**बाइबल की कहानी: ज्ञान और मूर्खता की दावत (नीतिवचन 9)**
एक समय की बात है, जब परमेश्वर की ओर से ज्ञान ने अपना महल बनाया और उसने सात खंभे गढ़े। वह महल ऊँचे पहाड़ पर स्थित था, जहाँ से पूरी नगरी दिखाई देती थी। ज्ञान ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा, “जाओ, नगर के चौराहों पर जाकर लोगों को बुलाओ। मैं सबको अपनी दावत में आमंत्रित करती हूँ।”
ज्ञान की सेवकों ने नगर के हर कोने में जाकर यह संदेश सुनाया: “हे सरल लोगो, यहाँ आओ! हे मूर्खों, समझदारी की ओर मुड़ो! ज्ञान की दावत तैयार है—मीठी रोटी और शुद्ध दाखमधु से भरा हुआ मेज। आओ और खाओ, ताकि तुम जीवन पा सको!”
लोगों ने जब यह सुना, तो कुछ तो तुरंत तैयार हो गए, जबकि कुछ ने उपहास किया। एक युवक, जिसका नाम अहीराम था, वह जिज्ञासा से भरा हुआ ज्ञान के महल की ओर चल पड़ा। जब वह वहाँ पहुँचा, तो देखा कि महल के द्वार पर ज्ञान खड़ी थी, उसके हाथों में आशीष और प्रेम था। उसने अहीराम से कहा, “अंदर आ, मेरे पुत्र। मूर्खता को छोड़ और समझदारी को ग्रहण कर। जो मुझे ढूँढ़ता है, वह जीवन पाता है।”
अहीराम ने महल के अंदर प्रवेश किया और देखा कि वहाँ अनेक लोग बैठे थे—युवा, वृद्ध, धनी, निर्धन—सभी ज्ञान की बातें सुन रहे थे। मेज पर ताज़ी रोटी, शहद, और दाखमधु से भरे प्याले रखे थे। ज्ञान ने सबको शिक्षा दी: “यहोवा का भय मानना ही बुद्धि का आरंभ है। पवित्र ज्ञान को पाकर तुम दीर्घायु और समृद्धि प्राप्त करोगे।”
लेकिन उसी नगर में मूर्खता भी रहती थी। वह एक ऊँचे स्थान पर बैठी थी, शोर मचाते हुए। उसने भी लोगों को बुलाया: “हे भोले लोगो, यहाँ आओ! चोरी का पानी मीठा है और छिपकर खाया हुआ भोजन स्वादिष्ट होता है!”
कुछ लोग, जो ज्ञान की दावत से वापस लौट रहे थे, मूर्खता के चाल में फँस गए। उन्होंने सोचा, “ज्ञान की बातें तो गंभीर हैं, पर मूर्खता का मार्ग आसान लगता है।” वे उसके घर में घुस गए, लेकिन वहाँ कोई दावत नहीं थी—केवल अंधकार और मृत्यु का भोजन पड़ा था।
अहीराम ने जब यह देखा, तो वह डर गया और ज्ञान के पास लौट आया। उसने पूछा, “हे ज्ञान, मैं कैसे सच्ची बुद्धि पा सकता हूँ?”
ज्ञान ने मुस्कुराते हुए कहा, “परमेश्वर की आज्ञाओं को मानो, नम्र बनो, और सदैव सीखते रहो। जो मुझे ढूँढ़ता है, वह कभी निराश नहीं होगा।”
अहीराम ने ज्ञान की बातें मान लीं और उस दिन के बाद से वह परमेश्वर के मार्ग पर चलने लगा। उसने समझ लिया कि मूर्खता का अंत विनाश है, परन्तु ज्ञान का मार्ग अनन्त जीवन की ओर ले जाता है।
**सीख:** नीतिवचन 9 हमें सिखाता है कि ज्ञान और मूर्खता दोनों हमें बुलाती हैं, लेकिन हमारी पसंद हमारा भविष्य तय करती है। परमेश्वर का भय मानना और उसकी बुद्धि को अपनाना ही सच्ची जीवन की राह है।