**ईश्वर की अटूट प्रतिज्ञा: यशायाह 54 की कहानी**
एक समय की बात है, जब यरूशलेम नगर उजड़ा हुआ था। उसके निवासी बंधुआई में थे, और उनका हृदय शोक से भरा था। वे सोचते थे कि ईश्वर ने उन्हें त्याग दिया है, कि उनकी आशाएँ धूल में मिल गई हैं। परन्तु उसी समय, ईश्वर ने अपने भविष्यद्वक्ता यशायाह के द्वारा एक सुंदर और सांत्वना भरा संदेश दिया।
यशायाह ने लोगों से कहा, **”हे बाँझ, तू जो कभी गर्भवती नहीं हुई, आनन्दित हो! हे वह जिसने कभी प्रसव-वेदना नहीं जानी, जोर से चिल्ला और मगन हो! क्योंकि अकेली रहनेवाली के पुत्र, विवाहिता के पुत्रों से भी अधिक होंगे!”**
लोग चकित रह गए। कैसे हो सकता है? वे तो बंधुआई में थे, उनका मंदिर ध्वस्त हो चुका था, और उनकी संतानें परदेश में फैली हुई थीं। परन्तु यशायाह ने समझाया कि यह ईश्वर का वचन है—वह उन्हें फिर से समृद्ध करेगा।
**”अपने निवास को चौड़ा कर, अपने तंबुओं के पट्टों को लंबा कर, अपनी कीलों को मजबूत कर!”**
यह सुनकर, एक बूढ़ी विधवा, जिसका नाम राहेल था, आशा से भर उठी। उसने अपने मन में कल्पना की कि कैसे उसका छोटा सा घर अब एक विशाल महल बन जाएगा। उसके चारों ओर उसके बच्चे और पोते-पोतियाँ हँसते-खेलते नजर आएँगे। यह कोई साधारण वादा नहीं था—यह ईश्वर की महिमा का प्रकटीकरण था।
यशायाह ने आगे कहा, **”डर मत, क्योंकि तू निराश नहीं होगी; लज्जित नहीं होगी, क्योंकि तू अपनी जवानी की लज्जा को भूल जाएगी। तेरे निर्माता, तेरे पति, सेनाओं का यहोवा तेरा छुड़ानेवाला है।”**
लोगों की आँखों में आँसू आ गए। उन्हें याद आया कि कैसे उनके पूर्वजों ने पाप किया था, कैसे उन्होंने ईश्वर को ठुकराया था, और अब वही ईश्वर उन्हें गले लगा रहा था। वह उन्हें पति की तरह सांत्वना दे रहा था, जैसे कोई प्रेमी अपनी पत्नी से वादा करता है।
**”मैंने थोड़े समय के लिए तुझे त्याग दिया था, परन्तु महान दया से तुझे वापस लूँगा। मेरा क्रोध क्षणभर को था, परन्तु मेरी करुणा अनन्तकाल तक रहेगी।”**
फिर यशायाह ने एक अद्भुत दृश्य बताया—**”हे दुःखित नगर, देख, मैं तेरी नींव कीमती पत्थरों से रखूँगा, तेरे गगनचुंबी भवन नीलम और माणिक्य से बनेंगे। तेरे बच्चे सब ईश्वर के शिष्य होंगे, और उन पर अत्यधिक शांति होगी।”**
लोगों ने देखा कि ईश्वर उनके साथ एक नया विवाचन (वाचा) कर रहा है, जैसे उसने नूह के साथ किया था। **”जैसे मैंने प्रतिज्ञा की कि नूह के जलप्लावन का जल फिर कभी पृथ्वी पर नहीं आएगा, वैसे ही मैं तुझसे कभी क्रोधित नहीं होऊँगा। पहाड़ हिल सकते हैं, परन्तु मेरी करुणा तुझसे नहीं हटेगी।”**
और तभी, एक युवक ने पूछा, **”लेकिन हमारे पाप? हमारे अधर्म?”**
यशायाह ने मुस्कुराते हुए कहा, **”तेरे सारे पापों को मैंने ढँक दिया है। मैंने तुझे दण्ड दिया, परन्तु अब तू मेरी दृष्टि में निर्दोष है। मेरी धार्मिकता तेरा वस्त्र होगी।”**
धीरे-धीरे, लोगों के हृदय में आशा की ज्योति जल उठी। उन्होंने समझा कि ईश्वर का प्रेम अटूट है। वह चाहे उन्हें ताड़ना दे, परन्तु उनका परित्याग कभी नहीं करेगा।
और इस प्रकार, यशायाह 54 का संदेश इतिहास में अमर हो गया—एक ऐसा वचन जो न केवल बंधुआई से लौटनेवाले यहूदियों के लिए था, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए था जो ईश्वर की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करता है।
**”कोई भी शस्त्र जो तेरे विरुद्ध बने, सफल नहीं होगा। यह ईश्वर की सेवकों की विरासत है!”**
और इस तरह, एक उजड़े हुए नगर ने फिर से आशा की किरण देखी, क्योंकि ईश्वर की प्रतिज्ञा कभी टूटती नहीं।