**एक बुद्धिमान राजा और उसके मूर्ख मंत्री**
प्राचीन समय में यरूशलेम के पास एक छोटा-सा गाँव था, जिसका नाम बेत्शान था। वहाँ एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा श्लोमो (सुलैमान) का शासन था। उसके दरबार में कई विद्वान मंत्री थे, जो उसे हर मामले में सही सलाह देते थे। परंतु एक दिन, राजा के एक मंत्री ने अपनी मूर्खता से पूरे राज्य में अशांति फैला दी।
यह मंत्री, जिसका नाम योआब था, वह बहुत ही अहंकारी और अविवेकी था। उसने कभी भी बुद्धिमानों की सलाह नहीं मानी और अपनी ही समझ पर भरोसा किया। एक दिन, राजा श्लोमो ने अपने सभी मंत्रियों को बुलाकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए कहा। दरअसल, राज्य के उत्तरी भाग में एक भयंकर अकाल पड़ा था, और लोग भूखे मर रहे थे। राजा ने सभा में पूछा, “हमें इस संकट से कैसे निपटना चाहिए?”
बुद्धिमान मंत्रियों ने सुझाव दिया कि राज्य के भंडारों से अनाज बाँट दिया जाए और साथ ही किसानों को नई फसल के लिए बीज दिए जाएँ। परंतु योआब ने उनकी बात काटते हुए कहा, “नहीं! यह तो राजकोष को कमजोर करेगा। हमें अनाज का निर्यात करना चाहिए और सोना कमाना चाहिए। जब हमारे पास धन होगा, तब हम दूसरे देशों से अनाज खरीद लेंगे।”
योआब की यह मूर्खतापूर्ण सलाह सुनकर सभी चौंक गए। एक वृद्ध मंत्री ने कहा, “परंतु जब तक हम सोना कमाएँगे, तब तक हमारे लोग मर चुके होंगे!” पर योआब ने किसी की न सुनी। राजा श्लोमो ने भी, अपनी प्रजा के कल्याण को ध्यान में रखते हुए, बुद्धिमानों की सलाह मानी और अनाज बाँटने का आदेश दिया।
परंतु योआब को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उसने चुपके से राजा के आदेश को रोक दिया और अपने कुछ स्वार्थी साथियों के साथ मिलकर अनाज की चोरी करने लगा। वह उसे गुप्त रूप से दूसरे देशों में बेच देता था। जब यह बात राजा को पता चली, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने योआब को दरबार में बुलाया और कहा, “तूने न केवल मेरी आज्ञा की अवहेलना की, बल्कि मेरी प्रजा को धोखा दिया है! क्या तू नहीं जानता कि ‘मूर्ख का मन उसकी दाहिनी ओर होता है, परंतु बुद्धिमान का मन उसकी बाईं ओर’ (सभोपदेशक 10:2)?”
योआब ने अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय और अधिक अहंकार दिखाया। उसने राजा को धमकी देते हुए कहा, “मैं आपके राज्य के कई रहस्य जानता हूँ। यदि आपने मुझे दंड दिया, तो मैं सब कुछ उजागर कर दूँगा!” परंतु राजा श्लोमो ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “जैसे ‘मूर्ख के हाथ से काम बिगड़ जाता है, वैसे ही तेरी चालाकी ने तेरा ही नाश किया है’ (सभोपदेशक 10:3)।”
राजा ने योआब को उसके पद से हटा दिया और उसे निर्वासित कर दिया। फिर उसने अपने विवेकशील मंत्रियों की सहायता से प्रजा की सेवा की और अकाल के संकट से उबरने में सफल रहा। गाँव के लोगों ने राजा की प्रशंसा की और परमेश्वर का धन्यवाद दिया, जो सच्ची बुद्धि देता है।
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि मूर्खता और अहंकार मनुष्य का पतन करते हैं, परंतु बुद्धि और नम्रता आशीष का मार्ग दिखाती है। जैसा कि सभोपदेशक 10:12 में लिखा है—”मूर्ख के वचन उसके विनाश का कारण बनते हैं, परंतु बुद्धिमान के शब्द उसे सुरक्षित रखते हैं।”