास था कि परमेश्वर उनकी आराधना से प्रसन्न हुए हैं। उन्होंने महसूस किया कि सच्ची आराधना केवल शब्दों से नहीं, बल्कि हृदय की गहराई से होती है।
योनातान ने अंत में कहा, “भाइयों और बहनों, परमेश्वर की स्तुति करना हमारे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। चाहे हम तुरही बजाएँ, वीणा बजाएँ, ढोल बजाएँ, या नृत्य करें, हमारी हर आवाज़ और हर क्रिया परमेश्वर की महिमा के लिए होनी चाहिए।”
उस दिन के बाद, गाँव के लोगों ने हर दिन परमेश्वर की स्तुति करने का संकल्प लिया। उनका विश्वास और प्रेम और गहरा हो गया, और उन्होंने महसूस किया कि परमेश्वर की स्तुति करने से उनका जीवन धन्य हो गया है।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की स्तुति करना हमारे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। चाहे हम किसी भी प्रकार के वाद्य यंत्र का उपयोग करें, या किसी भी प्रकार की आवाज़ में गाएँ, हमारी हर क्रिया परमेश्वर की महिमा के लिए होनी चाहिए। भजन संहिता 150 हमें यही सिखाता है कि हर साँस लेने वाला प्राणी परमेश्वर की स्तुति करे।