यूहन्ना 15 की कहानी को विस्तार से समझने के लिए हमें यीशु मसीह के उस समय की ओर लौटना होगा, जब वे अपने चेलों को अंतिम शिक्षाएँ दे रहे थे। यह घटना उस रात की है, जब यीशु ने अपने चेलों के साथ अंतिम भोजन किया था। यह एक गहन और आत्मिक शिक्षा का समय था, जहाँ यीशु ने अपने चेलों को परमेश्वर के साथ उनके संबंध और एक-दूसरे के प्रति प्रेम के बारे में समझाया।
यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मैं सच्ची दाखलता हूँ, और मेरा पिता किसान है।” यह कहकर यीशु ने एक सरल लेकिन गहन दृष्टांत का उपयोग किया। उन्होंने समझाया कि जिस प्रकार एक दाखलता में फल लाने के लिए उसकी शाखाओं को उससे जुड़े रहना पड़ता है, उसी प्रकार उनके चेलों को भी उनसे जुड़े रहना होगा। यीशु ने कहा, “जो शाखा मुझ में बनी रहती है, और मैं उस में, वह बहुत फल लाती है, क्योंकि मेरे बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते।”
यीशु के इन शब्दों में एक गहरी आत्मिक सच्चाई छिपी थी। वे चाहते थे कि उनके चेले समझें कि उनका जीवन और उनकी सेवा केवल उनके साथ जुड़े रहने पर ही संभव है। यीशु ने आगे कहा, “यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह फलदार शाखा की तरह फेंक दिया जाएगा और सूख जाएगा; और लोग उसे इकट्ठा करके आग में झोंक देंगे, और वह जल जाएगा।” यह एक गंभीर चेतावनी थी, जो यह दिखाती थी कि यीशु से अलग होने का अर्थ है आत्मिक मृत्यु और नाश।
लेकिन यीशु ने केवल चेतावनी ही नहीं दी, बल्कि उन्होंने आशा और प्रोत्साहन के शब्द भी कहे। उन्होंने कहा, “यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें, तो जो चाहो माँगो, और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।” यह वादा उनके चेलों के लिए एक बड़ी प्रेरणा था। यीशु ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि वे उनके साथ जुड़े रहेंगे और उनके वचनों को अपने जीवन में मानेंगे, तो उनकी प्रार्थनाएँ सुनी जाएँगी।
यीशु ने आगे कहा, “जैसे पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसे ही मैंने भी तुम से प्रेम रखा; मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे, जैसे मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है और उसके प्रेम में बना रहता हूँ।” यहाँ यीशु ने प्रेम और आज्ञाकारिता के बीच के संबंध को स्पष्ट किया। उन्होंने समझाया कि प्रेम केवल भावनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज्ञाकारिता में प्रकट होता है।
यीशु ने अपने चेलों को यह भी बताया कि उनका प्रेम केवल उनके लिए ही नहीं है, बल्कि यह दूसरों के लिए भी है। उन्होंने कहा, “मैंने तुम्हें यह आज्ञा दी है कि तुम एक-दूसरे से प्रेम रखो। जैसा प्रेम मैंने तुम से रखा है, वैसा ही तुम भी एक-दूसरे से प्रेम रखो।” यह एक नया आदेश था, जो यीशु के चेलों को दिया गया था। यह प्रेम केवल सामान्य प्रेम नहीं था, बल्कि यह एक बलिदानी प्रेम था, जो यीशु ने स्वयं उनके लिए दिखाया था।
यीशु ने अपने चेलों को यह भी बताया कि उनका प्रेम उन्हें दुनिया से अलग करेगा। उन्होंने कहा, “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा। यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता; परन्तु क्योंकि तुम संसार के नहीं हो, बल्कि मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसलिए संसार तुम से बैर रखता है।” यीशु ने अपने चेलों को यह समझाया कि उनका मसीह के साथ जुड़ाव उन्हें दुनिया से अलग कर देगा, और यह अलगाव उनके लिए कठिनाइयाँ लाएगा। लेकिन यीशु ने उन्हें यह भी आश्वासन दिया कि वे अकेले नहीं हैं, क्योंकि वे उनके साथ हैं।
यीशु ने अपने चेलों को यह भी बताया कि उनके कार्यों के लिए दुनिया उनसे नफरत करेगी। उन्होंने कहा, “यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो उन्हें पाप न होता; परन्तु अब उनके पास उनके पाप का कोई बहाना नहीं है। जिसने मुझ से बैर रखा, उसने मेरे पिता से भी बैर रखा।” यीशु ने समझाया कि उनके आने का उद्देश्य दुनिया को उसके पापों के प्रति जागरूक करना था, और जो लोग उन्हें अस्वीकार करते हैं, वे वास्तव में परमेश्वर को अस्वीकार करते हैं।
अंत में, यीशु ने अपने चेलों को यह आश्वासन दिया कि वे अकेले नहीं हैं। उन्होंने कहा, “जब सहायक आएगा, जिसे मैं पिता की ओर से तुम्हारे पास भेजूँगा, अर्थात सत्य का आत्मा, जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। और तुम भी गवाही दोगे, क्योंकि तुम आदि से मेरे साथ रहे हो।” यीशु ने अपने चेलों को यह बताया कि पवित्र आत्मा उनके साथ होगा और उन्हें सत्य की गवाही देने के लिए सशक्त करेगा।
इस प्रकार, यूहन्ना 15 की यह कहानी हमें यीशु मसीह के साथ जुड़े रहने, उनके प्रेम में बने रहने, और दुनिया के सामने उनकी गवाही देने के महत्व को समझाती है। यह एक ऐसी शिक्षा है जो हमें याद दिलाती है कि हमारा जीवन और हमारी सेवा केवल यीशु के साथ जुड़े रहने पर ही संभव है।