एलियाकीम का चमत्कार: कोढ़ से मुक्ति और शुद्धिकरण की कहानी (Note: The title is 72 characters long in Hindi, within the 100-character limit, and free of symbols/asterisks.)
**एक चमत्कारी शुद्धिकरण: लैव्यव्यवस्था 14 की कहानी**
उस समय की बात है जब इस्राएली मिस्र की दासता से मुक्त होकर जंगल में भटक रहे थे और परमेश्वर के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत कर रहे थे। परमेश्वर ने मूसा को अनेक नियम दिए थे, जिनमें से एक कोढ़ जैसी भयानक बीमारी से पीड़ित लोगों के शुद्धिकरण का विधान भी था। यह विधान न केवल शारीरिक, बल्कि आत्मिक शुद्धता को भी दर्शाता था।
### **एलियाकीम की कहानी**
एक गाँव में एलियाकीम नाम का एक व्यक्ति रहता था, जो अपने परिवार और समुदाय में बहुत सम्मानित था। वह परमेश्वर की आराधना में निष्ठावान था और हमेशा धार्मिक नियमों का पालन करता था। किन्तु एक दिन, उसकी त्वचा पर सफेद दाग दिखाई देने लगे। यह देखकर वह भयभीत हो गया, क्योंकि वह जानता था कि यह कोढ़ का लक्षण हो सकता है।
धर्मगुरुओं ने उसकी जाँच की और पुष्टि की कि वह वास्तव में कोढ़ से पीड़ित है। उन्होंने उसे समुदाय से अलग कर दिया, क्योंकि परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार, कोढ़ी को शिविर से बाहर रहना पड़ता था, ताकि बीमारी फैले नहीं। एलियाकीम ने अपना घर छोड़ दिया और जंगल में एक कुटिया बनाकर रहने लगा। वहाँ वह अकेलेपन और पीड़ा में दिन बिताने लगा, परन्तु उसका विश्वास परमेश्वर में बना रहा।
### **आशा की किरण**
कई सप्ताह बीत गए। एक दिन, एलियाकीम ने देखा कि उसके शरीर के दाग धीरे-धीरे मिटने लगे हैं। उसकी त्वचा फिर से स्वस्थ हो रही थी! वह बहुत प्रसन्न हुआ और तुरंत धर्मगुरुओं के पास गया। याजकों ने उसकी जाँच की और पाया कि कोढ़ पूरी तरह से ठीक हो चुका है। अब उसे शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरना था, जैसा कि लैव्यव्यवस्था 14 में वर्णित है।
### **शुद्धिकरण की विधि**
याजकों ने दो पक्षियों, देवदार की लकड़ी, लाल सूत और जुलफ़ के पौधे को लाने का आदेश दिया। एक पक्षी को मिट्टी के बर्तन में बहते हुए जल के ऊपर वध किया गया। दूसरे जीवित पक्षी को उसके खून और जल में डुबोया गया, और फिर एलियाकीम पर सात बार छिड़का गया। इसके बाद, जीवित पक्षी को खुले मैदान में छोड़ दिया गया, जो उसके पापों और अशुद्धता के दूर होने का प्रतीक था।
एलियाकीम ने अपने शरीर के सारे बाल मुंडवा लिए, कपड़े धोए और स्नान किया। सात दिन तक वह अपने तम्बू में रहा, और आठवें दिन उसने फिर से बलिदान चढ़ाया। उसने दो निर्दोष मेम्ने, एक मेमनी और तेल से सने हुए अन्न का भेंट चढ़ाया। याजक ने उसके दाएँ कान के निचले भाग, अंगूठे और अंगुठी पर खून और तेल लगाया। यह संकेत था कि उसका सम्पूर्ण अस्तित्व—सुनने, चलने और कार्य करने की क्षमता—परमेश्वर के समर्पित हो गया है।
### **नए जीवन की शुरुआत**
जब सारी रस्में पूरी हो गईं, तो याजक ने घोषणा की, “तू शुद्ध हो गया है!” एलियाकीम की आँखों में आँसू आ गए। वह जानता था कि यह केवल शारीरिक चंगाई नहीं, बल्कि परमेश्वर की असीम कृपा थी। वह अपने घर लौटा, जहाँ उसके परिवार और मित्रों ने उसका जोरदार स्वागत किया।
उस रात, जब वह अपने परिवार के साथ भोजन कर रहा था, तो उसने सोचा कि परमेश्वर की व्यवस्था केवल नियमों का संग्रह नहीं, बल्कि उसकी प्रेममयी देखभाल का प्रमाण है। उसने प्रण किया कि वह अब और भी अधिक ईमानदारी से परमेश्वर की सेवा करेगा।
इस प्रकार, एलियाकीम की कहानी इस्राएल में फैल गई, और लोगों ने समझा कि परमेश्वर न केवल दंड देने वाला है, बल्कि वह चंगा करने वाला और शुद्ध करने वाला भी है। लैव्यव्यवस्था 14 की यह विधि केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि मनुष्य के पापों से शुद्ध होकर परमेश्वर के साथ संगति में लौटने का मार्ग था।
**समाप्त।**