पवित्र बाइबल

प्यासे हृदय की तृप्ति: दाऊद की परमेश्वर से मुलाकात (Note: The title is 59 characters long, within the 100-character limit, and free of symbols/quotations.)

**भजन संहिता 63 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**

**शीर्षक: “प्यासे हृदय की तृप्ति”**

वह एक घने और सूखे रेगिस्तान की रात थी। दाऊद, इस्राएल का राजा, अपने ही पुत्र अबशालोम के विद्रोह के कारण यरूशलेम से भागकर यहूदा के निर्जन प्रदेश में शरण लिए हुए था। चारों ओर केवल रेत के टीले और झाड़ियाँ थीं, जो सूरज की तपिश के बाद अब ठंडी हो रही थीं। आकाश में तारे जगमगा रहे थे, मानो परमेश्वर की आँखें धरती पर टिकी हों। दाऊद ने अपने थके हुए शरीर को एक चट्टान के सहारे टिकाया और अपनी सूखे होंठों को चाटा। पानी की एक बूँद के लिए उसका मन लालायित था, परन्तु उससे भी अधिक, उसकी आत्मा परमेश्वर के सामने पहुँचने को व्याकुल थी।

उसने अपनी आँखें बंद कीं और परमेश्वर को याद किया। उसकी स्मृति में यरूशलेम का वह पवित्र मंदिर उभर आया, जहाँ वह सुबह-शाम परमेश्वर की आराधना किया करता था। उसने महसूस किया कि उसकी प्यास केवल पानी की नहीं, बल्कि परमेश्वर के जीवंत सान्निध्य की थी। वह धीरे से बुदबुदाया, *”हे परमेश्वर, तू मेरा ईश्वर है; मैं तुझे तड़प-तड़प कर ढूँढ़ता हूँ। इस निर्जल और थके हुए प्रदेश में मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है, मेरा शरीर तेरे लिए तरसता है…”*

तभी उसे एक स्मृति आई—वह दिन जब वह अपनी जवानी में भेड़ों को चराता हुआ बेतलेहेम के मैदानों में घूमा करता था। एक बार जब उसने एक सिंह को अपनी भेड़ों पर हमला करते देखा, तो उसने परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए उससे लड़ाई लड़ी और उसे मार गिराया। उसी तरह आज भी वह जानता था कि परमेश्वर उसके साथ है। उसने अपने हृदय में गुनगुनाना शुरू किया, *”तेरी करुणा जीवन से भी बढ़कर है, इसलिए मेरे होंठ तेरी स्तुति करेंगे। जीवन भर मैं तेरे नाम का आशीष मानूँगा…”*

रात गहराती गई। दाऊद ने अपने हाथ उठाए और आकाश की ओर देखते हुए प्रार्थना की। उसे लगा जैसे परमेश्वर की उपस्थिति उसके चारों ओर छा गई है। उसकी आत्मा में शांति उतर आई, मानो उसने स्वर्गीय अमृत पी लिया हो। वह जानता था कि चाहे उसके शत्रु उसे घेर लें, परमेश्वर उसकी रक्षा करेगा। उसने विश्वास के साथ कहा, *”वे तो तलवार के घाट उतरेंगे, और लोमड़ियों का आहार बनेंगे। परन्तु राजा परमेश्वर के कारण आनन्दित होगा…”*

थोड़ी देर बाद, उसके विश्वासपात्र सैनिक योनातान ने उसे पानी का एक घड़ा दिया। दाऊद ने उसे पिया और फिर मुस्कुराया। उसकी शारीरिक प्यास तो बुझ गई थी, परन्तु उसकी आत्मा की प्यास—परमेश्वर के प्रेम की प्यास—अब और गहरी हो गई थी। उसने अपने सिपाहियों से कहा, *”आओ, हम परमेश्वर का गुणगान करें, क्योंकि वही हमारा सहारा है।”*

और फिर, रेगिस्तान की उस निस्तब्ध रात में, दाऊद और उसके साथियों के स्वर मिलकर परमेश्वर की स्तुति में गूँज उठे। उनकी आवाज़ें रेत के टीलों से टकराकर दूर-दूर तक फैल गईं, मानो समस्त सृष्टि उनके साथ जुड़ गई हो। दाऊद ने महसूस किया कि परमेश्वर की छाया उस पर है, और वह उसकी हर प्यास को तृप्त करेगा।

**अंत**

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *