परमेश्वर की शरण में योनातान की विजय (Note: The title is within the 100-character limit, symbols like asterisks and quotes have been removed, and it captures the essence of the story—Jonathan’s faith and victory through God’s refuge.)
**भजन संहिता 31 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “शरण में विश्वास”**
प्राचीन यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में योनातान नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह धर्मपरायण और ईश्वरभक्त था, परंतु उसके जीवन में कठिनाइयाँ कभी कम नहीं हुईं। एक समय की बात है, जब दुष्ट लोगों के षड्यंत्र के कारण योनातान को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा। उसके अपने ही लोगों ने उसके विरुद्ध झूठी गवाही दी, और राजा के सैनिक उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे पड़ गए।
भयभीत और निराश योनातान जंगल की ओर भागा। उसका हृदय टूट चुका था, और वह अपने आप को अकेला और असहाय महसूस कर रहा था। तभी उसे भजन संहिता की वे पंक्तियाँ याद आईं जो उसकी माँ अक्सर गुनगुनाया करती थी:
*”हे यहोवा, मैं तेरे ही शरणागत हूँ; मुझे कभी लज्जित न होने देना। तू धर्मी है, मुझे बचा ले!”* (भजन 31:1)
योनातान ने एक गुफा देखी और उसमें छिप गया। वहाँ बैठकर उसने प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू मेरी चट्टान और किला है। मेरे शत्रु मुझे घेर चुके हैं, परंतु मैं जानता हूँ कि तू मेरा उद्धार करेगा।” उसकी आँखों से आँसू बह निकले, परंतु उसके हृदय में शांति थी, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर उसकी पुकार सुनता है।
कुछ दिनों तक योनातान गुफा में रहा। वहाँ उसने अपनी सारी चिंताएँ प्रभु के सामने रख दीं। वह जानता था कि परमेश्वर उसके दुःख को देख रहा है और उसकी आत्मा की पीड़ा को समझता है। भजन संहिता 31 की पंक्तियाँ उसके मन में गूँजती रहीं:
*”मैं अपनी आत्मा तेरे हाथ में सौंपता हूँ; हे यहोवा, सत्य के परमेश्वर, तू ने मुझे छुड़ाया है।”* (भजन 31:5)
एक रात, जब योनातान गहरी नींद में था, उसने एक स्वप्न देखा। उसने देखा कि एक प्रकाशमय व्यक्ति उसके सामने खड़ा है और कहता है, “डर मत, योनातान। तेरे विरोधी तुझे नष्ट नहीं कर पाएँगे, क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ।” योनातान की नींद टूट गई, और उसने महसूस किया कि परमेश्वर ने उसे आश्वासन दिया है।
अगले दिन, योनातान ने सुना कि राजा के सैनिकों ने उसकी खोज छोड़ दी है, क्योंकि एक नए युद्ध के कारण उन्हें वापस बुला लिया गया था। योनातान समझ गया कि यह परमेश्वर की करुणा थी। वह धीरे-धीरे गाँव लौटा और देखा कि उसके विरोधी अब उससे डरने लगे थे। लोगों ने उसकी निर्दोषता को स्वीकार किया, और धीरे-धीरे उसका जीवन फिर से सामान्य हो गया।
योनातान ने अपने अनुभव को एक गीत में बदल दिया, जिसे उसने अपने गाँव के लोगों के सामने गाया:
*”यहोवा की महिमा हो, क्योंकि उसने मुझ पर अपनी करुणा दिखाई है। उसने मेरी पुकार सुनी और मुझे शत्रुओं के हाथ से बचा लिया। जो कोई भी यहोवा पर भरोसा रखता है, वह कभी लज्जित नहीं होगा!”*
इस तरह, योनातान का जीवन परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का प्रमाण बन गया। उसने सीखा कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, परमेश्वर अपने बच्चों को कभी नहीं छोड़ता। भजन संहिता 31 का सार उसके जीवन में सच हो गया:
*”हे यहोवा, तू मेरा परमेश्वर है। मैं अपना समय तेरे हाथ में सौंपता हूँ।”* (भजन 31:14-15)
और इस प्रकार, योनातान ने जाना कि सच्ची शांति और सुरक्षा केवल परमेश्वर की शरण में ही मिल सकती है।