पवित्र बाइबल

दाऊद की प्रार्थना और परमेश्वर पर भरोसा

एक बार की बात है, जब दाऊद, इस्राएल के महान राजा और परमेश्वर के प्रिय सेवक, एक गहरी आध्यात्मिक संघर्ष से गुजर रहे थे। उनका मन व्याकुल था, और उनकी आत्मा परेशानी से भरी हुई थी। उन्होंने महसूस किया कि उनके चारों ओर शत्रुओं ने उन्हें घेर लिया है, और उनके अपने ही लोगों में से कुछ उनके विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे थे। ऐसे समय में, दाऊद ने परमेश्वर की शरण लेने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने हृदय की गहराई से प्रार्थना की, जैसा कि भजन संहिता 86 में वर्णित है।

दाऊद ने अपने कमरे में जाकर धरती पर घुटने टेके और अपने सिर को झुकाया। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे, और उनकी आवाज़ काँप रही थी जब उन्होंने परमेश्वर से बात की। “हे प्रभु, मेरी सुनो! मैं दीन और दरिद्र हूँ। मेरी आत्मा तुझे पुकारती है, क्योंकि मैं तेरे सिवा किसी और की ओर नहीं देख सकता। तू ही मेरा सहारा है, हे परमेश्वर।”

दाऊद ने अपनी प्रार्थना में परमेश्वर की दया और करुणा का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, मुझ पर कृपा करो, क्योंकि मैं तुझे दिन भर पुकारता हूँ। मेरी आत्मा को आनन्दित कर, क्योंकि मैं तेरे पास अपना सब कुछ लेकर आया हूँ। तू ही मेरा परमेश्वर है, और मैं तेरा सेवक हूँ। मैं तेरे ऊपर भरोसा रखता हूँ।”

दाऊद ने परमेश्वर की महानता और उसकी अनंत दया के बारे में सोचा। उन्होंने याद किया कि कैसे परमेश्वर ने अतीत में उनकी सहायता की थी और उन्हें शत्रुओं से बचाया था। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, तू दयालु और कृपालु है, धीरजवन्त और अत्यन्त करुणामय। तू सबको सुनता है जो तुझे पुकारते हैं। हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना पर ध्यान दे और मेरी पुकार सुन।”

दाऊद ने अपनी प्रार्थना में परमेश्वर की स्तुति की। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, तू महान है और अद्भुत कार्य करता है। तू ही परमेश्वर है, और तेरे समान कोई नहीं। सारे राष्ट्र जो तूने बनाए हैं, वे आकर तेरे सामने दण्डवत् करेंगे और तेरे नाम की महिमा करेंगे। तू महान है और अद्भुत कार्य करता है; तू ही परमेश्वर है।”

दाऊद ने परमेश्वर से अपने जीवन को बदलने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, मुझे अपना मार्ग सिखा, कि मैं तेरे सत्य पर चलूँ। मेरे मन को एकाग्र कर, कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ। हे प्रभु, मेरे परमेश्वर, मैं तेरे साथ अपने सम्पूर्ण हृदय से धन्यवाद करूँगा और तेरे नाम की सदैव महिमा करूँगा। क्योंकि तेरी करुणा मेरे ऊपर बड़ी है, और तूने मेरे प्राण को अधोलोक से बचा लिया है।”

दाऊद ने अपनी प्रार्थना में परमेश्वर से अपने शत्रुओं के विरुद्ध सहायता माँगी। उन्होंने कहा, “हे परमेश्वर, अहंकारी लोग मेरे विरुद्ध खड़े हो गए हैं; हिंसक लोगों का समूह मेरे प्राण के पीछे पड़ा है; उन्होंने परमेश्वर को अपने सामने नहीं रखा। परन्तु हे प्रभु, तू दयालु और कृपालु परमेश्वर है, धीरजवन्त और अत्यन्त करुणामय, सत्य के साथ विश्वासयोग्य। मेरी ओर देख और मुझ पर दया कर; मुझे अपनी शक्ति देना और मुझे बचाना।”

दाऊद ने अपनी प्रार्थना समाप्त करते हुए परमेश्वर की महिमा की। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, तू ने मेरी सहायता की है और मुझे शान्ति दी है। तू ने मुझे सांत्वना दी है और मेरे हृदय को आनन्द से भर दिया है। मैं तेरे नाम का सदैव धन्यवाद करूँगा और तेरी महिमा का गुणगान करूँगा। तू ही मेरा परमेश्वर है, और मैं तेरा सेवक हूँ। तेरी करुणा और प्रेम मेरे ऊपर सदैव बना रहे।”

दाऊद की प्रार्थना समाप्त हुई, और उन्होंने महसूस किया कि उनका हृदय हल्का हो गया है। उन्हें विश्वास था कि परमेश्वर उनकी प्रार्थना सुन चुका है और उनकी सहायता करेगा। उन्होंने अपने आप को परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया, यह जानते हुए कि परमेश्वर उनके साथ है और उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा।

इस तरह, दाऊद ने अपने जीवन की कठिनाइयों का सामना किया, परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए और उसकी दया और करुणा में आशा पाते हुए। उनकी प्रार्थना और विश्वास ने उन्हें शक्ति दी, और वे जानते थे कि परमेश्वर उनके साथ है, चाहे कितनी भी बड़ी परेशानी क्यों न हो।

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